देहरादून: उत्तराखंड में जिला प्रशासन के 28 फरवरी के एक आदेश के बाद अधिकारियों ने देहरादून में 11 मदरसों को सील कर दिया है। अधिकारियों ने इस कार्रवाई के पीछे राज्य मदरसा बोर्ड या शिक्षा विभाग के साथ मदरसों का पंजीकरण न होने का हवाला दिया है। इस बीच प्रशासन की कार्रवाई के खिलाफ मुस्लिम संगठनों ने विरोध प्रदर्शन भी शुरू किया है।
दरअसल, जनवरी में, स्थानीय निकाय चुनावों से पहले राज्य सरकार ने एक सत्यापन अभियान का आदेश दिया था और बाद में देहरादून से जुड़े डेटा को सार्वजनिक भी किया गया था। देहरादून के जिला मजिस्ट्रेट सविन बंसल ने कहा था कि सदर देहरादून तहसील में आठ पंजीकृत और 16 बिना पंजीकृत मदरसे चल रहे हैं। इसके अलावा विकासनगर तहसील में 34 अपंजीकृत और 27 पंजीकृत मदरसे थे। ऐसे ही डोईवाला में एक पंजीकृत और छह अपंजीकृत मदरसे थे। कालसी में मदरसा चल रहा था जो पंजीकृत नहीं था।
11 मदरसों को सील किया गया
विकासनगर तहसील के उप-जिला मजिस्ट्रेट विनोद कुमार के अनुसार 3 मार्च से अब तक 9 मदरसों को सील कर दिया गया है। अन्य दो सील हुए मदरसे डोईवाला और सदर में हैं।
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार उन्होंने बताया, 'पिछले नवंबर में मैंने जिला प्रशासन को एक रिपोर्ट सौंपी थी कि ये मदरसे संबंधित विभागों के साथ पंजीकरण के बिना चल रहे थे। निरीक्षण के लिए शिक्षा, अल्पसंख्यक कल्याण, राजस्व विभाग और पुलिस की एक टीम गठित की गई। इसके बाद, एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई और यह पाया गया कि विकासनगर में 20 मदरसे बिना पंजीकरण के चल रहे थे।
उन्होंने कहा, 'निरीक्षण के बाद कुछ मदरसों ने नियमों का अनुपालन किया और विभागों के साथ पंजीकरण कराया। 28 फरवरी को डीएम के आदेश के बाद छापेमारी की गई, उल्लंघन पाए जाने पर हमने नौ मदरसों को सील कर दिया।'
मदरसों को सील किए जाने के खिलाफ मुस्लिम ग्रुप
देहरादून के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा था कि अधिकारी इन मदरसों की 'फंडिंग के स्रोत और ऐसे संस्थानों की शुरुआत' कैसे हो रही है, इस पर गौर करेंगे। दरअसल, इस रिपोर्ट में कहा गया था कि जिले में 57 मदरसे बिना पंजीकरण के चल रहे हैं।
दूसरी ओर कई मुस्लिम संगठनों ने मदरसों को सील किए जाने के खिलाफ अपना विरोध जताया है।
मुस्लिम सेवा संगठन के अध्यक्ष नईम कुरैशी ने कहा, 'मदरसा संचालित करने के लिए किसी मान्यता की आवश्यकता नहीं है। सीलिंग गैरकानूनी है क्योंकि सील करने से पहले मदरसों के प्रबंधकों को कोई आदेश या नोटिस नहीं दिया गया था। उन्होंने आधार स्पष्ट नहीं किया है। हमने एक मस्जिद को अवैध रूप से सील करने के लिए मंगलवार को कलक्ट्रेट पर और आज (बुधवार) मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण पर विरोध प्रदर्शन किया। हमने एक ज्ञापन भी सौंपा। हमने कहा कि अगर उन्होंने इस अवैध सीलिंग को नहीं रोका तो हम सचिवालय के बाहर विरोध प्रदर्शन करेंगे।
उत्तराखंड मदरसा बोर्ड ने क्या कहा?
आम तौर पर मान्यता प्राप्त मदरसे मदरसा शिक्षा के लिए राज्य बोर्डों के अंतर्गत आते हैं, जबकि गैर-मान्यता प्राप्त मदरसे दारुल उलूम नदवतुल उलमा और दारुल उलूम देवबंद जैसे बड़े मदरसों द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम का पालन करते हैं।
इससे पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में मदरसों का निरीक्षण शुरू किया था। जिसके बाद उत्तराखंड सरकार ने भी यह काम किया।
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए उत्तराखंड मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष मुफ्ती शामूम कासमी ने कहा कि यह कवायद इन छात्रों को 'मुख्यधारा' में लेकर आने के लिए है। उन्होंने कहा, '28 फरवरी से हमने 88 आवेदनों में से 51 मदरसों को ‘मान्यता’ मंजूरी दे दी है। मदरसों को नियमों का पालन करना होगा और बच्चों को आधुनिकता का पालन करने देना होगा। हमने एनसीईआरटी पाठ्यक्रम शुरू किया है ताकि वे धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ मुख्यधारा की शिक्षा भी प्राप्त कर सकें। मदरसों को या तो मदरसा बोर्ड या शिक्षा विभाग के साथ पंजीकृत होना होगा।'
उन्होंने आगे कहा कि संस्कृत भी जल्द ही एक विकल्प के तौर पर मौजूद होगा और उन्होंने इसका प्रस्ताव शिक्षा विभाग को दिया है। यह राज्य की दूसरी भाषा है। उन्होंने कहा, 'जैसे ही शिक्षा विभाग को हमारे लिए शिक्षक मिल जाएंगे, हम इसे शुरू कर देंगे। हमारा उद्देश्य है कि बच्चे दूसरों की संस्कृति को जानें।'