बुलडोजर कार्रवाई पर रोक...सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले पर अपने आदेश में क्या कहा है?

याचिकार्ता जमीयत उलेमा-ए-हिंद का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सीयू सिंह और एमआर शमशाद ने तुषार मेहता के दलीलों का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि इस तरह की तोड़फोड़ की कार्रवाई हर रोज हो रही है और यह एक गंभीर मुद्दा है।

एडिट
Supreme Court rejected petition to give menstrual leaves to women directed the Center to make model policy

सुप्रीम कोर्ट (फोटो- IANS)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को 'बुलडोजर कार्रवाई' पर रोक लगा दी है। 'बुलडोजर कार्रवाई' के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए ये आदेश दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि सार्वजनिक सड़क या रेलवे या जल निकायों पर अतिक्रमण के मामले को छोड़कर बिना अनुमति के देश में एक अक्टूबर तक कोई भी तोड़फोड़ नहीं की जाएगी।

कोर्ट में यह याचिका जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा दायर की गई थी। यह याचिका उत्तर प्रदेश सरकार के बुलडोजर एक्शन के खिलाफ दायर की गई थी।

मामले में कोर्ट ने क्या कहा है

मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल (एसजी) से बुलडोजर कार्रवाई के महिमामंडन को बंद करने को कहा है। उन्होंने कहा कि बुलडोजर का महिमामंडन करने का काम किया गया है।

पीठ ने कहा कि अगर आप सार्वजनिक सड़क या रेलवे लाइन पर स्थित मंदिर या गुरुद्वारा या मस्जिद को ध्वस्त करना चाहते हैं तो हम आपसे सहमत होंगे, लेकिन किसी अन्य मामले में इसे स्वीकार नहीं किया जाएगा।

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने क्या तर्क दिया है

इसके आलावा जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने केंद्र से नगर निगम के कानूनों और प्रक्रियाओं का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए कहा है।

याचिकार्ता जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कोर्ट में तर्क दिया था कि देश में भाजपा शासित राज्यों में मुस्लिमों को निशाना बनाया जा रहा है और उनके खिलाफ 'बुलडोजर कार्रवाई' की जा रही है।

तुषार मेहता ने कोर्ट के आदेश पर जताई आपत्ति

हालांकि, सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने कोर्ट के आदेश पर आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि इस तरह से अधिकारियों का हाथ नहीं बांधा जा सकता है।

तुषार मेहता ने कोर्ट में आगे कहा है कि साल 2022 में नोटिस जारी किया गया था जिसके बाद बुलडोजर द्वारा इस तरह की कार्रवाई की गई है। इस पर पीठ ने जवाब देते हुए कहा कि जब साल 2022 में नोटिस जारी किए गए तो अब 2024 में जल्दीबाजी क्यों की जा रही है।

तुषार मेहता ने आगे तर्क दिया कि अदालत एक झूठे नैरेटिव से प्रभावित हो रहा है जिसमें बुलडोजर की कार्रवाई को अवैध करार दिया जा रहा है। मेहता ने यह भी कहा है कि नैरेटिव में यह भी शामिल किया गया है कि इससे केवल एक ही समुदाय को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।

विध्वंस अभी जारी है-याचिकार्ता

कोर्ट में मेहता ने कहा कि हमें एक उदाहरण दें जिसमें यह पता चले के इस तरह की कार्रवाई गैरकानूनी है। उन्होंने तर्क दिया कि एक समुदाय सरकार की कार्रवाई को एक नैरेटिव बना कर पेश कर रही है।

मेहता ने यह भी कहा है कि जिन के खिलाफ कार्रवाई होती है वे सामने नहीं आते हैं क्योंकि उन्हें पता होता है कि इस बारे में उन्हें पहले ही नोटिस दिया गया होता है।

याचिकार्ता जमीयत उलेमा-ए-हिंद का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सीयू सिंह और एमआर शमशाद ने तुषार मेहता के दलीलों का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि इस तरह की तोड़फोड़ की कार्रवाई हर रोज हो रही है और यह एक गंभीर मुद्दा है।

दोनों पक्षों के तर्क को सुनने के बाद और तुषार मेहता की कड़ी आपत्ति के बावजूद पीठ ने यह आदेश पारित किया है। जस्टिस गवई ने कहा कि मैं संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत ऐसा आदेश पारित कर रहा हूं। आप दो सप्ताह तक अपने हाथ को क्यों नहीं रोक सकते?

अपने हाथ रोक लेंगे तो आसमान नहीं गिर जाएगा-पीठ

सॉलिसिटर जनरल ने कहा, "कृपया आदेश में कहें कि प्रक्रिया का पालन किए बिना कोई तोड़ फोड़ की कार्रवाई नहीं की जाएगी।"

इस पर जस्टिस केवी विश्वनाथन ने कहा, "अगर अवैध रूप से ध्वस्तीकरण का एक भी मामला है तो यह संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है। आप अपने हाथ रोक लेंगे तो आसमान नहीं गिरेगा। आप एक हफ्ते तक का इंतजार कर सकते हैं।" बता दें कि इस मामले की अगली सुनवाई एक अक्टूबर को होगी।

समाचार एजेंसी आईएएनएस के इनपुट के साथ

यह भी पढ़ें
Here are a few more articles:
Read the Next Article