वडोदराः यहां की जम्बुवा बीएसयूपी कॉलोनी में रहने वाली 77 साल की महिला की छत का स्लैब गिरने से मौत हो गई थी। ये हादसा उस सरकारी आवास योजना के तहत बने फ्लैट में हुआ था जिसे गरीबों को बेहतर रहने का इंतजाम करने के लिए 2009 में मंजूरी दी गई थी। हादसे के एक दिन बाद वडोदरा नगर निगम (वीएमसी) ने इस योजना के ठेकेदार, सलाहकार और जांच करने वाली एजेंसी को नोटिस भेजा।
लेकिन, ये नोटिस किसी काम का साबित नहीं हुआ क्योंकि इमारतों के नुकसान की जिम्मेदारी लेने का सिर्फ दो साल का समय होता है और वो समय निकल चुका था। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, जून की शुरुआत से ही वीएमसी ने जर्जर हालत वाली सरकारी इमारतों को खाली कराने के लिए 5,000 से ज्यादा परिवारों को नोटिस भेजे हैं। जम्बुवा बीएसयूपी कॉलोनी के 358 परिवारों को भी इसी वजह से नोटिस मिला था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले हफ्ते, किशनवाड़ी जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम) बीएसयूपी आवास योजना के 28 टावरों के 448 निवासियों को वीएमसी द्वारा खाली करने का नोटिस भेजा गया था। ये अभियान “खतरनाक इमारतों” की पहचान करने के लिए चलाया जा रहा है।
ठेकेदार को भी नोटिस
पहले ही शहर भर में बीएसयूपी योजनाओं में रहने वाले 5,000 से अधिक परिवारों को नोटिस दे चुकी नगर निगम का कहना है कि वो घटिया निर्माण कार्य करने वाले ठेकेदारों को भी “नोटिस” भेज रही है।
किशनवाड़ी बीएसयूपी कॉलोनी में सोमवार को, गुजरात प्रांतीय नगर निगम अधिनियम, 1949 के तहत जारी किए गए एक नोटिस को वीएमसी के वार्ड कार्यालय द्वारा चिपकाए जाने के बाद निवासियों ने अपना गुस्सा जाहिर किया। नोटिस में कहा गया था कि इमारत “खतरनाक है और इसलिए रहने के लिए सुरक्षित नहीं है”।
नोटिस में निवासियों से आग्रह किया गया है कि वे तुरंत इन इमारतों को खाली कर दें या इनकी मरम्मत करें। साथ ही उन्हें चेतावनी भी दी गई है कि वे असुरक्षित संरचनाओं के पास से न गुजरें क्योंकि “इसके परिणामस्वरूप होने वाली दुर्घटनाओं के लिए वीएमसी जिम्मेदार नहीं होगी”।
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निवासियों ने कहा जानें के लिए कोई जगह नहीं
निवासियों का कहना है कि वह यहां से कहां जाएंगे। उनके पास “जाने के लिए कोई जगह नहीं है। एक निवासी ने कहा कि “हमारे झुग्गियों को तोड़ने के बाद हम चार साल तक किराए पर रहे। अब, उन्होंने हमें 2011 में आवंटित इन घरों को छोड़ने के लिए कहा है … हम अब तक जो किस्तें दे रहे हैं उन्हें देने के लिए तैयार हैं, लेकिन वीएमसी को हमें दूसरा घर जरूर देना चाहिए। जो परिवार दिहाड़ी मजदूरी पर चलते हैं, वे ऐसे घरों की मरम्मत कैसे करा पाएंगे?”
एक अन्य निवासी का कहना है कि वह मजदूरी करता है। सिर पर छत के बिना कैसे जीवित रहेंगे? उसने कहा, जब हमने 58,000 रुपये में ये फ्लैट खरीदे थे, तो हमें लगा था कि हम अपनी झुग्गियों से पुनर्वासित हो रहे हैं, लेकिन अब हमें लगता है कि हमारी झुग्गियां ही सुरक्षित हैं…”
किन-किन को भेजा गया नोटिस
किशनवाड़ी कॉलोनी अकेली ऐसी जगह नहीं है जिसे अनिश्चित भविष्य का सामना करना पड़ रहा है। मानसून की शुरुआत से, वीएमसी ने जिन 5,000 से अधिक परिवारों को नोटिस भेजे हैं, उनमें बीएसयूपी कॉलोनियां और साथ ही गुजरात हाउसिंग बोर्ड (जीएचबी) और गुजरात ग्रामीण ग्रह निर्माण बोर्ड (जीजीजीएनबी) द्वारा लगभग तीन दशक पहले बनाए गए परिसर भी शामिल हैं।
वाघोडिया रोड पर स्थित जीनेवन नगर – जो जेएनएनयूआरएम बीएसयूपी घरों के 2014 पैकेज II का हिस्सा है – वहां वीएमसी ने न सिर्फ 2023 के मानसून में नोटिस थमाया था बल्कि 11 इमारतों के 352 निवासियों को फ्लैट खाली कराने के लिए दबाव बनाने के लिए बिजली, पानी की आपूर्ति और ड्रेनेज नेटवर्क जैसी बुनियादी सुविधाओं को भी बंद कर दिया था।
राजनीतिक दखल और निवासियों द्वारा इमारत की “मरम्मत” करने के वादे के बाद नोटिस वापस ले लिया गया, लेकिन इस बार फिर से मानसून में दे दिया गया। इस बार, निवासी जानते हैं कि इमारत जर्जर हो चुकी है और गिरने वाली है।
वीएमसी स्थायी समिति के अध्यक्ष ने किसको ठहराया जिम्मेदार
वीएमसी स्थायी समिति के अध्यक्ष डॉ. शीतल मिस्त्री ने मौजूदा हालात के लिए रहने वालों को ही जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा, “चूंकि निवासियों ने इनका रख-रखाव नहीं किया है, इसलिए बीएसयूपी आवास योजनाएं अब जर्जर हो गई हैं। फ्लैट मालिकों ने छोटे रिसाव और मरम्मत को नजरअंदाज कर दिया है, जिससे सीलन हो गई है और इमारत कमजोर हो गई है…। उन्होंने कहा कि आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता पुनर्विकास है, जो कि निवासियों को खुद करना होगा… वीएमसी इस प्रक्रिया में सिर्फ मदद कर सकती है, लेकिन इसका खर्च निवासियों को ही उठाना होगा।”