नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को लेकर मंगलवार (20 अगस्त) बड़ा फैसला सुनाया। उसने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसने आरक्षित वर्ग के मेधावी उम्मीदवारों को अनारक्षित (UR) वर्ग में प्रवेश देने से मना कर दिया था।
जस्टिस बीआर गावई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि ओबीसी, एससी या एसटी के मेधावी उम्मीदवार, अगर सामान्य कोटे की सीटों पर दाखिला पाने के हकदार हैं तो उन्हें अनारक्षित सीटों पर ही दाखिला मिलना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसका अर्थ है कि ऐसे उम्मीदवार को SC/ST जैसे आरक्षण की श्रेणी के लिए आरक्षित सीट में नहीं गिना जा सकता।
मामला क्या है?
मामला एमबीबीएस सीटों में प्रवेश से संबंधित है, जिसमें कुल सीटों का 5% सरकारी स्कूल (GS) के छात्रों के लिए आरक्षित था। चूंकि मध्य प्रदेश शिक्षा प्रवेश नियम, 2018 के नियम 2 (g) के अनुसार कई सीटें खाली रह गई थीं। इसलिए जो रिक्तियां थीं, जो अनारक्षित हैं, उन्हें ओपन कैटेगरी में स्थानांतरित कर दी गई।
इसके खिलाफ याचिका दायर की गई थी। जिसमें मांग की गई कि रिक्त सीटों को ओपन कैटेगरी में स्थानांतरित करने से पहले आरक्षित वर्ग के मेधावी छात्रों को, जो सरकारी स्कूल में पढ़ें हैं, उन्हें एमबीबीएस सीटें आवंटित की जानी चाहिए।
याचिकाकर्ताओं ने इसको लेकर हाईकोर्ट का रुख किया था लेकिन अदालत ने याचिका खारिज कर दी। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपील पेश की गई। अब सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के पक्ष में फैसला सुनाया है।
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याचिका मे क्या तर्क दिया गया?
सुप्रीम कोर्ट ने सौरभ यादव और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य समेत अन्य मामलों के आधार पर फैसला सुनाया। अपीलकर्ताओं ने कहा कि हाई कोर्ट ने सौरव यादव के मामले में दिए गए फैसले को मान्यता नहीं देकर गलती की है। उन्होंने कहा कि नीति के गलत तरीके से लागू होने के कारण एक असामान्य स्थिति पैदा हो गई है जिसमें UR-GS सीटों में अपीलकर्ताओं से कम मेरिट वाले लोगों ने प्रवेश पा लिया है, जबकि अपीलकर्ता, जो UR-GS उम्मीदवारों से अधिक मेरिट वाले हैं, को प्रवेश से वंचित कर दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- “यह निर्विवाद है कि अपीलकर्ता, जो मेधावी थे और यूआर-जीएस श्रेणी के खिलाफ प्रवेश ले सकते थे, क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर आरक्षण को लागू करने में पद्धति के गलत अनुप्रयोग के कारण प्रवेश से वंचित कर दिए गए थे। यह भी विवादित नहीं है कि कई छात्र, जिन्होंने अपीलकर्ताओं की तुलना में बहुत कम अंक प्राप्त किए थे, यूआर-जीएस सीटों के खिलाफ प्रवेश ले चुके हैं। यह इस न्यायालय द्वारा सौरव यादव… के मामलों में निर्धारित कानून के पूर्ण विपरीत है।”