नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) के तहत 15 वर्षीय लड़की के साथ यौन संबंध बनाने के दोषी एक व्यक्ति को बरी कर दिया। दोनों पक्षों की आपसी सहमति के चलते इस मामले को कलकत्ता हाई कोर्ट ने भी खत्म किया था, लेकिन अगस्त 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट की आलोचना करते हुए केस चलाने का आदेश दे दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला
अपने कार्यकाल के आखिरी दिन दिए फैसले में जस्टिस अभय एस ओका ने कहा कि जिस लड़की को कानून पीड़िता मान रहा है, वह खुद को ऐसा नहीं मानती। वह आरोपी से बहुत लगाव रखती है। दोनों ने शादी की है। उनका एक बच्चा भी है। लड़की को वास्तव में कोई परेशानी हुई है तो वह कानूनी प्रक्रिया से हुई है। इसलिए, सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 की विशेष शक्ति का इस्तेमाल करते हुए निचली अदालत में लंबित केस को बंद कर रहा है।
क्या है पूरा मामला?
18 अक्टूबर, 2023 को कलकत्ता हाई कोर्ट ने नाबालिग के साथ यौन उत्पीड़न के मामले में एक फैसला दिया था। हाई कोर्ट के जस्टिस चित्तरंजन दास और पार्थसारथी सेन ने नाबालिग लड़की के यौन शोषण के दोषी लड़के को बरी कर दिया था। जजों ने दोनों के बीच आपसी सहमति से संबंध बनने को आधार बनाते हुए यह फैसला दिया था। लेकिन इस फैसले में जजों ने युवाओं को बहुत सी नसीहत दे दी थी। इसे लेकर काफी विवाद हुआ था।
हाई कोर्ट ने लड़को को भी नसीहत दी थी
उस फैसले में हाई कोर्ट ने कहा था, 'लड़कियों को अपनी यौन इच्छा को नियंत्रण में रखना चाहिए और 2 मिनट के आनंद पर ध्यान नहीं देना चाहिए'। हाई कोर्ट ने लड़को को भी नसीहत दी थी कि उन्हें भी लड़कियों की गरिमा का सम्मान करना चाहिए। हाई कोर्ट के इस फैसले की जानकारी मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर स्वतः संज्ञान ले लिया था। इस केस को सुप्रीम कोर्ट ने In Re: Right to Privacy of Adolescent का नाम देकर सुना।