नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने भारत के शैक्षणिक संस्थानों में बढ़ते आत्महत्याओं के मामलों पर विराम लगाने के लिए 15 दिशानिर्देश जारी किए हैं। ये दिशानिर्देश स्कूलों, कॉलेजों, कोचिंग संस्थानों, विश्वविद्यालयों, प्रशिक्षण केंद्रों और छात्रावासों के लिए हैं।
अदालत ने कहा है कि कई छात्र अकादमिक तनाव, परीक्षा तनाव और संस्थानों की सहायता की कमी के चलते आत्महत्या कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट पीठ ने क्या कहा?
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि छात्रों को मनोवैज्ञानिक तनाव, अकादमिक तनाव और सहायता में कमी से बचाने के लिए संस्थागत सुरक्षा उपाय लागू किए जाने चाहिए।
पीठ ने संविधान के अनुच्छेद - 32 के तहत शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए ये निर्देश जारी किए हैं और कहा कि आदेश अनुच्छेद-141 के तहत कानून के रूप में तब तक लागू रहेगा जब तक संसद या राज्य विधानसभा द्वारा इसके लिए कानून नहीं बन जाता।
अदालत द्वारा जारी किए गए दिशानिर्देशों में सभी शैक्षणिक संस्थानों में अनिवार्य मानसिक स्वास्थ्य परामर्श, कार्यात्मक शिकायत निवारण प्रणाली और नियामक निगरानी जैसे उपायों का आह्वान किया गया है।
इसमें कहा गया है "विशेष रूप से परीक्षा अवधि और शैक्षणिक बदलावों के दौरान छात्रों के छोटे समूहों को निरंतर, अनौपचारिक और गोपनीय सहायता प्रदान करने के लिए समर्पित मार्गदर्शकों या परामर्शदाताओं को नियुक्त किया जाएगा।"
संस्थानों के कर्मचारियों को साल में दो बार प्राप्त करना होगा प्रशिक्षण
इन निर्देशों में यह भी कहा गया है कि शैक्षणिक संस्थानों के सभी शिक्षण और गैर शिक्षण कर्मचारियों को वर्ष में कम से कम दो बार अनिवार्य मानसिक स्वास्थ्य प्रशिक्षण प्राप्त करना होगा। यह प्रशिक्षण मानसिक स्वास्थ्य पेशवरों द्वारा संचालित किया जाएगा। इसमें प्राथमिक उपचार, संकट के चेतावनी संकेतों को पहचानने, आत्म क्षति के प्रति प्रतिक्रिया और उचित रेफरल प्रक्रियाओं पर केंद्रित होगा।
इसके साथ ही संस्थानों को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि कर्मचारी बिना किसी भेदभाव के सभी छात्रों के साथ उचित व्यवहार करें। वे कमजोर और हाशिये के समाज से आने वाले छात्रों के साथ संवेदनशीलता और समावेशिता बनाए रखें।
संस्थानों को आंतरिक समितियों के निर्माण की भी बात की गई है जिसमें यौन उत्पीड़न, रैगिंग और अन्य समस्याओं से संबंधित मामलों में सहायता के साथ प्रभावित छात्रों को मनोवैज्ञानिक सामाजिक सहायता प्रदान करना शामिल है।
सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों में माता-पिता के लिए संवेदनशील कार्यक्रम, मानसिक स्वास्थ्य साक्षरता, भावनात्मक विनियमन और जीवन कौशल को छात्र गतिविधियों में शामिल करना है। इसके साथ ही छात्रों के स्वास्थ्य रिकॉर्ड को गुमनाम बनाए रखना है।
अदालत ने कहा कि छात्रावास, क्लासरूम, कॉमन एरिया और वेबसाइटों पर टेली-मानस और अन्य राष्ट्रीय सेवाओं सहित आत्महत्या हेल्पलाइन नंबरों को प्रमुखता से प्रिंट किया जाएगा।
2022 में 13 हजार से अधिक छात्रों ने की आत्महत्या
अदालत ने ये दिशानिर्देश राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के आधार पर जारी किए हैं। साल 2022 में देशभर में कुल 1,70,924 आत्महत्या के मामले सामने आए। इनमें 13,044 छात्रों ने आत्महत्या की थी।
वहीं, साल 2001 में आत्महत्या करने वाले छात्रों की संख्या 5,425 थी। रिपोर्ट के आंकड़े दिखाते हैं कि प्रत्येक 100 आत्महत्याओं के मामले में 8 मामले छात्रों के हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, 2,248 छात्रों ने परीक्षा में फेल होने के चलते आत्महत्या की है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये आंकड़े व्यवस्थागत कमियों को उजागर करते हैं तथा इन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
अदालत का यह आदेश ऐसे वक्त में आया है जब आंध्र प्रदेश में एक 17 वर्षीय नीट एस्पिरेंट की मौत मामले में सुनवाई चल रही है। इंडिया टुडे की खबर के मुताबिक, 17 वर्षीय छात्रा विशाखापत्तनम के एक हॉस्टल में रह रही थी। 14 जुलाई 2023 को उसकी मौत हो गई थी।
छात्रा के पिता ने इस मामले में सीबीआई जांच की मांग की। आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट 14 फरवरी 2024 को इस मांग को खारिज कर दिया था जिसके बाद पिता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने इस मामले में सीबीआई को जांच का आदेश दिया था।