नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने दहेज प्रताड़ना के एक मामले में सजायाफ्ता झारखंड के हजारीबाग निवासी योगेश्वर साव की याचिका पर सुनवाई करते हुए कड़ी टिप्पणी की। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने योगेश्वर साव को पत्नी को प्रताड़ित करने और बेटियों की उपेक्षा करने के मामले में तीखा फटकार लगाते हुए कहा कि इस तरह के व्यक्ति को अदालत में स्थान नहीं दिया जा सकता।
कोर्ट की तीखी प्रतिक्रिया: बेटियों के प्रति उपेक्षा पर सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा, “आप किस तरह के आदमी हैं, जो अपनी बेटियों की भी परवाह नहीं करते? हम ऐसे निर्दयी व्यक्ति को अपनी अदालत में कैसे आने दे सकते हैं?” कोर्ट ने यह भी कहा कि वह अपनी बेटियों को कृषि भूमि हस्तांतरित करने के लिए सहमत होने पर ही योगेश्वर साव को राहत देने पर विचार करेंगे।
दहेज प्रताड़ना का मामला और योगेश्वर साव की सजा
कटकमदाग गांव के निवासी योगेश्वर साव उर्फ डब्लू साव को अपनी पत्नी पूनम देवी को दहेज के लिए प्रताड़ित करने के आरोप में हजारीबाग जिला अदालत ने 2015 में ढाई साल की सजा सुनाई थी। अदालत ने पाया था कि साव ने अपनी पत्नी से 50,000 रुपये के दहेज की मांग की थी और इसके बाद उसे प्रताड़ित किया था।
योगेश्वर और पूनम की शादी 2003 में हुई थी और उनके दो बेटियां भी हुईं। पूनम देवी ने 2009 में अपने पति के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का मामला दर्ज कराया था। उन्होंने यह आरोप भी लगाया था कि योगेश्वर ने ऑपरेशन करवाकर उनका गर्भाशय निकलवाया और फिर दूसरी शादी कर ली।
पूनम देवी ने खुद और अपनी बेटियों के भरण-पोषण के लिए फैमिली कोर्ट में अलग से अर्जी दायर की थी, जिस पर कोर्ट ने योगेश्वर साव को पत्नी को प्रतिमाह दो हजार रुपये और बेटियों के बालिग होने तक एक हजार रुपये प्रतिमाह भरण-पोषण के रूप में देने का आदेश दिया था।
झारखंड हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की याचिका
योगेश्वर साव ने जिला अदालत की सजा के खिलाफ झारखंड हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, और हाईकोर्ट ने 2024 में उनकी दोषसिद्धि को बरकरार रखा, हालांकि गर्भाशय निकालने और दूसरी शादी के आरोपों के संबंध में कोई सबूत नहीं मिलने पर सजा घटाकर डेढ़ साल कर दी और उस पर 1 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। अब, योगेश्वर ने अपनी सजा में और राहत पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जो कि दिसंबर 2024 में दाखिल की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई तल्ख टिप्पणी और मामले में उठाए गए गंभीर सवाल यह दर्शाते हैं कि दहेज प्रताड़ना और महिलाओं के खिलाफ अपराधों को लेकर कोर्ट की दिशा कितनी सख्त हो चुकी है। योगेश्वर साव को मिली कड़ी फटकार इस बात का प्रतीक है कि ऐसे मामलों में न्याय की प्रक्रिया को लेकर किसी प्रकार की ढिलाई नहीं बरती जाएगी।
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