नई दिल्ली: 2024 लोकसभा चुनाव के शुरुआती रुझान के बाद अब कुछ नतीजें भी सामने आने लगे हैं। इसके बाद अब स्थिति साफ होती जा रही है और बीजेपी को बहुमत के आंकड़े से पीछे रहने की संभावना जताई जा रही है।
ऐसे में जब बीजेपी बहुमत का आंकड़ा पार नहीं कर सकती है तो इस केस में उसे अपनी सहयोगियों पर निर्भर रहना होगा। बीजेपी के दो सहयोगी तेलुगु देशम पार्टी या टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार के जनता दल (यूनाइटेड) या जेडी (यू) ने एक साथ लोकसभा चुनाव लड़ा था।
ये दो पार्टियां हैं जो भाजपा को आगे सरकार बनाने में उसकी मदद कर सकती हैं।
बीजेपी के सामने क्या है चुनौतियां
चुनाव आयोग द्वारा शाम (चार बजे तक) में जारी रुझानों के अनुसार, बीजेपी 244 सीटों पर आगे चल रही थी या जीत चुकी थी। ऐसे में पार्टी ने बहुमत के 272 आंकड़े को भी नहीं छू पाई है और इसमें लगभग 30 सीटें कम है।
वहीं अगर बात करें बीजेपी के सहयोगी टीडीपी की तो शाम तक पार्टी 16 सीटों पर आगे थी या फिर जीत दर्ज कर चूकी थी। यही नहीं जदयू ने भी अब तक 14 सीटों पर बढ़त हासिल की थी या फिर चुनाव जीत चुकी थी।
अगर मतगणना पुरी होने तक इन आंकड़ों में कोई बड़ा उलटफेर नहीं हुआ तो बीजेपी को सरकार बनाने के लिए इन दोनों नेताओं की जरूरत पड़ सकती है। ये दोनों नेताओं ने कई बार सरकार बनाने में अहम रोल अदा किया है।
ऐसे में इस बार भी ये नेता एक किंगमेकर साबित हो सकते हैं और इनकी मदद से केंद्र में सरकार बन सकती है कि नहीं इसका खुलासा आने वाले कुछ दिनों में हो जाएगा।
कई बार चंद्रबाबू नायडू बने हैं किंगमेकर
चंद्रबाबू नायडू और उनकी पार्टी टीडीपी ने भाजपा और जन सेना पार्टी के साथ गठबंधन में आंध्र प्रदेश में विधानसभा और लोकसभा चुनाव लड़ा है। यह वही चंद्रबाबू नायडू हैं जो अतीत मे कई बार किंगमेकर भी साबित हुए हैं और इनकी मदद से केंद्र में सरकार भी बनी है।
साल 1996 में जब न तो बीजेपी को और न ही कांग्रेस को बहुमत मिली थी, तब चंद्रबाबू नायडू ने एक अहम रोल अदा किया था। उन्होंने उस समय संयुक्त मोर्चा के संयोजक के रूप में एक ऐसी पार्टियों का समूह बनाया था जो गैर बीजेपी और कांग्रेसी थी। इससे केंद्र में 1996 मे एचडी देवेगौड़ा और 1997 में आई के गुजराल की सरकार बनी थी।
साल 1999 में नायडू ने अविभाजित आंध्र प्रदेश में बीजेपी के साथ गठबंधन कर लोकसभा चुनाव लड़े थे और उसे 29 सीटें हासिल हुई थी। उन्होंने तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार का समर्थन किया जो बहुमत के आंकड़े से पीछे थी।
दरअसल, 29 सीटों के साथ टीडीपी बीजेपी की सबसे बड़ी सहयोगी थी, हालांकि वह सरकार में शामिल नहीं हुई। 2014 में भी नायडू भाजपा के साथ गठबंधन किया था लेकिन 2018 में आंध्र प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने गठबंधन तोड़ दिया था।
क्या हो सकता है और क्या नहीं
ऐसे में पिछले कुछ सालों में जिस तरीके से नायडू ने बीजेपी के साथ चुनाव लड़ा था, उससे यह कहा जा सकता है कि इस बार भी वह बीजेपी को समर्थन देकर केंद्र में बीजेपी की सरकार बना सकते हैं। ऐसा कर वे अपनी पार्टी के पुनरुत्थान की शुरुआत कर सकते हैं जो पिछले कुछ वर्षों में कुछ गंभीर झटके झेल रही है।
गौर करने वाली बात यह है कि त्रिशंकु संसद में किसी की निश्चित वफादार नहीं होती है। टीडीपी, जो कांग्रेस विरोधी पार्टी के रूप में बनी थी, ने पहले कांग्रेस के साथ मिलकर तेलंगाना विधानसभा चुनाव लड़ा था और 2019 के चुनावों से पहले कांग्रेस के नेतृत्व में एक विपक्षी गठबंधन बनाने की कोशिश भी की थी।
नीतीश कुमार भी है एक और किंगमेकर
बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार एक बड़ा नाम है। वे कुछ समय के लिए केंद्रीय रेल मंत्री और भूतल परिवहन मंत्री भी रहे हैं। साल 1998-99 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वे कृषि मंत्री थे और 2000 से 2004 की वाजपेयी सरकार में भी उन्होंने यही मंत्रालय संभाला था।
नीतीश कुमार ऐसे नेता है जो काफी लंबे समय से बिहार में एनडीए के महत्वपूर्ण सहयोगी के रूप में निकल कर सामने आए हैं। साल 2009 में जबह भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर पर खराब प्रदर्शन किया था, तब नीतीश की पार्टी ने बिहार में 20 सीटें जीती थी।
पिछले कुछ सालों में नीतीश की राजनीति में कई उतार-चढ़ाव आए हैं। 2014 में उन्होंने नरेंद्र मोदी के उदय का विरोध करते हुए एनडीए से नाता तोड़ लिया और अकेले ही चुनाव लड़े थे जिसमें वे केवल दो ही सीट जीत पाए थे।
इसके बाद 2015 में वे लालू यादव से मिल गए थे और विधानसभा चुनाव लड़ा था जिसमें वे जीते भी थे। इसके दो साल बाद वे फिर से एनडीए में शामिल हो गए थे और फिर 2019 के लोकसभा चुनावों में एनडीए ने बिहार में 40 में से 39 सीटें जीती थी।
वहीं अगर बात करें 2020 लोकसभा चुनाव की तो इसमें जदयू का खराब प्रदर्शन रहा था जिससे नीतीश कुमार भाजपा के साथ असहज हो गए थे। इसके बाद 2022 में राजद के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। हालांकि, 2024 के चुनावों से ठीक पहले, वे फिर से एनडीए में शामिल हो गए थे।
कया हो सकता है और क्या नहीं
अगर इस लोकसभा चुनाव में जदयू का अच्छा प्रदर्शन रहा तो नीतीश कुमार एक बार फिर राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। यही नहीं इससे उनकी पार्टी को एक नई ऊर्जा मिल सकती है जो पिछले कुछ सालों से सही से प्रदर्शन नहीं कर सकती है। इससे उनकी पार्टी की बिहार में पकड़ मजबूत भी हो सकती है।
हालांकि नीतीश कुमार एक ऐसे नेता है जिनता कोई ठीक नहीं है। नीतीश कुमार पाला बदलने के लिए लोकप्रिय हैं और इस वजह से वे बिहार में “पलटू राम” के नाम से भी जाने जाते हैं। ऐसे में राजनीति से जुड़े कुछ लोगों का मानना है कि उनका कुछ भी ठीक नहीं है और वे कभी भी किसी तरफ अपना पाला बदल सकते हैं।