सुप्रीम कोर्ट का बांग्लादेशी घुसपैठ की पहचान करने के अभियान पर फिलहाल रोक लगाने से इनकार

याचिकाकर्ता पश्चिम बंगाल प्रवासी श्रमिक कल्याण बोर्ड ने सर्वोच्च न्यायालय से आग्रह किया था कि वह केंद्र सरकार को गृह मंत्रालय द्वारा जारी उस पत्र को वापस लेने का निर्देश दे, जिसमें संदिग्ध प्रवासियों को हिरासत में लेने की बात कही है।

gujrat police arrested more than one thousand illegal bangladeshi citizens after pahalgam terror attack

प्रतीकात्मक तस्वीर Photograph: ( Photograph: (आईएएनएस))

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशियों की पहचान के लिए चलाए जा रहे अभियान पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। इस दौरान, अदालत ने अवैध घुसपैठ पर चिंता व्यक्त की और साथ ही देश के वास्तविक कामगारों की पहचान के लिए एक तंत्र बनाने पर जोर दिया।

जस्टिस सूर्य कांत ने कड़े शब्दों में कहा, 'हम जमीनी हकीकतों को नजरअंदाज नहीं कर सकते। मान लीजिए कोई घुसपैठिया है और वह अवैध रूप से घुस आया है। ऐसी स्थिति से कैसे निपटा जाए? अगर आप हिरासत में नहीं लेंगे, तो यह तय है कि वे गायब हो जाएँगे।'

जस्टिस कांत ने कहा, 'हाँ, (श्रमिकों की पहचान के लिए) कुछ व्यवस्था होनी चाहिए। हो सकता है कि मूल स्थान से कोई कार्ड हो और दूसरे राज्य के अधिकारी उसे प्रामाणिक रूप से स्वीकार कर सकें।'

सुप्रीम कोर्ट में यह सुनवाई ऐसे समय में हुई है जब राष्ट्रीय राजधानी में बंगाली भाषी लोगों को बांग्लादेशी नागरिक होने के संदेह में उनकी पहचान सत्यापित किए बिना ही हिरासत में लिए जाने जैसी बातें सामने आई हैं। पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने बंगालियों को निशाना बनाने के लिए भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की आलोचना की है। दूसरी ओर कोलकाता पुलिस ने कथित उत्पीड़न और पहचान जाँच का सामना कर रहे राज्य के प्रवासी कामगारों के लिए एक हेल्पलाइन शुरू की है।

मामले में याचिकाकर्ता पश्चिम बंगाल प्रवासी श्रमिक कल्याण बोर्ड ने सर्वोच्च न्यायालय से आग्रह किया था कि वह केंद्र सरकार को गृह मंत्रालय द्वारा मई 2025 में जारी उस पत्र को वापस लेने का निर्देश दे, जिसमें संदिग्ध प्रवासियों को हिरासत में लेने की बात कही है। साथ ही याचिका में कहा गया है कि राज्यों को 'बंगाली प्रवासी श्रमिकों' को गैरकानूनी रूप से हिरासत में लेने से रोकने का निर्देश दिया जाए।

सुप्रीम कोर्ट को केंद्र और राज्यों के जवाब का इंतजार

जस्टिस कांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा, 'जिन राज्यों में ये प्रवासी कामगार काम कर रहे हैं, उन्हें उनके मूल राज्य से उनकी वास्तविक स्थिति के बारे में पूछताछ करने का अधिकार है, लेकिन समस्या इस अंतराल में है। अगर हम कोई अंतरिम आदेश पारित करते हैं, तो इसके बुरे परिणाम भी होंगे। खासकर वे लोग जो अवैध रूप से सीमा पार से आए हैं और जिन्हें कानून के तहत निर्वासित करने की आवश्यकता है।'

हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने याचिकाकर्ता पश्चिम बंगाल प्रवासी कल्याण बोर्ड की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण से केंद्र और नौ राज्यों - ओडिशा, राजस्थान, महाराष्ट्र, दिल्ली, बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा और पश्चिम बंगाल के जवाबों का कुछ समय तक इंतजार करने को कहा। अदालत ने आगे कहा कि वह मामले की अगली सुनवाई 25 अगस्त को करेगी।

भूषण ने आरोप लगाया कि गृह मंत्रालय (एमएचए) द्वारा जारी एक परिपत्र के आधार पर, राज्यों द्वारा लोगों को सिर्फ इसलिए परेशान किया जा रहा है क्योंकि वे बंगाली भाषा बोलते हैं और उनके पास उस भाषा के दस्तावेज हैं।

उन्होंने अदालत से कहा, 'उनकी प्रामाणिकता की जाँच के दौरान उन्हें हिरासत में रखा जा रहा है और कुछ मामलों में, उन्हें प्रताड़ित भी किया जा रहा है। कृपया एक अंतरिम आदेश पारित करें जिसमें कहा जाए कि कोई हिरासत नहीं होगी। मुझे पूछताछ से कोई समस्या नहीं है, लेकिन किसी को हिरासत में नहीं लिया जाना चाहिए।'

इससे पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भाजपा पर पश्चिम बंगाल के लोगों को कथित तौर पर बांग्लादेशी बताने का आरोप लगा चुकी हैं।

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