कोलकाता: पश्चिम बंगाल में ओबीसी आरक्षण को लेकर एक बार फिर सियासत गरमा गई है। बीजेपी के आईटी सेल प्रमुख और राज्य के लिए पार्टी के केंद्रीय पर्यवेक्षक अमित मालवीय ने बुधवार को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के उस दावे को खारिज किया जिसमें उन्होंने कहा था कि राज्य सरकार द्वारा तैयार की गई नई ओबीसी सूची का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है।
मंगलवार को विधानसभा के मानसून सत्र में ममता बनर्जी ने कहा था कि नई ओबीसी सूची पूरी तरह आर्थिक पिछड़ेपन पर आधारित है, न कि धर्म पर। उन्होंने यह भी बताया कि फिलहाल ओबीसी-ए वर्ग में 49 जातियाँ और ओबीसी-बी वर्ग में 91 जातियाँ शामिल हैं, और जल्द ही 50 और जातियाँ जोड़ी जाएंगी।
मालवीय ने तुष्टीकरण का लगाया आरोप
अमित मालवीय ने बुधवार को अपने एक्स पोस्ट में ममता बनर्जी के दावे को खारिज करते हुए आरोप लगाया कि राज्य सरकार की नई सूची धर्म आधारित है, न कि आर्थिक पिछड़ेपन पर। भाजपा नेता ने कहा कि उनके अनुसार, 2010 से पहले, जब राज्य में वाम मोर्चा सत्ता में था, कुल 66 ओबीसी जातियों में से केवल 11 मुस्लिम समुदाय से थीं, यानी मुस्लिम हिस्सेदारी मात्र 20% थी। लेकिन 2025 की प्रस्तावित नई सूची में भारी अंतर दिखता है।
मालवीय ने पोस्ट में लिखा कि भाग-1 में जो 51 नई जातियाँ जोड़ी गई हैं, उनमें से 46 यानी 90 % मुस्लिम समुदाय से हैं। वहीं, भाग-2 में 25 नई जातियों में से 21 यानी 84% मुस्लिम समुदाय से हैं। यानी कुल मिलाकर, नई सूची में शामिल 76 जातियों में से 88% से अधिक मुस्लिम समुदाय से हैं। आमित मालवीय ने सवाल किया कि अगर यह धर्म आधारित तुष्टीकरण नहीं है, तो और क्या है?
OBC = Other Backward Classes, but in West Bengal under Mamata Banerjee, it has become nothing more than a brazen attempt to appease Muslims, in gross violation of constitutional provisions.
— Amit Malviya (@amitmalviya) June 11, 2025
🧾 Mamata claimed in the Assembly: “OBC list not based on religion.”
🛑 FACT CHECK: Her… pic.twitter.com/Y5Fun4XP4h
आरक्षण में इजाफा और अदालत की अवमानना का आरोप
मालवीय ने यह भी कहा कि 3 जून 2025 को राज्य सरकार ने राज्य सेवाओं में ओबीसी आरक्षण को 7 प्रतिशत से बढ़ाकर 17 प्रतिशत कर दिया, जिससे स्पष्ट है कि यह नया लाभ इन्हीं नव-शामिल मुस्लिम समूहों को दिया गया है।
उन्होंने याद दिलाया कि 9 दिसंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं दिया जा सकता। इससे पहले, मई 2024 में कोलकाता हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच (न्यायमूर्ति तपब्रत चक्रवर्ती और न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा) ने 2010 के बाद जारी सभी ओबीसी प्रमाणपत्रों को अवैध ठहरा दिया था, जिससे लगभग 5 लाख से अधिक प्रमाणपत्र रद्द हो गए थे।
मालवीय का आरोप- ईसाई धर्मांतरण को ओबीसी दर्जा
मालवीय ने यह भी दावा किया कि ओबीसी सूची के बिंदु संख्या 17 में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि जो लोग ईसाई धर्म अपनाते हैं, वे स्वतः ओबीसी माने जाएंगे और उनके बच्चे भी आरक्षण का लाभ ले सकेंगे। उन्होंने इसे "धर्मांतरण को इनाम" करार दिया।
राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले के बाद मार्च 2025 में सुप्रीम कोर्ट से अनुमति लेकर नया सर्वे शुरू किया था। लेकिन बीजेपी नेता शुभेंदु अधिकारी समेत कई विपक्षी नेताओं ने इस सर्वे के तरीके पर सवाल उठाए हैं। उनका आरोप है कि यह प्रक्रिया वही है जिसे पहले कोर्ट खारिज कर चुकी है।
अधिकारी ने कहा, "यह ममता बनर्जी की मुस्लिम लीग सरकार है, जो पूरी तरह से वोट बैंक की राजनीति में लिप्त है। यह सरकार मुसलमानों की सरकार बनकर रह गई है, जो वास्तविक हिंदू ओबीसी का अधिकार छीन रही है।"
भाजपा ओबीसी मोर्चा की ओर से 13 जून को विरोध रैली
शुभेंदु अधिकारी ने बताया कि इस मुद्दे को लेकर भाजपा पहले ही कोलकाता हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा चुकी है और संभवतः इसकी सुनवाई शुक्रवार या फिर अगले सोमवार को हो सकती है। उन्होंने कहा, राज्य सरकार की यह कार्यप्रणाली पूरी तरह असंवैधानिक और गैरकानूनी है। इसका विरोध कोर्ट से लेकर सड़क तक होगा। उन्होंने यह भी घोषणा की कि भाजपा ओबीसी मोर्चा की ओर से 13 जून को साल्ट लेक स्थित बैकवर्ड क्लास कमीशन ऑफिस के सामने एक विरोध रैली आयोजित की जाएगी।
मुख्यमंत्री बनर्जी ने दावा किया कि यह प्रक्रिया वैज्ञानिक सर्वेक्षण और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार हुई है। लेकिन सवाल यह है कि जब मुस्लिम आबादी राज्य में लगभग 27% है, तो ओबीसी सूची में उनका प्रतिनिधित्व 88% से अधिक कैसे हो गया?
गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाल ही में विधानसभा में कहा कि राज्य सरकार की नई ओबीसी सूची "धर्म के आधार पर नहीं" बल्कि आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर तैयार की गई है। उन्होंने राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (WBCBC) की वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए कहा, "हमारी सरकार धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं देती, यह पूरी तरह बेबुनियाद प्रचार है।"