नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली वक्फ बोर्ड के उस दावे को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि उसके एक परिसर का इस्तेमाल गुरुद्वारे के तौर पर किया जा रहा है। वक्फ बोर्ड ने 2010 में दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने भी वक्फ बोर्ड की दलीलों को नहीं माना। न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने मामले में फैसला सुनाते हुए इस अपील को खारिज कर दिया। पूरा मामला दिल्ली के शाहदरा इलाके से जुड़ा है।
वक्फ बोर्ड को खुद ही छोड़ देना चाहिए था दावा: सुप्रीम कोर्ट
वेबसाइट बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार सुनवाई के दौरान जस्टिस शर्मा ने कहा कि बोर्ड को खुद ही दावा छोड़ देना चाहिए था। हालांकि, बोर्ड की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय घोष ने कहा कि निचली अदालतों ने माना था कि वहां मस्जिद थी, लेकिन 'अब वहां किसी तरह का गुरुद्वारा है।'
कोर्ट ने इस पर याचिका को खारिज करते हुए कहा, 'किसी तरह का नहीं। एक ठीक से काम करने वाला गुरुद्वारा। एक बार गुरुद्वारा बन गया है तो उसे रहने दें। वहां पहले से ही एक धार्मिक संरचना काम कर रही है। आपको खुद ही उस दावे को छोड़ देना चाहिए।'
वक्फ बोर्ड के अनुसार शाहदरा में जिस मस्जिद पर सवाल उठाया जा रहा है, वह 'मस्जिद तकिया बब्बर शाह' थी। इसमें दावा किया गया था कि मस्जिद काफी लंबे समय से अस्तित्व में थी और धार्मिक उद्देश्यों के लिए समर्पित थी।
हालांकि, गुरुद्वारा पक्ष ने तर्क दिया था कि संपत्ति वक्फ संपत्ति नहीं है क्योंकि संपत्ति के मालिक मोहम्मद अहसान ने इसे 1953 में उसे बेच दिया था। दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुद्वारे के पक्ष में फैसला सुनाया था।
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, 'प्रतिवादी 1947-48 से इस संपत्ति पर काबिज है। यह भी सच है कि प्रतिवादी इस संपत्ति की खरीद के सबूत के तौर पर कोई भी मालिकाना हक का दस्तावेज पेश नहीं कर पाया, फिर भी यह किसी भी तरह से वादी (वक्फ बोर्ड) को लाभ नहीं पहुंचाता, जिसे अपना मामला खुद ही स्थापित करना है और कब्जे का आदेश प्राप्त करने के लिए इसे साबित करना है।'