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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को राज्यों और अन्य हितधारकों के साथ परामर्श के बाद महिला कर्मचारियों के लिए मासिक धर्म की छुट्टियों पर एक आदर्श नीति को तैयार करने का निर्देश है।
पीठ ने दी है चेतावनी
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने कहा है कि यह नीति से जुड़ा हुआ मामला है जिस पर कोर्ट का विचार करना सही नहीं होगा। पीठ ने यह चेतावनी भी दी है कि अगर मासिक धर्म अवकाश को अनिवार्य किया गया तो इसका उल्टा असर भी पड़ सकता है।
अदालत ने कहा है कि इस तरह से महिलाओं को छुट्टी देने पर कंपनियां उन्हें काम पर रखने से बच सकती हैं। इस कारण देश में भारी संख्या में महिलाओं के काम काज पर भी असर पड़ सकता है।
पीठ ने क्या कहा है
पीठ ने याचिकाकर्ता और वकील शैलेंद्र त्रिपाठी की ओर से पेश हुए वकील राकेश खन्ना को मामले को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सामने रखने को कहा है। यही नहीं संभावित मॉडल नीति कैसी होगी, इस पर फैसला लेने के लिए अदालत ने विभिन्न हितधारकों से चर्चा करने को भी कहा है।
पीठ ने यह भी साफ किया है कि इस सिलसिले में किसी राज्य द्वारा अगर कोई कदम उठाया जाता है तो उसमें केंद्र की परामर्श प्रक्रिया रूकावट नहीं बन सकती है।
फरवरी में दायर की गई याचिका पर कोर्ट ने क्या कहा था
इससे पहले फरवरी में भी इस तरह की याचिका दायर कर महिला छात्रों और श्रमिकों के लिए मासिक धर्म अवकाश अनिवार्य करने की बात कही गई थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। उस समय कोर्ट ने कहा था कि इस मामले में सरकार फैसला ले सकती है।
ये कंपनियां पहले से ही दे रही है पीरियड लीव
हालांकि महिला कर्मचारियों के लिए पीरियड लीव अभी अनिवार्य नहीं किया गया है लेकिन इसके बावजूद कई ऐसी कंपनियां हैं जो अपने महिला कर्मचारियों को पहले ही यह छुट्टियां दे रही है। जोमैटो, बायजू, स्विगी और मैगजटर जैसी कंपनियां अपनी कर्मचारियों को यह लीव पहले से ही दे रही हैं।