सुप्रीम कोर्ट ने 30 महिला सैन्य अधिकारियों की ओर से दायर एक अवमानना याचिका को खारिज कर दिया है। इस याचिका में महिला सैन्य अधिकारियों की ओर से कहा गया था कि जनवरी में उनके प्रोमोशन पर विचार के लिए बने विशेष चयन बोर्ड ने अदालत के नवंबर-2023 के आदेश का उल्लंघन किया है, जिसके तहत उन्हें उस वर्ष जनवरी में पदोन्नति के लिए सूचीबद्ध लोगों से स्वतंत्र माना जाना था।
हालांकि, मामले पर सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि वह इस बात से संतुष्ट हैं कि आदेश का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है। कोर्ट ने कहा, ‘यह अवमानना का मामला नहीं है। उनका (सेना) मामला यह है कि पैनल में शामिल अधिकारियों की योग्यता का आकलन करने के लिए बेंचमार्किंग का विचार किया गया था। नवंबर 2023 का हमारा आदेश बेंचमार्किंग को लेकर नहीं था। अधिकारियों को सूचीबद्ध करते समय योग्यता पर विचार किया जाना चाहिए। बिना बेंचमार्किंग के आप अधिकारियों को कैसे सूचीबद्ध कर सकते हैं।’
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने याचिका खारिज करते हुए याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे सशस्त्र बल न्यायाधिकरण से संपर्क कर किसी और कानूनी उपाय पर भी विचार कर सकते हैं।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हुजेफा अहमदी ने कोर्ट को बताया कि अपनाई गई प्रक्रिया की वजह से महिला अधिकारियों के लिए निर्धारित 150 रिक्तियों में से केवल 128 को सूचीबद्ध किया जा सका जबकि 22 रिक्तियां बाकी हैं। अहमदी ने कहा, ‘यह विचार सेना में कम से कम महिलाओं को शामिल करने का है।’
वहीं, मामले में सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी-जनरल आर वेंकटरमणि और सेना की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आर बालासुब्रमण्यम ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता 2006 तक के बैच के हैं। उन्होंने कहा कि शेष 22 रिक्तियां बाद के बैच (2006-09) की महिला अधिकारियों के लिए हैं।
पीठ ने अहमदी से कहा, ‘हम आपके लिए ये रिक्तियां निर्धारित नहीं कर सकते।’ कोर्ट ने इस पर भी गौर करने को कहा कि इसके बाद अगले बैचों के लिए कुछ भी नहीं बचेगा। कोर्ट ने कहा, ‘ये शेष 22 पद केवल महिला अधिकारियों के लिए हैं। नवंबर का आदेश पारित करते समय हम केवल इस बात से चिंतित थे कि जब हम आपको एक और मौका देंगे तो ऐसे में जो लोग पहले से ही सूचीबद्ध हो चुके हैं, उन पर इसका प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।’
वेंकटरमणि ने कहा कि पुरुष और महिला अधिकारियों के बीच भेदभाव जैसी कोई बात नहीं है। उन्होंने कहा, ‘यह धारणा गलत है।’
वहीं, मामले में अदालत की सहायता कर रहीं सेना की कानून अधिकारी कर्नल सारिका पेंडलवार ने बताया कि सेना की कैडर की संख्या तय है और 150 पदों से अधिक रिक्तियां नहीं बनाई जा सकती हैं।
मामले में याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि नॉन-कॉम्बैट स्ट्रीम में स्थायी कमीशन के लिए उनके पक्ष में कोर्ट से आदेश के बावजूद उन्हें हर स्तर पर पुरुष अधिकारियों के साथ समानता के लिए लड़ने के लिए मजबूर किया जाता है। इस अवमानना याचिका में कहा गया था, ‘प्रतिवादियों ने विशेष नंबर 3 चयन बोर्ड का संचालन बेहद गुप्त और अनुचित तरीके से किया है और 3 नवंबर- 2023 के आदेश को लागू करने में विफल रहे हैं। उन्होंने जानबूझकर कोर्ट के निर्देश की भी अवहेलना की है।’