बेंगलुरुः कर्नाटक जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट 11 अप्रैल को राज्य कैबिनेट के समक्ष प्रस्तुत की गई। यह रिपोर्ट 13 महीने बाद प्रस्तुत की गई है। इस सर्वेक्षण रिपोर्ट में ऐसा अनुमान लगाया गया है कि अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी 69.6 प्रतिशत है। यह संख्या वर्तमान में अनुमानित संख्या से 38 प्रतिशत अधिक है।
सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक सर्वेक्षण ने राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण की सीमा 32 प्रतिशत से बढ़ाकर 51 प्रतिशत करने की वकालत की है। वहीं, मुस्लिमों के लिए आठ प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। ऐसे में रिपोर्ट आने के बाद कांग्रेस के भीतर भी कहीं न कहीं फूट देखने को मिल रही है क्योंकि डीके शिवकुमार जैसे प्रमुख नेता इसे "अवैज्ञानिक" करार दे चुके हैं। वहीं, पार्टी के कुछ अन्य नेताओं ने इसे रद्द करने की मांग की है। '
कांग्रेस पर विपक्ष है हमलावर
ऐसे में कांग्रेस पार्टी अब इस रिपोर्ट को लेकर काफी सावधानी बरत रही है। 17 अप्रैल को इसके निष्कर्षों पर चर्चा होनी है लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की तरफ से इसका विरोध झेलना पड़ सकता है।
हालांकि सीएम सिद्धारमैया ने इस रिपोर्ट का स्वागत किया है और कहा कि यदि हमारे पास जातिगत आंकड़े नहीं होंगे तो हम परिवारों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति के बारे में कैसे जानेंगे?
वहीं, डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने कहा कि उन्होंने इस रिपोर्ट को अभी नहीं पढ़ा है। उन्होंने 11 अप्रैल को कहा था मैं पढ़कर इस रिपोर्ट की समीक्षा करूंगा और देखूंगा क्या मामले हैं, उनमें सुधार करूंगा।
भारतीय जनता पार्टी और जनता दल सेक्युलर के नेताओं ने इस रिपोर्ट पर कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि यह सिद्धारमैया की सत्ता में बने रहने की चाहत को दर्शाता है। जनता दल सेक्युलर के नेता और केंद्रीय मंत्री एच डी कुमारस्वामी ने कहा कि "जाति जनगणना का कोई अर्थ नहीं है। कांथराज आयोग की रिपोर्ट एक दशक पहले तैयार हुई थी। इसे क्यों नहीं लागू किया गया था?"
अति पिछड़ा वर्ग की नई श्रेणी बनाने की सिफारिश
इसके साथ ही इस सर्वेक्षण में अति पिछड़ा वर्ग की एक नई उपश्रेणी बनाने की बात की है जिसमें उन समुदायों को हिस्सा मिलेगा जो वर्तमान में अन्य पिछड़ा वर्ग और दलित समुदाय के अंतर्गत आते हैं और उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया है। हालांकि यह सर्वेक्षण रिपोर्ट अभी सार्वजनिक नहीं की गई है।
यह रिपोर्ट मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के पहले कार्यकाल के दौरान साल 2014 में तैयार की गई थी। इसे कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (केएसबीसीसी) के तहत तैयार किया गया था।
केएसबीसीसी के अध्यक्ष एच कंथराज इसकी अध्यक्षता कर रहे थे। हालांकि यह रिपोर्ट साल 2024 में 29 फरवरी को जमा की गई थी लेकिन कांग्रेस पार्टी के अंदर वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय की प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं के चलते इसे सार्वजनिक नहीं किया गया था। वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय के लोगों ने इसे "अवैज्ञानिक और पुराना" करार दिया था।
राज्य के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने भी इस रिपोर्ट को पेश करने का विरोध किया था। शिवकुमार वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं।
कांग्रेस ने सामाजिक न्याय के लिए जताई प्रतिबद्धता
