नई दिल्लीः उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को कहा कि भारत एक संप्रभु राष्ट्र है और उसकी आंतरिक नीतियों और फैसलों पर कोई भी बाहरी ताकत निर्देश नहीं दे सकती। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे बाहरी 'नैरेटिव्स' से प्रभावित न हों।

जगदीप धनखड़ उपराष्ट्रपति एन्क्लेव में आयोजित एक कार्यक्रम में भारतीय रक्षा संपदा सेवा (IDES) 2024 बैच के प्रशिक्षु अधिकारियों को संबोधित कर रहे थे। समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार, उन्होंने कहा, “बाहरी नैरेटिव्स से प्रभावित न हों। इस देश में, जो एक संप्रभु राष्ट्र है, सभी फैसले इसके नेतृत्व द्वारा लिए जाते हैं। कोई भी ताकत भारत को यह निर्देश नहीं दे सकती कि उसे अपने मामलों को कैसे संभालना है।”

उन्होंने आगे कहा कि भारत अंतरराष्ट्रीय समुदाय का हिस्सा जरूर है और सहयोग व संवाद की भावना से काम करता है, लेकिन अंतिम निर्णय भारत स्वयं करता है, “हम एक राष्ट्र हैं, जो अन्य देशों के साथ सहयोग और पारस्परिक सम्मान के साथ काम करता है। लेकिन दिन के अंत में, हम स्वतंत्र हैं और अपने निर्णय स्वयं लेते हैं।”

क्रिकेट से दी मिसाल- हर 'बुरी गेंद' खेलने की जरूरत नहीं

धनखड़ ने अपने संबोधन में क्रिकेट का उदाहरण देते हुए कहा कि सभी 'बुरी गेंदों' को खेलने की जरूरत नहीं होती। उन्होंने कहा, “क्या हर बुरी गेंद को खेलना जरूरी है? क्या हर विवाद में उतरना जरूरी है कि किसने क्या कहा? एक अच्छा बल्लेबाज बुरी गेंदों को छोड़ देता है। वे लुभावनी हो सकती हैं, लेकिन प्रयास नहीं किया जाता। और जो प्रयास करते हैं, वे या तो विकेटकीपर के दस्तानों में होते हैं या गली में कैच हो जाते हैं।”

धनखड़ की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में दावा किया कि मई 10 को भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम उनके “ब्रोकर” किए गए समझौते का नतीजा था। ट्रंप ने यह भी कहा कि उन्होंने दोनों देशों को एक व्यापारिक सौदा प्रस्तावित किया था और उसी के चलते युद्धविराम हुआ।

हालांकि भारत सरकार ने ट्रंप के इन दावों को कई बार खारिज किया है। भारत का स्पष्ट कहना है कि 10 मई को संघर्षविराम और सैन्य कार्रवाइयों को रोकने का निर्णय भारत और पाकिस्तान के सैन्य संचालन महानिदेशकों (DGMOs) के बीच सीधे संवाद से हुआ था, न कि किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता से।

शुक्रवार को ट्रंप ने यह दावा भी किया कि मई महीने की झड़पों में पांच लड़ाकू विमान गिराए गए थे, हालांकि इस दावे की न तो भारत ने पुष्टि की है और न ही कोई ठोस सबूत सामने आया है।

उपराष्ट्रपति की यह टिप्पणी भारत की विदेश नीति और संप्रभु निर्णय प्रणाली को लेकर एक स्पष्ट संदेश मानी जा रही है कि भारत की नीतियों का निर्धारण भारत स्वयं करता है — और किसी बाहरी दबाव के तहत नहीं।