भुवनेश्वर: संविधान की प्रस्तावना को लेकर मंगलवार को ओडिशा विधानसभा में बड़ा विवाद खड़ा हो गया। राज्य विधानसभा में संविधान की प्रस्तावना में “धर्मनिरपेक्ष” और “समाजवादी” शब्द गायब थे।
यह घटना सुप्रीम कोर्ट द्वारा संविधान की प्रस्तावना से इन शब्दों को हटाने की जनहित याचिका को खारिज किए जाने के ठीक एक दिन बाद हुई। राज्य में विपक्षी दलों ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी।
अंग्रेजी वेबसाइट द इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, ओडिशा विधानसभा में जब शीतकालीन सत्र की शुरुआत हुई, तब बीजद (बीजू जनता दल) और कांग्रेस के विधायक इस मुद्दे को लेकर विरोध में आ गए।
बीजद के वरिष्ठ नेता रणेंद्र प्रताप स्वैन ने सदन में यह मुद्दा उठाया और विधानसभा में प्रदर्शित प्रस्तावना में “धर्मनिरपेक्ष” और “समाजवादी” शब्द न होने पर अध्यक्ष से स्पष्टीकरण मांगा। स्वैन ने इसे संविधान का अपमान बताते हुए आरोप लगाया कि यह एक बड़ी चूक है और इसे तुरंत ठीक किया जाना चाहिए।
विपक्ष ने बीजेपी पर संविधान का अपमान का लगाया आरोप
कांग्रेस पार्टी ने भी इस पर प्रतिक्रिया दी। विधायक दल के नेता रामचंद्र कदम ने कहा कि यह सब एक साजिश का हिस्सा है और भाजपा संविधान का सम्मान नहीं करती। उनका आरोप था कि इन शब्दों को हटाना संविधान की आत्मा का अपमान है।
विपक्षी दलों का कहना था कि यह एक गंभीर गलती है, जिसे तत्काल सुधारा जाना चाहिए। हालांकि, इस मुद्दे पर भाजपा ने अपनी सफाई दी और कहा कि विधानसभा में प्रदर्शित प्रस्तावना वही है, जो संविधान सभा ने अपनाई थी।
मामले में भाजपा विधायक इरासिस आचार्य ने क्या कहा
खबर के मुताबिक, भाजपा विधायक इरासिस आचार्य ने बताया कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना में “धर्मनिरपेक्ष” और “समाजवादी” शब्द साल 1976 में 42वें संविधान संशोधन के दौरान जोड़े गए थे।
आचार्य ने यह भी कहा कि भाजपा भारतीय संविधान का सम्मान करती है और प्रस्तावना को संविधान की आत्मा मानती है, लेकिन बीजद और कांग्रेस गैर-मुद्दों को उठाकर लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं।
इस विवाद से ओडिशा में जनता और विपक्षी दलों के बीच बहस तेज हो गई है। विपक्ष का कहना है कि यह संविधान की भावना के खिलाफ है, जबकि भाजपा का कहना है कि यह केवल एक तकनीकी मुद्दा है।