वक्फ संशोधन विधेयक से जुड़े 5 बड़े सवाल जिसे विपक्ष उठा रहा है...सरकार का क्या है जवाब?

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा वक्फ संशोधन विधेयक पहली बार पिछले साल अगस्त में पेश किया गया था। बाद में विपक्ष के विरोध के बीच इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेज दिया गया था।

jagdambika pal and owaisi

फाइल फोटो Photograph: (IANS)

नई दिल्ली: सरकार आज संसद में वक्फ (संशोधन) विधेयक- 2024 को फिर से पेश कर रही है। यह विधेयक वक्फ अधिनियम, 1995 में संशोधन के लिए है, जो भारत में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को नियंत्रित करता है। संशोधन विधेयक के जरिए इसमें कई बदलावों का प्रस्ताव है। सरकार का कहना है कि इन बदवाल से वक्फ संपत्तियों को विनियमित करने और ऐसी संपत्तियों से संबंधित विवादों को निपटाने में मदद मिलेगी।

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा वक्फ संशोधन विधेयक पहली बार पिछले साल अगस्त में पेश किया गया था। बाद में विपक्ष के विरोध के बीच इसे जगदंबिका पाल की अध्यक्षता में बने संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेज दिया गया। इस समिति ने इसी साल 27 फरवरी को 15-11 के मत से 14 संशोधनों को मंजूरी दी। यह सभी स्वीकार किए गए संशोधन भाजपा सांसदों या एनडीए के उसके सहयोगियों द्वारा पेश किए गए थे।

दूसरी ओर समिति में शामिल विपक्षी सदस्यों ने भी विधेयक के प्रति अपना विरोध जताते हुए असहमति नोट प्रस्तुत किए। समिति के सभी विपक्षी सदस्यों ने 1995 के विधेयक में प्रस्तावित 44 संशोधनों को पहले की तरह ही रखे जाने की मांग की। बहरहाल, विधेयक को लोक सभा में आज पेश किया जाना है। संशोधन के कुछ मुद्दें हैं जिसे लेकर विपक्ष मुखरता से विरोध कर रहा है। क्या हैं ये पांच बड़े मुद्दे या सवाल और सरकार इसके पक्ष में अभी तक क्या दलील दे रही है...आइए जानते हैं।

1. वक्फ विधेयक में संशोधन क्यों?

विपक्षी दल या फिर संशोधन का विरोध करने वाले सबसे पहले यही सवाल उठा रहे हैं कि आखिर इसमें बदलाव की क्या जरूरत है? ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि विधेयक का उद्देश्य वक्फ की व्यवस्था और मुसलमानों के अधिकारों को कमजोर करना है।

वहीं, दूसरी ओर सरकार के समर्थकों और प्रवक्ताओं का कहना है कि 1995 के अधिनियम में वक्फ संपत्तियों के विनियमन के संबंध में कुछ खामियाँ हैं। इसमें मालिकान हक का विवाद, वक्फ भूमि पर अवैध कब्जा जैसे मुद्दे शामिल है, जिसके कारण केंद्र के लिए एक नया कानून लाना जरूरी हो गया था।

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक कुछ सरकारी अधिकारियों के अनुसार, वक्फ प्रबंधन पर न्यायिक निगरानी की कमी भी एक प्रमुख मुद्दा है। वक्फ संपत्तियों से संबंधित मामलों की सुनवाई वक्फ न्यायाधिकरण (वक्फ ट्रिब्यूनल) द्वारा की जाती है, जिसके निर्णयों को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती।

खास बात ये भी यह विधेयक ऐसे समय में भी लाया जा रहा है जब वक्फ अधिनियम की संवैधानिक वैधता को ही दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है। सरकार का तर्क है कि संशोधन जरूरी है ताकि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और विनियमन में सुधार हो सके। इस संशोधन में अधिनियम का नाम बदलने, वक्फ की परिभाषा को अपडेट करने, पंजीकरण प्रक्रियाओं में सुधार करने, पारदर्शिता लाने और वक्फ रिकॉर्ड बनाए रखने में तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ाने का प्रस्ताव है।

2. वक्फ में सरकार का बढ़ेगा हस्तक्षेप? 

विधेयक का विरोध कर रहे विपक्ष और कुछ लोगों का कहना है कि यह सरकार को वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में ज्यादा हस्तक्षेप का अधिकार देता है। आरोप लगाए जा रहे हैं कि एक तरह से सरकार को ये निर्धारित करने की शक्ति मिल जाएगा कि कोई संपत्ति वक्फ है या नहीं।

वक्फ अधिनियम की मौजूदा धारा 40 वक्फ बोर्ड को यह तय करने का अधिकार देती है कि कोई संपत्ति वक्फ संपत्ति है या नहीं। बोर्ड का निर्णय तब तक अंतिम माना जाएगा, जब तक कि इसे वक्फ न्यायाधिकरण द्वारा रद्द या संशोधित नहीं किया जाता। 

