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नई दिल्लीः पिछले दिनों (31 जुलाई) लोकसभा सांसद और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ लोकसभा में विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया था। यह नोटिस इस बात पर आधारित था कि प्रधानमंत्री ने भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर के उस भाषण को अपनी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर साझा किया, जिसमें से कुछ अंश हटा दिए गए थे।
चरणजीत सिंह चन्नी ने आरोप लगाया था कि प्रधानमंत्री ने अनुराग ठाकुर के पूरे भाषण का लिंक साझा किया, लेकिन उस भाषण के कुछ शब्दों को हटा दिया गया था। चन्नी का कहना था कि हटाए गए शब्दों या अंशों को ट्वीट करना या सार्वजनिक करना विशेषाधिकारों के हनन के बराबर है।
सामान्य रूप से, हटाए गए शब्दों या टिप्पणियों को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। इस मामले में, चन्नी ने दावा किया था कि प्रधानमंत्री द्वारा अनुराग ठाकुर के भाषण का लिंक साझा करना, जिसमें हटाए गए अंश भी शामिल थे, उनके विशेषाधिकारों का उल्लंघन है।
कल BJP सांसद अनुराग ठाकुर ने अपने भाषण में बहुत सारे आपत्तिजनक शब्द बोले।
उनके आपत्तिजनक भाषण को लोक सभा स्पीकर ने Expunge कर दिया, हटा दिया। स्पीकर द्वारा Expunge किए गए भाषण का प्रसार-प्रचार नहीं किया जा सकता।
लेकिन, मैं हैरान हूं कि देश के प्रधानमंत्री ने भाषण के उसी हिस्से… pic.twitter.com/2upqZW48tr
— Congress (@INCIndia) July 31, 2024
ऊपर की घटने के संदर्भ में हम सझेंगे कि विशेषाधिकार हनन नोटिस क्या होता है और सांसदों और विधायकों के क्या विशेषाधिकार होते हैं।
सांसदों और विधायकों के विशेषाधिकार
चाहे सांसद हो या विधायक, उन्हें कुछ विशेष अधिकार प्राप्त हैं। जैसे कि विधानसभा या संसद में उनके बारे में गलत बातें नहीं की जा सकती। उनके भाषण को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती।
अगर कोई दूसरा सांसद या विधायक उनके बारे में कुछ कहता है, तो उन्हें जवाब देने का हक है। जब विधानसभा या संसद चल रही हो, तो सरकार को पहले उन्हें ही बताना होता है कि कोई नया कानून या नियम बन रहा है। इसलिए जब संसद चल रही हो, तो सरकार मंत्रिमंडल के फैसले बाहर नहीं बताती।
इन विशेषाधिकारों का उद्देश्य विधायिका को सुचारू रूप से चलाने, सांसदों को अनावश्यक हस्तक्षेप से बचाने और खुली और सार्थक बहस को बढ़ावा देना है। हालांकि, इन विशेषाधिकारों का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए और जनता की जांच-पड़ताल की प्रक्रिया पर असर नहीं पड़ना चाहिए।
विशेषाधिकार का उल्लंघन क्या है?
यदि कोई सदस्य या मंत्री कोई निराधार टिप्पणी करता है या कोई व्यक्ति किसी सांसद की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाता है या उसे काम करने से रोकता है, तो सांसद या विधायक अध्यक्ष (या राज्यसभा के मामले में सभापति) के समक्ष शिकायत दर्ज करा सकता है कि उसके विशेषाधिकार का उल्लंघन किया गया है।
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किसी पीएम या पूर्व प्रधानमंत्री को किसी विशेषाधिकार नोटिस का सामना करना पड़ा है?
हां, इमरजेंसी खत्म होने के एक साल बाद, 22 नवंबर, 1978 को लोकसभा की विशेषाधिकार समिति ने फैसला किया कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सदन की अवमानना की दोषी हैं। जनता पार्टी के सांसद समर गुहा की अध्यक्षता वाली इस समिति ने सीपीएम सांसद ज्योतिर्मय बोसु की शिकायत की जांच की थी।
बोसु ने आरोप लगाया था कि इंदिरा गांधी सरकार ने 1975 में उनके द्वारा पूछे गए एक सवाल के लिए मारुति पर जानकारी जुटाने वाले सरकारी अधिकारियों को रोड़ा बनाया। इसके लिए इंदिरा गांधी को 1978 में सदन से भी निकाल दिया गया था।
संसद में विशेषाधिकारों पर क्या है नियम
लोकसभा के नियम 222 के अनुसार, कोई भी सांसद अध्यक्ष की अनुमति से सदन के किसी सदस्य या सदन स्वयं या उसकी किसी समिति के विशेषाधिकार के हनन से संबंधित प्रश्न उठा सकता है।
यानी, अगर किसी सांसद को लगता है कि सदन के किसी सदस्य, पूरे सदन या सदन की किसी समिति के अधिकारों का उल्लंघन हुआ है, तो वह इस नियम के तहत मामला उठा सकता है, लेकिन इसके लिए उसे पहले अध्यक्ष की इजाजत लेनी होगी।
वहीं, नियम 223 में कहा गया है कि "विशेषाधिकार का प्रश्न उठाने की इच्छा रखने वाले सदस्य को प्रश्न उठाने वाले दिन सुबह 10 बजे तक सचिवालय जनरल को लिखित सूचना देनी होगी।"