चुनाव आयोग के साथ आधार की जानकारी न साझा करने वाले मतदाताओं को देनी पड़ सकती है जानकारी
नई दिल्लीः चुनाव आयोग के साथ अपना आधार नंबर न साझा करने वाले मतदाताओं को आगे चलकर निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी यानी ईआरओ के समक्ष पेश होना पड़ सकता है। इन लोगों को इस संबंध में कारण बताने के लिए व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना पड़ सकता है।
इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी खबर में लिखा है कि इस विवादास्पद प्रस्ताव का उद्देश्य न्यायालय में चुनाव आयोग के इस रुख की पुष्टि करना है कि आधार का खुलासा स्वैच्छिक है।
सिविल सेवा राजस्व अधिकारी
ईआरओ आमतौर एक सिविल सेवा राजस्व अधिकारी होता है। ईआरओ को आर.पी. अधिनियम की धारा 13-बी के तहत विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों के लिए मतदाता सूची तैयार करने, अपडेट करने और संशोधित करने का अधिकार दिया गया है। ईआरओ को चुनाव आयोग द्वारा राज्य सरकारों से परामर्श लेकर नामित किया जाता है।
वर्तमान में चुनाव आयोग ने साल 2023 तक 66 करोड़ से ज्यादा मतदाताओं के आधार नंबर एकत्रित किए हैं। इन मतदाताओं ने स्वेच्छा से यह जानकारी दी है। हालांकि, इनका डेटा अभी तक डेटाबेस में लिंक नहीं किया गया है। इसका मतलब है कि आधार का इस्तेमाल डुप्लिकेट प्रविष्टियों को रोकने या मतदाता सूची को साफ करने में नहीं किया गया है। भारत में कुल 98 करोड़ पंजीकृत मतदाता हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसा माना जा रहा है कि बीते सप्ताह चुनाव आयोग के वरिष्ठ अधिकारियों और गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय, आईटी मंत्रालय और यूआईडीएआई के प्रतिनिधियों के बीच एक उच्च स्तरीय बैठक हुई थी जिसमें इस प्रस्ताव पर चर्चा की गई कि जो मतदाता अपना आधार नहीं देता है, उसे ईआरओ के समक्ष पेश होना पड़ सकता है।
इस प्रस्ताव को संशोधित फॉर्म 6बी का हिस्सा बनाए जाने की संभावना है। चुनाव आयोग को ऐसी उम्मीद है कि इस बदलाव को करने के बाद आधार संख्या साझा करना स्पष्ट रूप से स्वैच्छिक अभ्यास के रूप में स्पष्ट किया जाएगा। इसके परिणामस्वरूप सितंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपनी प्रतिबद्धता को पूरा किया जा सकेगा।
आयोग ने क्या कहा था?
उस समय चुनाव आयोग ने अदालत के समक्ष यह स्पष्ट किया था कि वह इस उद्देश्य के लिए प्रस्तुत किए गए फॉर्म में उचित स्पष्टीकरण परिवर्तन जारी करने पर विचार कर रहा है। आयोग ने कहा था कि ऐसा करने का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मतदाता समझ सकें कि यह प्रक्रिया स्वैच्छिक है।
वर्तमान में चुनाव आयोग द्वारा जो फॉर्म6 बी की व्यवस्था की गई है उसमें मतदाता के पास आधार प्रदान न करने का विकल्प नहीं है। इसमें केवल दो विकल्प दिए गए हैं या तो आधार प्रदान करें या फिर इस बात की घोषणा करें कि कि मैं अपना आधार प्रस्तुत करने में सक्षम नहीं हूं क्योंकि मेरे पास आधार संख्या नहीं है।
जी निरंजन बनाम चुनाव आयोग के मामले में याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि बाद वाला विकल्प मूल रूप से मतदाताओं को एक गलत वचन देने को मजबूर करता है। जबकि वे वास्तव में स्वेच्छा से जानकारी नहीं देना चाहते हैं।
बीती 18 मार्च को हुई बैठक में हुए प्रस्ताव के बाद फॉर्म6 बी में बाद वाली घोषणा हटाने के लिए बदलाव किया जाएगा जिसमें लिखा है कि मैं अपना आधार प्रस्तुत करने में सक्षम नहीं हूं क्योंकि मेरे पास आधार नंबर नहीं है।
अब इसमें सिर्फ एक घोषणा होगी कि मतदाता एक वैकल्पिक दस्तावेज प्रस्तुत कर रहा है और एक निश्चित तिथि पर ईआरओ के समक्ष पेश होकर बताएगा कि वह क्यों अपना आधार साझा नहीं कर रहा है?
इस बदलाव को विधि मंत्रालय द्वारा गजट अधिसूचना के माध्यम से तब जारी किया जाएगा जब चुनाव आयोग इस सिलसिले में केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजेगा। ऐसी उम्मीद है कि इस साल के अंत में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव से पहले यह संशोधन हो सकता है।