प्रयागराज/हरिद्वारः सनातनी संस्कृति की पहचान महाकुंभ मेले में अखाड़ों की गतिविधियों से अकबर काल के शब्दों को हटाए जाएंगे। इसके लिए साधुओं की सर्वोच्च संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (एबीएपी) खुद से पहले करेगा। एबीएपी ने महाकुंभ के अनुष्ठानों में उपयोग किए जा रहे उर्दू और मुगलकाल के शब्दों को बदलने का निर्णय लिया है। परिषद का उद्देश्य इन शब्दों को हटाना है, जिनको वह उपनिवेशीकरण का प्रतीक मानती है।
महाकुंभी का आयोजन जनवरी 2025 में प्रयागराज में होना है। इससे पहले एबीएपी ने यह फैसला लिया है। यह निर्णय मध्य प्रदेश द्वारा ‘शाही’ को ‘राजसी’ से बदलने के बाद लिया गया है, जो महाकाल की शोभायात्रा में किया गया था। देशभर के साधुओं ने मध्य प्रदेश के इस कदम की सराहना की और खुशी जाहिर की थी। उन्होंने कहा कि हम जल्द ही बैठक करेंगे और अन्य राज्यों से भी ऐसा ही कदम उठाने की मांग करेंगे।
पारंपरिक रूप से, ‘शाही स्नान’ और ‘शाही पेशवाई’ जैसे शब्दों का उपयोग किया जाता रहा है, जो मुगल काल के दौरान साधुओं के राजसी जुलूस और स्नान के संदर्भ में इस्तेमाल होते थे। हरिद्वार के मांसा देवी मंदिर के प्रमुख और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी ने कहा कि स्नान से ‘शाही’ और यात्रा के लिए ‘पेशवाई’ शब्द का विकल्प बताया जाएगा।
एबीएपी ने शाही को उर्दू शब्द बताते हुए उसकी जगह राजसी स्नान को अपनाने पर जोर दिया है। साथ ही अमृत स्नान, दिव्य स्नान व देवत्व स्नान में से किसी एक नाम पर भी सहमति बन सकती है। जबकि फारसी शब्द पेशवाई की जगह छावनी प्रवेश शब्द का प्रयोग किया जाएगा।
गौरतलब है कि जब अखाड़े कुंभ में प्रवेश करते हैं तो उन्हें पेशवाई कहा जाता है। वहीं जब मकर संक्रांति, बसंत पंचमी और मौनी अमावस्या समेत अन्य मौकों पर स्नान करते हैं तो उन्हें शाही स्नान कहा जाता है। ये शब्द अकबर काल में काफी प्रचलित थे। शाही स्नान व पेशवाई का नाम बदलने की मांग उठाई है।
एबीएपी 13 अखाड़ों की देखरेख करता है, जो विभिन्न संप्रदायों के साधुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। हालांकि पूर्व अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी की मृत्यु के बाद, परिषद दो गुटों में बंट गई थी। वर्तमान में निरंजनी अखाड़ा समूह प्रमुख है, जिसे 13 में से 9 अखाड़ों का समर्थन प्राप्त है। आंतरिक विभाजन के बावजूद, साधु उन शब्दों को हटाने की मांग में एकजुट हो गए हैं जिन्हें वे विदेशी मानते हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए महंत पुरी ने कहा, “अखाड़ों ने अपने कर्तव्यों के आयोजन के लिए ‘कोतवाल’, ‘कारोबारी’, और ‘जिलेदार’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करता रहा है, लेकिन इन्हें बदला जाएगा।
रविंद्र पुरी ने कहा कि सितंबर के अंत में एक बैठक होगी जिसमें राज्य सरकारों से गैर-हिंदी और गैर-संस्कृत शब्दों को हटाने का अनुरोध औपचारिक रूप से किया जाएगा। उन्होंने कहा, हम अपने अनुष्ठानों में किसी भी प्रकार की दासता के प्रतीक को बर्दाश्त नहीं करेंगे।