देहरादूनः उत्तराखंड हाईकोर्ट में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के प्रावधानों को चुनौती देने के लिए एक जनहित याचिका दायर की गई थी। याचिका की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल से पूछा है कि राज्य नए सिरे से सुझावों को आमंत्रित करे और जहां भी आवश्यक हो बदलावों पर विचार करे।
इस याचिका की सुनवाई न्यायमूरित मनोज तिवारी और आशीष नैथानी की डिवीजन बेंच कर रही थी। बेंच ने कहा " आप आवश्यक (परिवर्तन) लाने के लिए राज्य विधायिका पर दबाव डाल सकते हैं।"
वृंदा ग्रोवर ने क्या कहा?
जनहित याचिका डा. उमा भट्ट, कमला पंत और मनीष कुमार की तरफ से दायर की गई थी। याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश हुई वकील वृंदा ग्रोवर ने यूसीसी के प्रावधानों को चुनौती दी। इसमें लिव-इन में रहने के लिए पंजीकरण की अनिवार्यता भी शामिल है। ग्रोवर लिव-इन के एक दूसरे मामले के बचाव के लिए भी न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत हुई। इसके लिए सुधांशु सन्वाल और अन्य की तरफ से उत्तराखंड सरकार के खिलाफ वाद दायर किया गया था।
जनहित याचिका के लिए पेश हुई ग्रोवर ने तर्क दिया कि यूसीसी अधिनियम, नियम और प्रपत्र एक कानूनी व्यवस्था स्थापित करते हैं। उन्होंने कहा कि यह अधिनियम निगरानी और पुलिसिंग के साथ नागरिक के व्यक्तिगत जीवन में प्रवेश करते हैं।
उन्होंने कहा कि " प्रत्येक जानकारी.. तुरंत स्थानीय पुलिस स्टेशन को भेजी जाती है। इस देश में मेरी जानकारी स्थानीय पुलिस को क्यों होनी चाहिए? "
इस पर अदालत ने कहा पुलिस का घर जाना उल्लंघन माना जाता है। अदालत ने कहा " कोई पुलिसकर्मी दरवाजा नहीं खटखटा सकता है। क्या यह अधिकार पुलिस को यूसीसी के तहत दिया गया है?... या यूसीसी यह अधिकार पुलिस को देती है कि वह आप तक पहुंचे?"
निजी जानकारी पुलिस को नहीं दी जा सकती
वकील ग्रोवर ने कहा कि पुलिस उचित कार्यवाई कर सकती है और अधिनियम के तहत परिभाषित नहीं है।" ग्रोवर ने कहा कि "कोई भी जाकर शिकायत करा सकता है कि व्यक्तिबिना अनुमति के रह रहा है।... इसमें महिलाओं से पूछा गया कि वे लिव-इन रिश्ते को खत्म कर रही हैं और बताएं कि क्या वे गर्भवती हैं? मैं उद्देश्य समझती हूं। यह बच्चे की वैधता के लिए है। यह निजी जानकारी है और सार्वजनिक अधिकारियों या पुलिस तक नहीं जा सकती। हम ऐसी स्थिति बना रहे हैं जहां महिलाओं की स्थिति और भी बदतर हो जाएगी। वे रोजाना सामाजिक अपमान का शिकार बनेंगी।"
इस पर बेंच ने कहा कि उनके सुझाव क्या हैं? अदालत ने पूछा कि " क्या कानून का मसौदा तैयार करते समय आपके सुझाव मांगे गए थे? सॉलिसिटर जनरल क्या आप नए सुझाव आमंत्रित कर सकते हैं? आप विचार कर सकते हैं जहां परिवर्तन की जरूरत है और क्या हम इसे शामिल कर सकते हैं?"
तुषार मेहता ने क्या कहा?
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वह बयान नहीं दे सकते हैं लेकिन वह परीक्षण करेंगे। उन्होंने कहा " लेकिन सुझाव मांगे गए थे और यह केवल परामर्श प्रक्रिया के बाद ही था। प्रत्येक प्रावधान का कोई न कोई उद्देश्य होता है। इसी तरह इसका उद्देश्य महिला की रक्षा करना है जो आमतौर पर कमजोर साथी होती है। "
याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश हुईं ग्रोवर ने सॉलिसिटर जनरल से भी कहा कि वह सुनिश्चित करें कि जिस जोड़े का वह प्रतिनिधित्व कर रही हैं, उसके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्यवाई न हो। अदालत ने राज्य से एक अप्रैल को इसका जवाब देने को कहा है।
ग्रोवर ने कहा सुबह से सुनवाई के दौरान कम से कम याचिकाओं पर सुनवाई की गई जिसमें दंपित सुरक्षा की मांग कर रहे थे क्योंकि उन्होंने मर्जी से शादी की थी। यूसीसी नियमित विवाह के पंजीकरण के लिए क्या करने जा रहा है। मुझे एक बयान देना होगा और परिस्थितियां ऐसी हैं जिनमें पंजीकरण से पहले बयान मेरे माता-पिता के पास जाएगा। अगर लिव-इन में हैं तो यह पुलिस के पास जाएगा।
सामाजिक मूल्यों में हो रहा है बदलाव
बेंच ने पूछा कि पंजीकरण में क्या समस्या थी। अदालत ने कहा कि बड़ी भलाई के लिए कई बार कुछ समझौते करने पड़ते हैं। अक्सर महिला साथी ही असुरक्षित होती है...उससे पैदा होने वाले बच्चे को कानूनी अधिकार मिलेंगे और परिवार में हिस्सा मिलेगा।
इसमें आगे कहा गया है कि शादी पारंपरिक रूप से एक संस्था है। विवाह के बगैर रहने वाले पुरुषों और महिलाओं को आमतौर पर तिरस्कृत किया जाता रहा है। धीरे-धीरे इन मूल्यों में बदलाव हो रहा है। इसमें क्या बुराई है कि समाज के बदलने के साथ कानून भी बदलता है... अब, सामाजिक संस्थाएं टूट रही हैं... यह रिश्ता बच्चे को कानूनी अधिकार भी देता है। यह सिर्फ दो व्यक्तियों से नहीं है।
ग्रोवर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने फैसले दिए हैं और यूसीसी की धारा 379 विवाह से पैदा हुए बच्चे को वैधता देती है। उन्होंने कोर्ट के सामने यह भी दलील पेश की है कि यूसीसी में आधार के माध्यम से पंजीकरण की अनिवार्यता दी गई है जो कि के एस पुट्टास्वामी के फैसले का उल्लंघन है।