लखनऊः उत्तर प्रदेश विधानसभा सत्र के आखिरी दिन नजूल संपत्ति (प्रबंधन और सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए उपयोग) विधेयक, 2024 को पेश किया गया, जिसके खिलाफ न केवल इंडिया ब्लॉक ने बल्कि भाजपा के विधायकों और सहयोगियों ने भी कड़ा विरोध किया। कड़े विरोध और हंगामे के बीच पारित विधेयक गुरुवार को उच्च सदन विधान परिषद में अटक गया।
विधेयक के नफे-नुकसान का आकलन करते के लिए भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष व एमएलसी भूपेन्द्र सिंह चौधरी ने स्वयं नजूल संपत्ति विधेयक को प्रवर समिति के सुपुर्द करने की मांग कर दी। यानि विधानपरिषद में इसे पास करने की जगह उसे प्रवर समिति को भेज दिया गया।
जब नजूल संपत्ति विधेयक, 2024 को राज्य विधानसभा में पेश किया गया, योगी सरकार के अपने ही विधायकों ने इसके खिलाफ अपने सहयोगियों और विपक्ष के साथ मिलकर आपत्ति जताई।
नजूल संपत्ति विधेयक, 2024 क्या है?
उत्तर प्रदेश नजूल संपत्ति विधेयक, 2024 का मकसद नजूल जमीन को नियंत्रित करना है। ये जमीन सरकार की होती है लेकिन राज्य की संपत्ति के रूप में सीधे प्रबंधित नहीं की जाती। इस विधेयक के तहत, नजूल जमीन को निजी व्यक्तियों या संस्थानों को देने के लिए कोर्ट की कार्यवाही या आवेदन रद्द कर दिए जाएंगे, ताकि ये जमीनें सरकार के नियंत्रण में रहें। अगर जमीन की मालिकाना हक बदलने की उम्मीद में कोई पैसे दिए गए थे, तो विधेयक में कहा गया है कि ये पैसे ब्याज के साथ वापस किए जाएंगे। ब्याज की दर भारतीय स्टेट बैंक की एमसीएलआर (MCLR) के बराबर होगी।
इसके अलावा, विधेयक में सरकार को मौजूदा किरायेदारों का किराया बढ़ाने की अनुमति दी गई है, जो नियमित रूप से किराया देते हैं और किराये के नियमों का पालन करते हैं। इससे सुनिश्चित होगा कि अच्छे किरायेदार जमीन का इस्तेमाल करते रह सकें, लेकिन जमीन सरकार की संपत्ति बनी रहेगी। इस विधेयक का मकसद नजूल जमीन के प्रबंधन को सुचारू बनाना और अवैध निजीकरण को रोकना है।
भाजपा के अपने विधायकों ने विधेयक पर आपत्ति जताई
प्रयागराज से भाजपा विधायक हर्षवर्धन बाजपेयी ने बुधवार को अपनी सरकार के उस विधेयक पर आपत्ति जताई जिसमें नजूल भूमि को निजी फ्रीहोल्ड में बदलने से रोका गया है। हर्षवर्धन बाजपेयी ने कहा, “अगर सरकार एक या दो (संपत्तियां) ले लेती है, तो कुछ नहीं बदलेगा। लेकिन मैं उन लोगों की बात कर रहा हूं जो एक या दो कमरों की झुग्गियों में रहते हैं।
प्रयागराज में उन्हें ‘सागर पेशा’ कहा जाता है। यह शब्द ब्रिटिश राज से आया है, जहां ‘शागिर्द पेशा’ (सेवा में अनुयायी) को बंगलों के पास जगह दी जाती थी। ये परिवार ब्रिटिश राज के समय से वहां रह रहे हैं… 100 साल से भी पहले… एक तरफ हम गरीबों को पीएम आवास योजना के तहत घर दे रहे हैं और दूसरी तरफ हम हजारों परिवारों को बाहर जाने के लिए कह रहे हैं। हम जमीन ले रहे हैं। ये न्यायसंगत नहीं है।”
इस दौरान हर्षवर्धन ने एक गृहिणी का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा, मेरी मुलाकात एक गृहिणी से हुई जिसका घर 100 गज की जगह पर है। उसने मुझे बताया कि सरकार को इस सौ गज की जमीन से क्या मिलेगा…हमारा शीर्ष नेतृत्व चाहता है कि लोगों के संपत्ति अधिकार स्पष्ट होने चाहिए। पीएम नरेंद्र मोदी ने भी संपत्ति अधिकार और बौद्धिक संपदा अधिकार में स्पष्टता लाने के लिए कानून लाने की बात कई बार कही है।”
