हैदराबादः तेलंगाना उच्च न्यायालय ने बुधवार को हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के पास कांचा गाचीबोवली में 400 एकड़ भूमि पर चल रहे काम को 24 घंटे के लिए रोक दिया। यह आदेश छात्रों और वता फाउंडेशन द्वारा दायर जनहित याचिकाओं की सुनवाई के दौरान आया।

याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि तेलंगाना इंडस्ट्रियल इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन (TGIIC) द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करते हुए बुलडोजरों से पेड़ काटे जा रहे हैं। याचिका में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि यदि किसी भूमि पर वन्यजीवों का निवास है, तो पेड़ काटने से पहले एक समिति द्वारा एक महीने तक इसका अध्ययन किया जाना चाहिए।

वता फाउंडेशन ने भूमि को ‘डिम्ड फॉरेस्ट’ का दर्जा देने और इसे वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत राष्ट्रीय उद्यान घोषित करने की मांग की। हालांकि, राज्य के महाधिवक्ता ने तर्क दिया कि यह 400 एकड़ की भूमि कानूनी रूप से ‘वन’ के रूप में मान्यता प्राप्त नहीं है और इसके पास ही ऊंची इमारतें और हेलीपैड हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यदि किसी क्षेत्र में सांप या मोर जैसे जीव पाए जाते हैं, तो उसे वन घोषित नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने इस पर फिलहाल गुरुवार तक कार्य रोकने का आदेश दिया है।

भूमि विवाद की पृष्ठभूमि और कानूनी लड़ाई

यह विवाद दशकों पुराना है। हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दावा है कि यह 400 एकड़ भूमि 1975 में उसे आवंटित की गई थी। हालांकि, 2022 में हाईकोर्ट ने यह कहते हुए विश्वविद्यालय के दावे को खारिज कर दिया कि इस भूमि के हस्तांतरण का कोई कानूनी दस्तावेज मौजूद नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने बाद में इस निर्णय को बरकरार रखते हुए कहा कि यह भूमि राज्य सरकार की है।

इसके बावजूद, छात्र और पर्यावरणविद इस भूमि को पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र मानते हैं और दावा करते हैं कि यह 455 से अधिक प्रजातियों के वनस्पतियों और जीवों का घर है, जिनमें मोर, जलाशय और विशेष प्रकार की चट्टानें शामिल हैं। वता फाउंडेशन ने भूमि को राष्ट्रीय उद्यान घोषित करने की मांग करते हुए एक जनहित याचिका दायर की है।

इस विवाद के बीच, सरकार ने भूमि का विकास कार्य शुरू कर दिया, जिससे छात्रों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इसका कड़ा विरोध किया। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि सरकार ने बुलडोज़रों और अन्य मशीनों के जरिए पेड़ों की कटाई और चट्टानों को हटाने का काम शुरू कर दिया है।

कांग्रेस और बीआरएस क्यों लड़ रहे हैं?

यह विवाद अब राजनीतिक रूप भी ले चुका है। पूर्व उपमुख्यमंत्री और बीआरएस नेता केटी रामाराव ने कांग्रेस सरकार पर हैदराबाद के ‘ग्रीन लंग्स’ को नष्ट करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, "हैदराबाद यूनिवर्सिटी और इसके आसपास का क्षेत्र इस शहर के अंतिम हरे क्षेत्रों में से एक है। इसे बिना पर्यावरणीय मूल्यांकन के नष्ट करना हैदराबाद के भविष्य के साथ अन्याय है।"

उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा, "पश्चिमी हैदराबाद के 400 एकड़ भूमि की हरियाली को नष्ट करना पर्यावरण की हत्या है। यदि आप अभी चुप रहे, तो यह आपकी जिम्मेदारी होगी।"

वहीं, कांग्रेस सरकार ने अपने कदम को सही ठहराया है। उसने कहा कि यह भूमि 2004 में निजी कंपनियों को आवंटित की गई थी। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा, "एक सर्वेक्षण में पाया गया कि विश्वविद्यालय का इस भूमि पर कोई स्वामित्व नहीं है।" सरकार ने विपक्ष पर मुद्दे का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया और कहा कि यह परियोजना विकास और पर्यावरणीय स्थिरता के बीच संतुलन बनाएगी।

हैदराबाद विश्वविद्यालय का रुख?

