सुप्रीम कोर्ट का फैसला- धनशोधन केस में विशेष अदालत के संज्ञान लेने के बाद ईडी नहीं कर सकता आरोपी को गिरफ्तार, क्या हैं इसके मायने?

सुप्रीम कोर्ट ने ईडी के अधिकारों पर कैंची चलाते हुए एक अहम फैसले में कहा है कि धनशोधन मामलों में प्रवर्तन निदेशालय की शिकायत पर विशेष अदालत के संज्ञान लेने के बाद जांच एजेंसी आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकती है।

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ED cannot arrest the accused after special court takes cognizance in money laundering case: Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- लोक सेवकों के खिलाफ PMLA केस के लिए सरकार की मंजूरी जरूरी है (फाइल फोटो)

दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और उसके अधिकारी विशेष अदालत द्वारा धनशोधन मामले की शिकायत पर संज्ञान लेने के बाद आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि अगर ईडी को ऐसे किसी आरोपी को हिरासत में लेने की जरूरत है तो उसे विशेष अदालत में इस संबंध में आवेदन करना होगा।

लाइव लॉ डॉट इन की एक रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस अभय एस ओका और उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा, 'धारा 44 के तहत शिकायत के आधार पर पीएमएलए की धारा 4 के अनुसार दंडनीय अपराध का संज्ञान लेने के बाद ईडी और उसके अधिकारी मामले में आरोपी के रूप में दिखाए गए व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए धारा-19 के तहत शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकते हैं। यदि ईडी उसी अपराध की आगे की जांच करने के लिए समन के बाद पेश होने वाले आरोपी की हिरासत चाहती है, तो उसे विशेष अदालत में आवेदन करके आरोपी की हिरासत की मांग करनी होगी।'

कोर्ट ने आगे कहा, 'विशेष अदालत को आरोपी की सुनवाई के बाद संक्षिप्त कारण देते हुए एक आदेश पारित करना होगा। आवेदन पर सुनवाई करते समय अदालत केवल तभी हिरासत की अनुमति दे सकती है जब वह संतुष्ट हो कि आरोपी को हिरासत में रखकर पूछताछ करने की जरूरत है। भले ही आरोपी को सेक्शन-19 के तहत कभी भी गिरफ्तार नहीं किया गया हो।'

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि उसी अपराध में अगर और आगे की जांच ईडी करना चाहती है, तो वह दर्ज शिकायत में जिस व्यक्ति को आरोपी के रूप में नामित नहीं किया गया है उसे भी गिरफ्तार कर सकती है लेकिन इसके लिए ईडी को धन शोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए), 2002 की धारा-19 की शर्तों को पूरा करना होगा।

कोर्ट ने फैसले में और क्या कहा?

कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि शिकायत दर्ज होने तक आरोपी को ईडी द्वारा गिरफ्तार नहीं किया गया है, तो विशेष अदालत को शिकायत पर संज्ञान लेते हुए एक सामान्य नियम के रूप में आरोपी को पहले समन जारी करना चाहिए न कि वारंट। कोर्ट ने कहा कि भले ही आरोपी जमानत पर हो फिर भी उसे समन जरूर जारी किया जाना चाहिए।

कोर्ट ने कहा कि यदि अभियुक्त समन के अनुसार विशेष अदालत के समक्ष उपस्थित होता है, तो यह नहीं माना जा सकता कि वह हिरासत में है। इसलिए आरोपी के लिए जमानत के लिए आवेदन करना जरूरी नहीं होगा। हालांकि, विशेष अदालत अभियुक्त को आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 88 के अनुसार बांड जमा करने का निर्देश दे सकती है।

सीआरपीसी की धारा 88 के तहत प्रस्तुत किया गया बांड केवल एक अंडरटेकिंग है। इसलिए, धारा 88 के तहत बांड जमा करने का आदेश जमानत देने के समान नहीं है। कोर्ट के अनुसार ऐसे में बांड स्वीकर करने (जमानत के लिए) के लिए पीएमएलए काननू के सेक्शन-45 के तहत कड़ी दोहरी शर्त की अनिवार्यता भी नहीं होगी।