बाजपेयी के जवाब को विपक्ष से भी जोरदार समर्थन मिला। हालांकि, इससे पहले कि बाजपेयी विधेयक पर आगे कुछ बोल पाते, संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने खड़े होकर बाजपेयी से कहा, “आप समझ नहीं रहे हो। पहले पढ़ तो लो।” हालांकि, बाजपेयी ने कहा कि कानून में ऐसा प्रावधान होना चाहिए कि नजूल की जमीन पर कब्जा करने वालों को इस जमीन को फ्रीहोल्ड में बदलने का मौका मिले।
वहीं, प्रयागराज जिले के भाजपा विधायक सिद्धार्थ नाथ सिंह ने विधेयक पर आपत्ति दर्ज कराते हुए सुझाव दिया कि सुझावों पर विचार किया जाना चाहिए। सिंह ने कहा कि नजूल भूमि पर वास्तविक मालिकाना हक रखने वालों को अपना पट्टा नवीनीकरण कराना चाहिए।
इसी तरह जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के विधायक रघुराज प्रताप सिंह ने कहा कि यह विधेयक भले ही छोटा है, लेकिन इसके परिणाम बड़े हैं। उन्होंने कहा कि सिद्धार्थ नाथ सिंह और हर्षवर्धन पार्टी के हित में इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने सवाल किया कि एक मामले में ऐसा सामने आया है कि नजूल भूमि पर हाईकोर्ट का भी मामला है, क्या उसे भी खाली कराया जाएगा। उन्होंने सरकार से इस विधेयक पर पुनर्विचार करने की अपील की।
निषाद पार्टी के अनिल त्रिपाठी ने विधेयक में संशोधन की मांग की और इसे प्रवर समिति को सौंपने की वकालत की। कांग्रेस विधायक आराधना मिश्रा मोना ने विधेयक को जनविरोधी बताते हुए पुनर्विचार की मांग की। उन्होंने तर्क दिया कि यह कानून जीवन भर की कमाई से बनाए गए घरों को बर्बाद कर देगा, लाखों लोगों को बेघर कर देगा और बड़े पैमाने पर दुरुपयोग को बढ़ावा देगा। उन्होंने कहा कि सरकारी कार्यालय और अस्पताल नजूल भूमि पर बने हैं।
नजूल संपत्ति विधेयक की आवश्यकता क्यों है?
सुरेश खन्ना ने सार्वजनिक महत्व की विभिन्न विकास गतिविधियों के लिए भूमि की तात्कालिक आवश्यकता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि विकास गतिविधियों के लिए भूमि उपलब्ध कराने के लिए, भूमि अधिग्रहण करना होता है, जिसमें भारी खर्च और देरी होती है।”
खन्ना ने बताया कि उत्तर प्रदेश में नजूल भूमि निजी व्यक्तियों और संस्थाओं को 1895 और 1960 के सरकारी अनुदान अधिनियम के तहत पट्टे पर दी गई थी। यूपी सरकार ने समय-समय पर नजूल भूमि को सार्वजनिक हित में फ्रीहोल्ड घोषित करने की नीति अपनाई।
खन्ना ने बताया कि पिछली नीतियों ने कई दावों को जन्म दिया, जिससे भूमि बैंक कमजोर हो गया। “अब यूपी सरकार के लिए इन नीतियों को जारी रखना और नजूल भूमि को फ्रीहोल्ड में बदलने की अनुमति देना सार्वजनिक हित में नहीं है।
उन्होंने बताया, “यदि राज्य सरकार अपनी नजूल भूमि पर पुनः नियंत्रण प्राप्त करती है, तो भूमि अधिग्रहण कानूनों के तहत भूमि अधिग्रहण किए बिना भूमि उपलब्ध हो जाएगी।
1895 के सरकारी अनुदान अधिनियम को संसद द्वारा निरस्त करने के बाद, यूपी सरकार ने नजूल भूमि के प्रबंधन और निपटान से संबंधित सभी नीतियों को निलंबित कर दिया। खन्ना ने कहा कि नजूल भूमि को फ्रीहोल्ड में बदलने के लिए कई मुकदमे अदालतों में लंबित हैं, जिससे सरकार के हितों में अनिश्चितता उत्पन्न हो रही है।”