विश्वविद्यालय प्रशासन ने सरकार के दावे को खारिज करते हुए कहा कि इस भूमि का सर्वेक्षण करने और इसे सीमांकित करने की कोई प्रक्रिया नहीं की गई है। सोमवार को जारी एक आधिकारिक बयान में विश्वविद्यालय प्रशासन ने स्पष्ट किया कि उसने न तो 400 एकड़ भूमि के सीमांकन के लिए किसी सर्वेक्षण को स्वीकृति दी है और न ही उसे इस संबंध में कोई सूचना मिली है। विश्वविद्यालय ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए खारिज कर दिया।

विश्वविद्यालय प्रशासन के अनुसार, हाल ही में मीडिया और अन्य माध्यमों से फैलाई जा रही भ्रामक जानकारियों के जवाब में यह स्पष्ट किया जाता है कि जुलाई 2024 में राजस्व विभाग द्वारा विश्वविद्यालय परिसर में कोई सर्वेक्षण नहीं किया गया। यह भूमि वर्ष 2006 में राज्य सरकार द्वारा IMG अकादमी भारता प्रा. लि. से अधिग्रहीत की गई थी। अब तक केवल इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति की प्रारंभिक जांच की गई है।

इसके अलावा, विश्वविद्यालय ने तेलंगाना इंडस्ट्रियल इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन के उस हालिया बयान को भी खारिज कर दिया, जिसमें यह दावा किया गया था कि विश्वविद्यालय ने इस भूमि के सीमांकन को स्वीकृति दी है। बयान में स्पष्ट किया गया कि अब तक कोई भी भूमि सीमांकन नहीं किया गया है, और विश्वविद्यालय को इस संबंध में कोई आधिकारिक सूचना नहीं दी गई है।

इस संदर्भ में, यह महत्वपूर्ण है कि विश्वविद्यालय को आवंटित किसी भी भूमि का हस्तांतरण केवल विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद की औपचारिक स्वीकृति से ही हो सकता है। यह परिषद भारत के राष्ट्रपति (जो विश्वविद्यालय के आगंतुक के रूप में कार्य करते हैं) द्वारा नियुक्त छह नामित सदस्यों से मिलकर बनी होती है, जैसा कि विश्वविद्यालय के अधिनियम के अनुच्छेद 13 के उपखंड (ix) में उल्लिखित है।

विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार देवेश निगम ने कहा, "यूनिवर्सिटी लंबे समय से सरकार से अपनी भूमि के स्वामित्व की पुष्टि के लिए अनुरोध कर रही है। हम सभी हितधारकों की चिंताओं को सरकार तक पहुंचाएंगे और पर्यावरण और जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए अनुरोध करेंगे।"

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छात्रों का विरोध और गिरफ्तारी

गौरतलब है कि इस भूमि विवाद को लेकर छात्रों का विरोध तेज हो गया है, जिससे पुलिस के साथ झड़पें भी हुई हैं। पुलिस ने अब तक 53 लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें दो छात्र भी शामिल हैं। बीआरएस पार्टी ने आरोप लगाया कि पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर अत्यधिक बल प्रयोग किया, उन्हें घसीटा और मारा-पीटा। हालांकि, पुलिस ने लाठीचार्ज से इनकार किया और कहा कि गिरफ्तार किए गए लोग विश्वविद्यालय के मौजूदा छात्र नहीं हैं। 

छात्रों की केंद्र से राष्ट्रीय उद्यान घोषित करने की मांग

हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी छात्र संघ ने केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय से ‘वन’ क्षेत्र की अंधाधुंध कटाई को रोकने की अपील की है और इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित करने की मांग की। छात्र संघ अध्यक्ष उमेश आंबेडकर, उपाध्यक्ष आकाश कुमार और महासचिव निहाद सुलैमान ने मंत्रालय को लिखे पत्र में कहा कि सरकार को 400 एकड़ भूमि की नीलामी रद्द कर इसे राष्ट्रीय उद्यान और ग्रीन ज़ोन में तब्दील करना चाहिए।

उन्होंने कहा, "हर घंटे देरी से एक और पेड़ गिरता है, एक और पक्षी की आवाज़ खामोश होती है, और एक और हिरण की जान चली जाती है। हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी की जैव विविधता और भविष्य हमारी आंखों के सामने नष्ट हो रहा है। हम शिक्षा के संरक्षकों और न्याय के रक्षकों से अपील करते हैं कि इस अपूरणीय क्षति को रोकें। इस भूमि को राष्ट्रीय उद्यान घोषित करें- यह भविष्य की आशा बने, न कि लालच की कब्र।"