क्या है अनुच्छेद 142 जिसे लेकर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा- ये 'परमाणु मिसाइल' बन गया है

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए विधेयकों पर हस्ताक्षर करने की समयसीमा तय करने वाले सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है।

Jagdeep Dhankar

Photograph: (IANS)

नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का जोरदार विरोध किया है, जिसमें राज्यपाल द्वारा भेजे गए विधेयकों पर राष्ट्रपति द्वारा निर्णय लेने के लिए समयसीमा निर्धारित की गई है। संविधान के अनुच्छेद 142 की तुलना 'परमाणु मिसाइल' से करते हुए उन्होंने दावा किया कि यह प्रावधान लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ है। 

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने गुरुवार (17 अप्रैल) को उपराष्ट्रपति एन्क्लेव में राज्यसभा के इंटर्नों के छठे बैच को संबोधित करते हुए कहा, 'हाल ही में आए एक फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है। हम कहां जा रहे हैं? देश में क्या हो रहा है?' उपराष्ट्रपति ने अनुच्छेद 145(3) में संशोधन करने की भी बात कही, जिसमें कहा गया है कि कम से कम पांच न्यायाधीशों की पीठ को 'कानून के महत्वपूर्ण प्रश्न' से संबंधित मामले का फैसला करना चाहिए। 

आखिर उपराष्ट्रपति ने क्या कहा और क्या है आर्टिकल 142 जिसे उन्होंने 'न्यूक्लियर मिसाइल' करार दिया। आइए जानते हैं।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने क्या कहा?

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए विधेयकों पर हस्ताक्षर करने की समयसीमा तय करने वाले सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई और कहा कि न्यायाधीश 'सुपर संसद' बनते जा रहे हैं। 

वेबसाइट लाइव लॉ के अनुसार उपराष्ट्रपति ने कहा, 'हमने लोकतंत्र के लिए कभी इस दिन की उम्मीद नहीं की थी। राष्ट्रपति को समयबद्ध तरीके से निर्णय लेने के लिए कहा जाता है और यदि ऐसा नहीं होता है, तो यह कानून बन जाता है। तो हमारे पास ऐसे न्यायाधीश हैं जो कानून बनाएंगे, जो कार्यकारी कार्य करेंगे, जो सुपर संसद के रूप में कार्य करेंगे और उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता है।'

उपराष्ट्रपति, जो राज्यसभा के सभापति भी होते हैं, उन्होंने अनुच्छेद 142 की भी आलोचना की, जिसका इस्तेमाल उनके अनुसार लोकतंत्र के खिलाफ किया जा रहा है। धनखड़ ने आगे कहा कि अनुच्छेद 145(3) में कहा गया है कि एक महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दे पर कम से कम पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा निर्णय लिया जाना चाहिए। हालाँकि, राष्ट्रपति से जुड़ा हालिया फैसला दो न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुनाया गया।

अनुच्छेद 145(3) में संशोधन का आह्वान करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि संविधान पीठ में न्यूनतम न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने की आवश्यकता है।

उपराष्ट्रपति ने कहा, 'हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते, जहां आप भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें और किस आधार पर? संविधान के तहत आपके पास एकमात्र अधिकार अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है। वहां, पांच या उससे अधिक न्यायाधीश होने चाहिए...अनुच्छेद 142, अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल बन गया है, जो न्यायपालिका के लिए चौबीसों घंटे उपलब्ध है।' 

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा का मामला भी उठाया, जो पिछले महीने अपने आधिकारिक आवास पर कथित तौर पर नकदी के बंडल पाए जाने के बाद सुर्खियों में थे।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि कथित नकदी की बरामदगी के बाद अभी तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है। साथ ही उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों के पैनल ने भी अपनी जांच के निष्कर्षों का खुलासा नहीं किया है। उन्होंने कहा कि अब एक महीने से ज्यादा हो गया है, लेकिन अब समय आ गया है कि इस संबंध में सामने आई बातों को उजागर कर दिया जाए। 

क्या है संविधान का आर्टिकल-142

संविधान का अनुच्छेद -142 दरअसल सर्वोच्च न्यायालय को किसी मामले में 'पूर्ण न्याय' के लिए आवश्यक कोई भी डिक्री या आदेश पारित करने का अधिकार देता है। इसमें कहा गया है, 'सर्वोच्च न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए ऐसी डिक्री पारित कर सकता है या ऐसा आदेश दे सकता है जो उसके समक्ष लंबित किसी मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक हो, और इस प्रकार पारित की गई कोई भी डिक्री या दिया गया आदेश भारत के पूरे क्षेत्र में संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून की तरह या उसके द्वारा निर्धारित तरीके से लागू किया जा सकेगा और जब तक इस संबंध में कोई प्रावधान नहीं किया जाता है, तब तक राष्ट्रपति द्वारा आदेश द्वारा निर्धारित तरीके से इसे लागू किया जा सकेगा।'

यह प्रावधान सुप्रीम कोर्ट को 'किसी व्यक्ति की उपस्थिति सुनिश्चित करने, किसी दस्तावेज के प्रस्तुत करने या उसकी खोज, या कोर्ट की किसी अवमानना ​​की जांच या दंड देने के उद्देश्य से कोई भी आदेश देने' का अधिकार देता है।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला दिया था जिस पर नाराज हुए उपराष्ट्रपति?

हाल में 8 अप्रैल को एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि द्वारा राज्य विधानसभा द्वारा पारित 10 विधेयकों को मंजूरी न देने को 'अवैध' और 'असंवैधानिक' माना था।

जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की पीठ ने डीएमके के नेतृत्व वाली तमिलनाडु सरकार द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई के बाद यह फैसला दिया था। तमिलनाडु सरकार की याचिका में राज्यपाल द्वारा बार-बार देरी करने और इन विधेयकों को मंजूरी देने से इनकार करने को चुनौती दी गई थी।

फैसले में शीर्ष अदालत ने विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्यपालों के साथ-साथ राष्ट्रपति के लिए भी दिशा-निर्देश निर्धारित किए। कोर्ट ने फैसला सुनाया कि राज्यपाल संवैधानिक रूप से विधेयकों पर 'तेजी से' कार्रवाई करने के लिए बाध्य हैं और एक बार वापस भेजने के बाद वे राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयकों को रोक नहीं सकते।

सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा भेजे गए विधेयकों को मंजूरी देने या न देने का निर्णय लेने के लिए तीन महीने की समय-सीमा भी तय की थी।

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