बीते सप्ताह अहमदाबाद में हुई बैठक में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता पर जोर दिया। नौ अप्रैल को इस बैठक में तेलंगाना में हुए जातिगत सर्वेक्षण पर प्रकाश डाला गया और राष्ट्रीय जनगणना की मांग की गई। इसके बाद 11 अप्रैल को कर्नाटक कैबिनेट के समक्ष रिपोर्ट को प्रस्तुत किया गया।
ऐसे में जानते हैं कि इस सर्वेक्षण में क्या बातें सामने निकल कर आईं हैं -
वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय
राज्य में ये दो समुदाय प्रमुख हैं। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में इन्हें क्रमशः ओबीसी आरक्षण के तृतीय (अ) और तृतीय (ब) रखा गया है। वोक्कालिगा समुदाय की संख्या 12 प्रतिशत है तो वहीं लिंगायत समुदाय के 13.6 प्रतिशत लोग हैं। ओबीसी आरक्षण के तहत इन्हें वर्तमान में क्रमशः चार और पांच प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है। दोनों ही समुदाय आरक्षण सीमा बढ़ाए जाने की मांग कर रहे हैं।
वोक्कालिगा समुदाय के लोग जनता दल (सेक्युलर) के समर्थक माने जाते हैं। यह पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की पार्टी है। वहीं, लिंगायत समुदाय के लोग पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा के समर्थक माने जाते हैं।
मुस्लिम समुदाय
मुस्लिम समुदाय जो पिछड़ा वर्ग की द्वितीय (ब) श्रेणी में आता है। राज्य में इनकी संख्या 12.58 प्रतिशत आंकी गई है। दलितों और लिंगायतों के बाद राज्य में सबसे बड़ा समूह हैं। वहीं, द्वितीय (अ) श्रेणी में रखे गए अन्य पिछड़ा वर्ग की संख्या 25.36 प्रतिशत आंकी गई है। वहीं, सबसे पिछड़ा वर्ग की संख्या 5.84 प्रतिशत बताई गई है। इसे प्रथम(अ) श्रेणी में रखा गया है।
मौजूदा व्यवस्था के अनुसार, मुसलमानों को द्वितीय (ब) श्रेणी के तहत चार प्रतिशत आरक्षण व्यवस्था की गई है। अन्य पिछड़ा वर्ग को द्वितीय(अ) श्रेणी के अंतर्गत 15 प्रतिशत आरक्षण मिलता है। जबकि सबसे पिछड़ा वर्ग को प्रथम (अ) श्रेणी के अंतर्गत चार प्रतिशत का आरक्षण दिया गया है जबकि दोनों समूहों की संख्या संयुक्त रूप से 33 प्रतिशत के करीब आंकी गई है।
राज्य में एससी, एसटी के साथ-साथ ओबीसी और मुसलमानों को कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक माना जाता है।
एससी, एसटी और सामान्य श्रेणी
इस रिपोर्ट के तहत राज्य में एससी की संख्या 18.27 प्रतिशत और एसटी की संख्या 7.15 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया गया है। वहीं, सामान्य श्रेणी के लोगों की संख्या राज्य में 4.97 प्रतिशत आंकी गई है।
रिपोर्ट में क्या सुझाव दिए गए हैं?
इस रिपोर्ट में जनसंख्या के आधार पर आरक्षण की बात की गई है।
आयोग ने यह सुझाव दिया है कि अन्य पिछड़ा वर्ग की आरक्षण सीमा 19 प्रतिशत बढ़ाई जानी चाहिए। ऐसे में अभी यह संख्या 32 प्रतिशत है जो बढ़कर 51 प्रतिशत हो सकती है।
इसमें सबसे अधिक वृद्धि सात प्रतिशत की है जो द्वितीय-(अ) श्रेणी के तहत सिफारिश की गई है। इसमें कुरुबा जैसे समुदाय शामिल हैं। इस समुदाय से सीएम सिद्धारमैया ताल्लुक रखते हैं।
वहीं, आयोग ने एक नई अति पिछड़ा वर्ग श्रेणी बनाने की बात की है, जिसे अभी प्रथम (ब) कहा जाता है। इसे द्वितीय (अ) श्रेणी से निकाला जाएगा। वर्तमान में इस श्रेणी को 15 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त है। कुर्बा जैसे समुदाय जो पहले द्वितीय (अ) श्रेणी के अंतर्गत आते हैं उन्हें इस श्रेणी से निकालकर नई श्रेणी में जोड़ने की बात की गई है। नई श्रेणी को 12 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा और द्वितीय (अ) श्रेणी को का आरक्षण घटाकर 10 प्रतिशत किया जाएगा।
इसके साथ ही आयोग ने मुस्लिम श्रेणी के लिए चार प्रतिशत बढ़ाने की सिफारिश की है और वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय के लिए तीन-तीन प्रतिशत बढ़ाने की वकालत की है।