वायनाड भूस्खलन के बाद शवों की पहचान में जुटे फोरेंसिक विशेषज्ञों के सामने क्या आ रही समस्याएं?

एडिट
वायनाड भूस्खलन के बाद शवों की पहचान में जुटे फोरेंसिक विशेषज्ञों के सामने क्या आ रही समस्याएं?

वायनाड भूस्खलन के बाद शवों की पहचान में जुटे फोरेंसिक विशेषज्ञों के सामने क्या आ रही समस्याएं?(Photo: IANS)

वायनाडः वायनाड भूस्खलन में मची तबाही ने न केवल कई जिंदगियों को खत्म कर दिया, बल्कि उन शवों की पहचान करना भी एक कठिन चुनौती बन गया है जो मलबे और नदियों से मिले थे। भूस्खलन के बाद, कन्नूर के क्षेत्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला के विशेषज्ञों के सामने यही चुनौती खड़ी हो गई है। हादसे के बाद कई जगहों से अलग-अलग अंग बरामद किए गए थे, जिनमें एक कटा हुआ हाथ और बिखरे हुए शरीर शामिल थे।

231 शव बरामद, 118 लोग लापता

भूस्खलन वाली जगहों से कुछ शव बरामद किए गए थे, लेकिन पास के मलप्पुरम जिले के नीलांबुर में कई कटे हुए अंग बरामद हुए हैं जिसे पन्नापुझा नदी अपने साथ बहाकर ले गई थी। एक सप्ताह के बचाव अभियान के बाद, 231 शव बरामद किए गए जबकि 118 लोग अब भी लापता हैं। इनका कोई सुराग नहीं मिला और उन्हें मृत मान लिया गया है। जबकि परिवार वाले डीएनए परीक्षण के जरिए उनकी पहचान की उम्मीद लगाए बैठे थे।

डीएनए परीक्षण: सामूहिक कब्र से पहचान की कोशिश

अज्ञात शवों और अंगों को भविष्य की पहचान के लिए उनको एक विशिष्ट नंबर दिए गए हैं। इसके बाद उन्हें पुथुमाला में एक सामूहिक कब्र में दफन किया गया जो कि चूरलमाला गांव से मात्र 5 किलोमीटर दूर है। इन शवों को दफनाने से पहले डीएनए परीक्षण के लिए नमूने लिए गए जिनमें  421 नमूने कन्नूर स्थित प्रयोगशाला में भेजे गए।

कन्नूर की प्रयोगशाला में डीएनए परीक्षण की प्रक्रिया तेजी से चल रही है। इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला के निदेशक डॉ. प्रदीप साजी ने कहा कि “इतनी बड़ी संख्या में नमूनों का परीक्षण करना बेहद चुनौतीपूर्ण था, लेकिन कन्नूर की लैब में बेहतरीन डीएनए परीक्षण सुविधाएं उपलब्ध थीं, जिससे यह कार्य संभव हो सका।”

डीएनए परीक्षण की जटिल प्रक्रिया

डॉ. प्रदीप साजी ने कहा कि हमने विभिन्न जिलों से अपनी टीम को बुलाया और उन्होंने दिन-रात काम किया ताकि नमूनों का परीक्षण समय पर हो सके। वहीं, प्रयोगशाला की संयुक्त निदेशक बुशरा बीगम ने डीएनए परीक्षण की प्रक्रिया समझाते हुए कहा, “ज्यादातर नमूने अज्ञात शवों की हड्डियों से लिए गए थे। कुछ मामलों में दांत और शरीर के ऊतकों से नमूने लिए गए। हड्डियों से डीएनए निकालना सबसे अधिक समय लेने वाला काम होता है, क्योंकि हड्डी के गूदे को निकालने के लिए हड्डी को अच्छी तरह से साफ किया जाता है, जिसमें चार घंटे तक लग सकते हैं।”

फोरेंंसिक टीम को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिनमें से एक थी - कम मात्रा में डीएनए। नदी से मिले कई ऊतक सड़ चुके थे, जिनमें डीएनए की आवश्यक मात्रा नहीं थी। परीक्षण के बाद, टीम ने डीएनए नमूनों को उनके समानता के आधार पर 60 समूहों में बांटा। इन समूहों की तुलना उन व्यक्तियों के परिजनों से लिए गए रक्त नमूनों से की गई, जो लापता थे।

प्रयोगशाला के अधिकारियों ने बताया कि कुछ मामलों में पूरे परिवार भूस्खलन में समाप्त हो गए थे, इसलिए पुलिस ने विस्तारित रिश्तेदारों को ढूंढा। कुछ मामलों में पीड़ितों के पारिवारिक वृक्ष बनाए गए और नमूने एकत्रित करने वाली टीमों को साझा किए गए।

लापता परिजनों की तलाश में पीड़ित परिवार

कई किलोमीटर दूर, वायनाड में सफाद कुनाथ (24 वर्षीय युवक) तीन लापता शिकायतें दर्ज करवा चुका है। उसके पिता हम्सा के, मां जुमैला और छोटे भाई हसीन मुहम्मद का अभी तक कोई पता नहीं चला है। युवक ने कहा, "दो दौर के डीएनए परिणाम आ चुके हैं, लेकिन मेरे परिवार का अभी भी कोई सुराग नहीं है। डीएनए परिणामों के बाद मौत के प्रमाणपत्र जारी किए जाएंगे। अब मैं सिर्फ इंतजार कर रहा हूँ। अगर मेरे परिवार के सदस्य पुथुमाला में दफन शवों में से होते हैं, तो हमें शांति मिलेगी। अन्यथा यह विचार कि वे अभी भी कहीं चट्टानों के नीचे दबे हैं, बहुत दुखद है।"

यह भी पढ़ें
Here are a few more articles:
Read the Next Article