पत्नी की सहमति के बिना अननेचुरल सेक्स क्राइम नहीं, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने क्यों की ऐसी टिप्पणी

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पत्नी के साथ अननेचुरल सेक्सुअल रिलेशन के एक मामले में पति को बरी कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि बालिग पत्नी के साथ सहमति के बिना भी यौन संबंध रेप नहीं माना जाएगा।

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Court Photograph: (Agency)

रायपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पति-पत्नी के सेक्सुअल रिलेशन के एक मामले में अजीबोगरीब  टिप्पणी की। कोर्ट ने सुनवाई करते हुए कहा कि किसी भी बालिग पत्नी के साथ सहमति के साथ या फिर उसके बिना यौन संबंध बनाने के लिए पति पर रेप या अप्राकृतिक संबंध का आरोप नहीं लगाया जा सकता है। सेक्सुअल रिलेशन बनाना या अप्राकृतिक संबंध में पत्नी की सहमति जरूरी नहीं है।

दरअसल, एक पति पर अपनी पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का आरोप था। वहीं, पत्नी की बाद में अस्पताल में मौत हो गई। डॉक्टर ने बताया कि उसे पेरिटोनिटिस और रेक्टल परफोरेशन था। डॉक्टर की रिपोर्ट के मुताबिक, पत्नी की मौत पेरिटोनिटिस और रेक्टल परफोरेशन से हुई थी। पेरिटोनिटिस पेट के अंदर की परत में सूजन होती है। जबकि रेक्टल परफोरेशन मलाशय में छेद होता है। यह दोनों ही बेहद गंभीर स्थितियां हैं। ये स्थितियां कई वजह से हो सकती हैं। इनमें इंफेक्शन, चोट या बीमारी शामिल हैं। साथ ही मामले में कोर्ट ने माना कि पत्नी की मौत अप्राकृतिक यौन संबंध के कारण हुई थी। लेकिन कोर्ट ने यह भी कहा कि पति के खिलाफ बलात्कार का मामला नहीं बनता। क्योंकि पत्नी 15 साल से बड़ी थी।

कोर्ट ने आरोप खारिज किए 

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने एक शख्स पर लगाए आरोपों को खारिज कर दिया। साथ ही आरोपी को आईपीसी की धारा 376, 377 और 304 से बरी कर दिया और जेल से उसकी फौरन उसकी रिहाई का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि अगर पत्नी 15 साल से ज्यादा उम्र की है, तो पति द्वारा किया गया कोई भी यौन संबंध बलात्कार नहीं माना जाएगा। चाहे पत्नी की सहमति हो या ना हो। 

वैवाहिक बलात्कार पर SC में सुनवाई 

बता दें कि कोर्ट का ये फैसला तब आया जब वैवाहिक बलात्कार पर चल रही है। फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट में इस पर सुनवाई रुकी हुई है। दरअसल, तत्कालीन चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जो पीठ की अध्यक्षता कर रहे थे, रिटायर होने वाले थे। अब एक नई पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी। केंद्र सरकार का कहना है कि शादी जैसी संस्था की रक्षा जरूरी है। ऐसे में वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाने की जरूरत नहीं है। इसलिए इस मामले में फैसला लेना कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। सुनवाई के दौरान, सरकार ने यह भी कहा कि संसद ने शादी के अंदर एक विवाहित महिला की सहमति की रक्षा के लिए कई उपाय किए हैं।

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