सुप्रीम कोर्ट ने पीएमएलए कानून के दुरुपयोग के लिए ईडी को फटकार लगाई

सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ शराब घोटाले में पूर्व आबकारी अधिकारी अरुण पति त्रिपाठी की अनिश्चितकालीन हिरासत को लेकर प्रवर्तन निदेशालय (ED) को फटकार लगाई।

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सुप्रीम कोर्ट ने पीएमएलए के दुरुपयोग पर ईडी को फटकार लगाई। Photograph: (IANS)

सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) को छत्तीसगढ़ शराब घोटाले में आरोपी पूर्व आबकारी अधिकारी अरुण पति त्रिपाठी को अनावश्यक रूप से हिरासत में रखने के लिए कड़ी फटकार लगाई। अदालत ने पाया कि त्रिपाठी को बिना उचित कानूनी मंजूरी के हिरासत में रखा गया था, जबकि छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने 7 फरवरी, 2025 को उनकी आगे की हिरासत को अवैध करार दिया था।

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका की अध्यक्षता वाली पीठ ने ईडी के रवैये पर नाराजगी जताई और पूछा, "आप किस तरह का संकेत दे रहे हैं? एक व्यक्ति 8 अगस्त, 2024 से हिरासत में है और आज तक उसके खिलाफ किसी अदालत का संज्ञान आदेश नहीं है, फिर भी वह हिरासत में है?" अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि 5 अक्टूबर, 2024 को विशेष पीएमएलए अदालत ने त्रिपाठी के खिलाफ आरोप पत्र का संज्ञान लिया था, लेकिन उच्च न्यायालय ने इसे अनुमति के अभाव में रद्द कर दिया था।

त्रिपाठी, जो छत्तीसगढ़ राज्य विपणन निगम लिमिटेड के अध्यक्ष और आबकारी विभाग में विशेष सचिव थे, उन पर आरोप था कि उन्होंने राजनीतिक संपर्क वाले व्यापारियों को रिश्वत के बदले शराब कारोबार में लाभ पहुंचाने की अनुमति दी थी। ईडी का दावा है कि यह मामला 2,000 करोड़ रुपये से अधिक के घोटाले से जुड़ा है।

ईडी के अनजान होने के दावे पर अदालत की नाराजगी

ईडी की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एसवी राजू ने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया कि उन्हें उच्च न्यायालय के आदेश की जानकारी नहीं थी। जब न्यायालय ने ईडी अधिकारियों से इस पर निर्देश लेने को कहा, तो उन्होंने भी अनभिज्ञता जाहिर की। हालांकि, त्रिपाठी के वकीलों ने अदालत के समक्ष 7 फरवरी को विशेष पीएमएलए अदालत में ईडी द्वारा दायर एक आवेदन प्रस्तुत किया, जिसमें हाईकोर्ट के आदेश को स्वीकार किया गया था।

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने ईडी की तथ्य छिपाने की कोशिश पर नाराजगी जाहिर की और कहा, "हमें कुछ गंभीर आपत्तियां हैं। आपको यह पुष्टि करने में सिर्फ पांच मिनट लगे कि संज्ञान आदेश रद्द कर दिया गया है या नहीं। ईडी अधिकारियों को यह पता था, लेकिन उन्होंने इसे छिपाने की कोशिश की।"

अदालत ने ईडी अधिकारियों की चुप्पी पर भी सवाल उठाया और कहा कि 7 फरवरी का हाईकोर्ट का आदेश सार्वजनिक रूप से सुनाया गया था, और संभवतः उस समय ईडी के अधिकारी भी मौजूद थे।

त्रिपाठी को जमानत, कठोर शर्तें लागू

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि त्रिपाठी को अभी तक दोषी नहीं ठहराया गया है और उचित प्रक्रिया के बिना उनकी हिरासत जारी नहीं रखी जा सकती। अदालत ने टिप्पणी की कि "इस मामले की विशेष परिस्थितियों को देखते हुए, अपीलकर्ता की अनिश्चितकालीन हिरासत उचित नहीं होगी।"

हालांकि, चूंकि उन पर गंभीर आरोप हैं, इसलिए अदालत ने जमानत के लिए कुछ सख्त शर्तें लागू कीं। त्रिपाठी को अपना पासपोर्ट जमा करना होगा, दूसरा उन्हें यह वचन देना होगा कि यदि उनके खिलाफ फिर से संज्ञान लिया जाता है तो उन्हें अदालत के समक्ष पेश होने होंगे और ट्रायल कोर्ट के साथ पूरा सहयोग करेंगे और जांच में बाधा नहीं डालेंगे।

ईडी ने तर्क दिया कि यह मामला गंभीर वित्तीय अनियमितताओं और अवैध धन शोधन से जुड़ा है, जिसमें सरकारी अधिकारियों ने व्यक्तिगत लाभ के लिए सरकारी सिस्टम का दुरुपयोग किया। लेकिन अदालत ने दोहराया कि कोई भी व्यक्ति तब तक दोषी नहीं माना जा सकता, जब तक कि अदालत में उसके खिलाफ आरोप साबित न हो जाएं। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के किसी भी व्यक्ति की अनिश्चितकालीन हिरासत स्वीकार्य नहीं हो सकती। 

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