नई दिल्ली: कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने गुरुवार को 26/11 मुंबई हमले के आरोपी तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण का 'श्रेय' लेने के लिए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि यह 'यूपीए के समय की जमीनी तैयारी' का नतीजा है। 

चिदंबरम की ओर से जारी बयान में कहा गया, 'फरवरी 2025 में प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में खड़े हुए और उस चीज का श्रेय लेने की कोशिश की जो अनिवार्य रूप से यूपीए के समय की जमीनी तैयारी का नतीजा थी। 17 फरवरी तक भारतीय अधिकारियों ने 26/11 की साजिश में राणा की भूमिका की पुष्टि की, जो 2005 से चली आ रही है, जब वह लश्कर और आईएसआई के गुर्गों के साथ काम कर रहा था। अंत में, 8 अप्रैल, 2025 को अमेरिकी अधिकारियों ने राणा को भारतीय अधिकारियों को सौंप दिया। वह 10 अप्रैल को नई दिल्ली पहुंचा।' 

यूपीके के समय शुरू हुई थी प्रत्यर्पण प्रक्रिया

चिदंबरम ने जोर देकर कहा कि मोदी सरकार ने प्रत्यर्पण प्रक्रिया शुरू नहीं की, बल्कि यह केवल तत्कालीन यूपीए सरकार (2004-2014) के तहत शुरू की गई सुसंगत और रणनीतिक कूटनीति से संभव हुआ। चिदंबरम 2008 से 2012 तक केंद्रीय गृह मंत्री थे। 

चिदंबरम ने कहा, 'तथ्य स्पष्ट होने चाहिए। मोदी सरकार ने इस प्रक्रिया की शुरुआत नहीं की, न ही इसने कोई नई सफलता हासिल की। ​​इन्हें केवल यूपीए के तहत शुरू की गई परिपक्व, सुसंगत और रणनीतिक कूटनीति से लाभ हुआ। यह प्रत्यर्पण किसी दिखावे का नतीजा नहीं है, यह इस बात का प्रमाण है कि जब कूटनीति, कानून प्रवर्तन और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग ईमानदारी से और बिना किसी तरह की अपनी पीठ थपथपाने के साथ किया जाता है, तो भारत क्या हासिल कर सकता है।'

अमेरिकी विदेश मंत्री ने 11 फरवरी को राणा के भारतीय अधिकारियों को प्रत्यर्पण को अधिकृत करने वाले वारंट पर हस्ताक्षर किए थे। राणा के कानूनी वकील ने बाद में उस आदेश को चुनौती देने के लिए अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी थी। हालांकि, 7 अप्रैल को अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने राणा की प्रत्यर्पण पर रोक लगाने की याचिका को अस्वीकार कर दिया। 

पाकिस्तानी-कनाडाई नागरिक तहव्वुर राणा को अमेरिका में प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) का सदस्य होने और मुंबई हमलों के लिए जिम्मेदार आतंकियों को सहायता प्रदान करने के लिए दोषी ठहराया गया था। भारतीय एजेंसियों की जांच के अनुसार हमले से पहले खुद राणा भी भारत रेकी और तैयारियों को अंतिम रूप देने के लिए आया था।