नई दिल्लीः दिल्ली-नोएडा डायरेक्ट (डीएनडी) फ्लाईवे से सफर करने वाले यात्रियों के लिए राहत की खबर है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को डीएनडी फ्लाईवे पर टोल वसूली को समाप्त करने के 2016 के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। साथ ही अदालत ने नोएडा प्राधिकरण को फटकार भी लगाई। शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने (नोएडा प्राधिकरण) टोल कंपनी को यात्रियों से अनिश्चितकाल तक टोल वसूलने की अनुमति देकर उन्हें शोषण का शिकार बनाया।
जस्टिस सूर्यकांत और उज्जल भुयान की खंडपीठ ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि नोएडा टोल ब्रिज कंपनी लिमिटेड (एनटीबीसीएल) ने 2001 में फ्लाईवे के शुरू होने के बाद निर्माण लागत और उचित मुनाफा पहले ही वसूल लिया है। इसके बावजूद, टोल वसूली जारी रखना अनुचित था।
नोएडा प्राधिकरण को सुप्रीम कोर्ट की फटकार
अदालत ने नोएडा प्राधिकरण पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि एनटीबीसीएल के साथ हुए समझौते में टोल वसूली की समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई थी, जिससे कंपनी को अनिश्चितकाल तक वसूली करने की छूट मिल गई। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “नोएडा प्राधिकरण ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया और एनटीबीसीएल को टोल वसूली का अधिकार देकर आम जनता पर अनावश्यक बोझ डाला।”
सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में नोएडा रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन फेडरेशन द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) को भी सही ठहराया, जिसमें एनटीबीसीएल द्वारा टोल वसूली को चुनौती दी गई थी। अदालत ने कहा कि हाई कोर्ट का फैसला पूरी तरह से कानूनी और तर्कसंगत था।
कॉम्प्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल (CAG) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि एनटीबीसीएल ने टोल वसूली के माध्यम से पर्याप्त मुनाफा कमा लिया है। इसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ एनटीबीसीएल की अपील खारिज कर दी।
डीएनडी फ्लाईवे और टोल वसूली का मामला क्या है?
गौरतलब है कि डीएनडी फ्लाईवे दिल्ली को नोएडा से जोड़ता है। 2001 में शुरू हुआ डीएनडी फ्लाईवे दिल्ली और नोएडा के बीच यात्रा को आसान और तेज बनाने के लिए विकसित किया गया था। हाई कोर्ट के फैसले से पहले यात्रियों को प्रति यात्रा ₹28 और राउंड ट्रिप के लिए ₹56 का टोल देना पड़ता था। यह टोल एक बेहतर और सुगम मार्ग के नाम पर वसूला जाता था, लेकिन इसके चलते यात्रियों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ रहा था। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला हजारों दैनिक यात्रियों के लिए राहत लेकर आया है। अब उन्हें टोल शुल्क के रूप में अतिरिक्त खर्च नहीं उठाना होगा। यह सार्वजनिक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में न्याय और पारदर्शिता सुनिश्चित करेगा।