नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को अपराधों के आरोपी व्यक्तियों के घरों और संपत्तियों को विभिन्न राज्यों में बुलडोजर से गिराने के मामलों पर सुनवाई हुई। इस दौरान जस्टिस बी आर गवई और के वी विश्वनाथन ने आरोपियों के घरों को ध्वस्त करने की वैधता पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि ‘सिर्फ इसलिए कि कोई आरोपी है, उसके घर को कैसे गिराया जा सकता है? दोषी होने पर भी उसे ध्वस्त नहीं किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट बार को बताने के बाद भी हमें इस रवैये में कोई बदलाव देखने को नहीं मिला।’
कोर्ट घरों या संपत्तियों को ध्वस्त करने की बढ़ती प्रवृत्ति की आलोचना करते हुए इसे ‘बुलडोजर न्याय’ का मामला बताया। कोर्ट ने यह भी कहा कि वह इस मुद्दे के समाधान के लिए दिशा-निर्देश जारी करेगा। हालांकि, अदालत ने उत्तर प्रदेश द्वारा अपनाई गई स्थिति को भी स्वीकार किया और उसकी सराहना की, जिसमें कहा गया था कि विध्वंस केवल तभी किया जा सकता है जब संरचना अवैध मानी जाती है।
‘पूरे भारत के लिए दिशा-निर्देश बनाएंगे’
कोर्ट ने सोमवार को अपने आदेश में कहा कि ‘हम पूरे भारत के लिए इस मामले को लेकर कुछ दिशा-निर्देश बनाने का प्रस्ताव करते हैं ताकि इसको लेकर जताई गई चिंताओं का ध्यान रखा जा सके। हम उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा उठाए गए रुख की सराहना करते हैं। इसको लेकर सभी पक्षों के वकील सुझाव दे सकते हैं ताकि अदालत इसको लेकर एक दिशा-निर्देश तैयार कर सके जो भारत में हर जगह लागू हो पाए।’ कोर्ट ने इसके लिए संबंधित पक्षों से सुझाव भी मांगा है।
केंद्र ने अपने जवाब में क्या कहा?
भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘किसी भी अचल संपत्ति को सिर्फ इसलिए ध्वस्त नहीं किया जा सकता क्योंकि आरोपी किसी अपराध में शामिल है और ऐसा विध्वंस केवल तभी हो सकता है जब ढांचा अवैध हो।’
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अदालत में पेश होते हुए मेहता ने मामले में राज्य द्वारा दायर पहले के हलफनामे का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि हलफनामे में कहा गया है कि केवल इसलिए कि किसी व्यक्ति पर किसी अपराध का हिस्सा होने का आरोप लगाया गया था, कभी भी उसकी अचल संपत्ति को ध्वस्त करने का आधार नहीं हो सकता।
जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि इस तरह के विध्वंस की अनुमति केवल इसलिए नहीं दी जा सकती क्योंकि कोई व्यक्ति किसी अपराध का आरोपी है। कोर्ट ने आगे पूछा कि ‘सिर्फ इसलिए कि (एक व्यक्ति) आरोपी है, तोड़फोड़ कैसे की जा सकती है?’
बुलडोजर एक्शन के खिलाफ किसने दी है याचिका?
शीर्ष अदालत जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दावा किया गया था कि अप्रैल 2022 में दंगों के तुरंत बाद दिल्ली के जहांगीरपुरी में कई लोगों के घरों को इस आरोप में ध्वस्त कर दिया गया था कि उन्होंने दंगे भड़काए थे। इसी लंबित मामले में विभिन्न राज्यों में बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ कई आवेदन दायर किए गए थे।
याचिका में कहा गया है कि अधिकारी दंड के रूप में बुलडोजर का इस्तेमाल नहीं कर सकते और इस तरह की तोड़फोड़ से आवास के अधिकार का उल्लंघन होता है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक पहलू है। इसके अलावा याचिका में ध्वस्त किये गये मकानों के पुनर्निर्माण का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
अदालत ने कथित तौर पर बिना किसी नोटिस के और “बदले की कार्रवाई” के रूप में की गई तोड़फोड़ के संबंध में दो और याचिकाओं को भी सुना। ये दोनों याचिकाएं राजस्थान के राशिद खान और मध्य प्रदेश के मोहम्मद हुसैन द्वारा अदालत के सामने दायर की गई थी। उदयपुर के 60 वर्षीय ऑटो-रिक्शा चालक खान ने दावा किया कि 17 अगस्त, 2024 को उदयपुर जिला प्रशासन ने उनके घर को ध्वस्त कर दिया था।
यह उदयपुर में हुए सांप्रदायिक हिंसा के बाद हुई कार्रवाई है, जिसके दौरान कई वाहनों को आग लगा दी गई और बाजार बंद कर दिए गए। अशांति तब शुरू हुई जब एक मुस्लिम स्कूली छात्र ने कथित तौर पर अपने हिंदू सहपाठी को चाकू मार दिया, जिसकी बाद में मौत हो गई, जिसके कारण इलाके में तनाव बढ़ा और निषेधाज्ञा लागू कर दी गई। खान आरोपी छात्र के पिता हैं। अहम बात ये भी है कि जिस घर को गिराया गया वह खान का अपना घर नहीं है, बल्कि वे किराये पर रहते हैं।
इसी तरह, मध्य प्रदेश के मोहम्मद हुसैन ने आरोप लगाया है कि राज्य प्रशासन ने उनके घर और दुकान दोनों को गैरकानूनी तरीके से ध्वस्त कर दिया।
(समाचार एजेंसी IANS इनपुट के साथ)