ताजा बदलाव में इस शक्ति को, जो फिलहाल वक्फ न्यायाधिकरण के पास है, इसे जिला कलेक्टर को प्रदान करता है। विधेयक में कहा गया है कि 'अधिनियम के लागू होने से पहले या बाद में वक्फ संपत्ति के रूप में पहचानी गई या घोषित की गई कोई भी सरकारी संपत्ति वक्फ संपत्ति नहीं मानी जाएगी।' हालांकि, यह निर्धारण वक्फ न्यायाधिकरण द्वारा नहीं बल्कि कलेक्टर द्वारा किया जाना है।

विधेयक में यह भी कहा गया है कि जब तक सरकार कोई निर्णय नहीं ले लेती, विवादित संपत्ति को वक्फ संपत्ति नहीं बल्कि सरकारी संपत्ति माना जाएगा। सूत्रों के अनुसार इस महत्वपूर्ण बदलाव को लाने के पीछे सरकार की मंशा वक्फ कानूनों के कथित दुरुपयोग को लेकर है। अधिकारियों के अनुसार वक्फ अधिनियम की धारा 40 का 'निजी संपत्तियों को वक्फ संपत्ति घोषित करने के लिए व्यापक रूप से दुरुपयोग किया जाता रहा है, जिससे मुकदमेबाजी और अशांति पैदा होती है।'

संशोधनों में 'इस्तेमाल द्वारा वक्फ संपत्ति' की अवधारणा को भी हटाने का प्रयास किया गया है। दरअसल अब तक किसी संपत्ति को वक्फ के रूप में लंबे समय से उपयोग से वक्फ माना जा सकता था, भले ही इसे लेकर मूल घोषणा संदिग्ध हो।

कागजी कार्रवाई/रजिस्ट्रेशन वगैरह की शुरुआत से पहले इस्लामी कानून में किसी संपत्ति को वक्फ के रूप में समर्पित करने का काम काफी हद तक मौखिक रूप से किया जाता था। उदाहरण के लिए वक्फनामा की अनुपस्थिति में भी एक मस्जिद को वक्फ संपत्ति माना जा सकता है यदि इसका लगातार इस तरह से उपयोग किया जाता है। ताजा संशोधन विधेयक वैध वक्फनामा के अभाव में किसी संपत्ति के वक्फ संपत्ति होने को लेकर संदिग्ध बना देता है। यानी किसी दावे के लिए वैध दस्तावेज जरूरी होंगे।

3. संपत्तियों के सर्वे पर सवाल

1995 के अधिनियम में राज्य सरकार द्वारा नियुक्त सर्वेक्षण आयुक्त की ओर से वक्फ की संपत्तियों के सर्वेक्षण करने का प्रावधान है। यह संशोधन विधेयक सर्वेक्षण आयुक्त की जगह यह जरूरी करता है कि जिला कलेक्टर या कलेक्टर द्वारा विधिवत नामित डिप्टी कलेक्टर के पद से नीचे का कोई अन्य अधिकारी सर्वे नहीं करे। 

माना जा रहा है कि सरकार ने इस बदलाव के पीछे तर्क यह दिया है कि कई राज्यों में सर्वेक्षण का काम बेहद खराब रहा है। गुजरात और उत्तराखंड में अभी तक सर्वेक्षण शुरू नहीं हुआ है, जबकि उत्तर प्रदेश में 2014 में आदेशित सर्वेक्षण अभी भी लंबित है।

4. वक्फ बोर्ड के सदस्यों में कौन-कौन?

संशोधन विधेयक को लेकर विपक्ष की ओर से एक और आलोचना यह है कि इसमें वक्फ बोर्डों के सदस्यों को लेकर बड़े बदलाव किए जा रहे हैं। विधेयक में राज्य सरकार द्वारा राज्य स्तर पर वक्फ बोर्डों में एक गैर-मुस्लिम मुख्य कार्यकारी अधिकारी और कम से कम दो गैर-मुस्लिम सदस्यों को नियुक्त करने की अनुमति देने का प्रस्ताव है। विधेयक के आलोचकों का तर्क है कि यह समुदाय के अपने मामलों को स्वयं प्रबंधित करने के अधिकार में हस्तक्षेप है।

वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम प्रतिनिधित्व के मुद्दे पर सरकार के समर्थकों का तर्क है कि इस कदम का उद्देश्य विशेषज्ञता लाना और समुदाय के प्रतिनिधित्व को कम किए बिना पारदर्शिता को बढ़ावा देना है। बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्य जरूर होंगे, लेकिन वे बहुमत नहीं बनाएंगे।

5. लिमिटेशन एक्ट होगा लागू

संशोधन विधेयक में 1995 के कानून की धारा 107 को हटाने का प्रस्ताव है। इस धारा की वजह से परिसीमा अधिनियम, 1963 (Limitation Act, 1963) वक्फ संपत्तियों पर लागू नहीं हो सकता था। दरअसल, परिसीमा अधिनियम एक वैधानिक प्रतिबंध है, जो व्यक्तियों को एक निश्चित अवधि के बाद मुकदमा दायर करने से रोकता है। ऐसे में अगर किसी ने 12 साल या उससे अधिक समय तक किसी संपत्ति पर कब्जा किया है तो लिमिटेशन एक्ट के कारण वक्फ इस संदर्भ में कानूनी मदद नहीं ले सकेगा।

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