पीएमएलए कानून के तहत जमानत की कठिन शर्तें

दरअसल, पीएमएलए की धारा 45 के तहत जमानत पाने के लिए दोहरी शर्त की अनिवार्यता है। इसमें पहली शर्त यह है कि अदालत इस बात को लेकर आश्वस्त हो कि आरोपी दोषी नहीं है। दूसरी शर्त यह है कि अदालत को यह भरोसा हो कि आरोपी जमानत पर कोई अपराध नहीं करेगा।

इससे पहले जस्टिस रोहिंटन नरीमन और एस.के. कौल की सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने जमानत के लिए दो अतिरिक्त शर्त जोड़ने वाली पीएमएलए की धारा 45(1) को मनमाना बताते हुए नवंबर 2017 में रद्द कर दिया था। हालाँकि, बाद में केंद्र ने PMLA कानून में संशोधन करके प्रावधान को बहाल कर दिया।

विजय मदनलाल चौधरी मामले में जस्टिस ए.एम. खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी और सी.टी. रविकुमार की तीन जजों की खंडपीठ ने भी जुलाई 2022 में उस फैसले के पलटते हुए पीएमएलए, 2002 में साल 2019 के संशोधनों को उचित ठहराया था। इसके बाद धन शोधन के मामलों में जमानत पाना लगभग असंभव हो गया था क्योंकि आरोपी को अपराधी साबित करने की जिम्मेदारी ईडी पर होने की बजाय खुद को निरपराध साबित करने की जिम्मेदारी एक तरह से आरोपी पर डाल दी गई थी।

पीएमएलए के प्रावधानों की समीक्षा पर सुप्रीम सुनवाई

भारत के तत्कालीन चीफ जस्टिस एन.वी. रमना की अध्यक्षता वाली खंडपीठ दो प्रमुख कारणों से पीएमएलए के प्रावधानों की समीक्षा के लिए सहमत हुई थी - पहला कि इसमें आरोपी को गिरफ्तारी के समय ईसीआईआर (आम मामलों में एफआईआर के समान) की कॉपी नहीं दी जाती, और दूसरा कि इसमें आरोप साबित होने तक निरपराध मानने के सिद्धांत से समझौता किया गया है।

पिछले साल नवंबर में जस्टिस एस.के. कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने उनकी सेवानिवृत्ति से कुछ दिन पहले ईडी की शक्तियों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखने का आदेश दिया था ताकि वह सुनवाई के लिए नई खंडपीठ को जिम्मेदारी सौंप सकें।

क्या था पूरा मामला?

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार यह फैसला उस केस में सुनाया गया है, जिसमें कहा गया था कि क्या मनी लॉन्ड्रिंग मामले में हर आरोपी को जमानत के लिए कड़े दोहरे परीक्षण से गुजरना पड़ेगा, भले ही मामले में विशेष अदालत अपराध का संज्ञान ले। मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 30 अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस पक्ष पर सुनवाई की क्या कोई आरोपी जिसे पीएमएलए कानून के तहत जांच के दौरान गिरफ्तार नहीं किया गया है, वो ईडी की शिकायत पर ट्रायल कोर्ट द्वारा समन जारी करने और पेश होने के बाद भी के बाद भी इस कानून के तहत जमानत की शर्तों के अधीन होगा।

यह कानूनी मुद्दा सुप्रीम कोर्ट के सामने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के उस फैसले के बाद आया, जिसमें राजस्व अधिकारियों से जुड़े कथित भूमि घोटाले और मनी लॉन्ड्रिंग मामले में कई आरोपियों को गिरफ्तारी से पहले जमानत देने से इनकार कर दिया गया था। बाद में आरोपी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे।

(IANS इनपुट के साथ)

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