नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बिहार में चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के समय को लेकर सवाल खड़ा किया। बिहार में कुछ महीने बाद ही विधानसभा चुनाव होने हैं। अक्टूबर-नवंबर में यह चुनाव कराए जा सकते हैं।

दो जजों की बेंच में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सुधांशु धूलिया ने मामले पर सुनवाई करते हुए कहा, 'समस्या आपके पुनरीक्षण अभ्यास में नहीं है...समस्या टाइमिंग को लेकर है।' उन्होंने कहा कि जिन व्यक्तियों को सूची से हटाया जा सकता है, उन्हें इसके खिलाफ अपील करने का समय नहीं मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सुधांशु धूलिया और जयमाल्या बागची की आंशिक कार्य दिवस (PWD) पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग द्वारा की गई इस कवायद के पीछे 'तर्क' है, लेकिन इसके समय को लेकर सवाल खड़े होते हैं।

11 दस्तावेजों में 'आधार' क्यो नहीं?

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार शीर्ष अदालत ने राज्य में नागरिकता साबित करने के लिए आवश्यक 11 सूचीबद्ध दस्तावेजों में आधार कार्ड को शामिल न किए जाने पर भी सवाल उठाए। कोर्ट ने चुनाव आयोग से सवाल पूछा कि सरकार द्वारा अन्य दस्तावेजों के लिए पहचान के प्रमाण के रूप में जिस पहचान पत्र पर जोर दिया जा रहा था, उसे ही क्यों शामिल नहीं किया गया है।

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कोर्ट ने चुनाव आयोग के नागरिकता पर 'ध्यान केंद्रित' करने को लेकर कहा कि ऐसे मामले गृह मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। पीठ ने चुनाव आयोग से पूछा, 'बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण में आप नागरिकता के मुद्दे को क्यों उठा रहे हैं? यह गृह मंत्रालय का अधिकार क्षेत्र है।' 

पीठ ने आगे कहा, 'अगर आपको बिहार में मतदाता सूची के एसआईआर के तहत नागरिकता की जाँच करनी है, तो आपको पहले ही कदम उठाना चाहिए था, अब थोड़ी देर हो चुकी है।' इस पर चुनाव आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत भारत में मतदाता बनने के लिए नागरिकता का सत्यापन आवश्यक है।

पीठ ने आगे सवाल उठाया कि बिहार में मतदाता सूचियों का एसआईआर (विशेष पुनरीक्षण) साल के अंत में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावा से ठीक पहले करने का फैसला क्यों किया गया।

टाइमिंग पर सवाल

अदालत ने कहा कि एसआईआर प्रक्रिया में कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन साथ ही इस बात पर जोर दिया कि इसे आगामी चुनाव से काफी पहले स्वतंत्र रूप से किया जाना चाहिए था। आज की सुनवाई से पहले मतदाता सूची पुनरीक्षण पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर चुकी सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से आज कड़े सवाल पूछे। इसमें चुनाव आयोग से यह भी पूछा गया कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की कौन सी धारा उसे यह प्रक्रिया करने की अनुमति देती है। चुनाव आयोग से पूछा गया, ''या तो 'संक्षिप्त संशोधन' होता है या 'गहन संशोधन'। 'विशेष गहन संशोधन' कहाँ है?'' चुनाव आयोग से यह भी पूछा गया कि उसने इस प्रक्रिया को 2025 के बिहार चुनाव से क्यों 'जोड़ा' है।

सुप्रीम कोर्ट में बहस, किस पक्ष ने क्या दलील रखी?

पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने चुनाव आयोग की तरफ से पक्ष रखा, जबकि कपिल सिब्बल और गोपाल शंकर नारायण ने याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिहार में चुनाव आयोग के मतदाता सूची को संशोधित करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाएं एक ऐसे मुद्दे को उठाती हैं, जो 'लोकतंत्र की जड़ों' को प्रभावित करता है, जिसमें वोट देने का अधिकार शामिल है।

याचिकाकर्ताओं के वकीलों की दलीलें सुनने के बाद, जस्टिस सुधांशु धूलिया और जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कहा, 'इसमें कोई शक नहीं कि यह मुद्दा लोकतंत्र की जड़ों से जुड़ा है, वोट का अधिकार।'

चुनाव आयोग का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कोर्ट से इस स्तर पर एसआईआर प्रक्रिया में हस्तक्षेप न करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, 'संशोधन प्रक्रिया पूरी होने दें, फिर पूरी तस्वीर देखी जा सकती है।" इस पर बेंच ने कहा कि एक बार मतदाता सूची संशोधित होकर विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी हो जाएगी, तो 'कोई भी कोर्ट इसे नहीं छुएगा।'

याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम सभी याचिकाओं पर नहीं जाएंगे। हम मूल कानूनी सवालों पर बात करेंगे। सबसे पहले एडीआर की तरफ से वकील गोपाल शंकर नारायण ने दलील रखी।

याचिकाकर्ता की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकर नारायण ने कहा कि मतदाता गहन पुनरीक्षण में 11 दस्तावेजों को अनिवार्य किया गया है। यह पूरी तरह से पक्षपातपूर्ण है। एसआईआर का फैसला न तो आरपी एक्ट में है और न ही इलेक्शन रूल में है। आयोग कहता है कि एक जनवरी 2003 के बाद मतदाता सूची में नाम लिखवाने वालों को अब दस्तावेज देने होंगे। यह भेदभावपूर्ण है।

नारायण ने कहा, '1 जुलाई 2025 को 18 साल की उम्र वाले नागरिक वोटर लिस्ट में शामिल हो सकते हैं। वोटर लिस्ट की समरी, यानी समीक्षा हर साल नियमित रूप से होती है। इस बार की भी हो चुकी है। लिहाजा अब इसे करने की जरूरत नहीं है।'

इस पर जस्टिस धूलिया ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि आप ये नहीं कह सकते कि चुनाव आयोग जो कर रहा है, वो कर नहीं सकता है। चुनाव आयोग तारीख तय कर रहा है, इसमें आपको आपत्ति क्या है? आप तर्कों के माध्यम से साबित करें कि आयोग सही नहीं कर रहा है।

दूसरी ओर चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में 11 दस्तावेजों को मांगे जाने की वजह बताई। ईसी ने कहा, 'जिन 11 दस्तावेजों को मांगा गया है, उनके पीछे एक उद्देश्य है। आधार कार्ड को आधार कार्ड एक्ट के तहत लाया गया है। 60 फीसदी लोगों ने अब तक फॉर्म भर दिया है। अब तक आधे से अधिक फॉर्म को अपलोड भी कर दिया गया है। आधार कार्ड कभी भी नागरिकता का आधार नहीं हो सकता। ये केवल एक पहचान पत्र है। जाति प्रमाण पत्र आधार कार्ड पर निर्भर नहीं है। आधार केवल पहचान पत्र है, उससे ज्यादा कुछ नहीं।'

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'हम आयोग पर सवाल नहीं उठा रहे हैं। आयोग ने साफ कह दिया है कि 11 दस्तावेजों के अलावा भी दूसरे दस्तावेज शामिल हो सकते हैं। हम मामले की सुनवाई अगस्त में करते हैं?' इस पर आयोग ने कहा, '2 अगस्त को सुनवाई कर लीजिए। ड्राफ्ट के प्रकाशन पर रोक मत लगाइए, नहीं तो पूरा प्रोसेस लेट हो जाएगा।'

आयोग ने आगे कहा, 'हमें प्रक्रिया पूरी करने दीजिए और फिर कोई फैसला लेंगे। नवंबर में चुनाव हैं और हमें अभी क्यों रोका जाए? आप हमें बाद में भी रोक सकते हैं।'

इस पर जस्टिस बागची ने कहा, 'हम चुनाव आयोग के काम में दखल देने के पक्ष में नहीं हैं।' सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम चुनाव आयोग को एसआईआर करने से रोक नहीं सकते। वो संवैधानिक संस्था है। हम मामले की सुनवाई अगस्त से पहले करेंगे। हम 28 जुलाई को मामले की सुनवाई करेंगे।

वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन पर राजनीतिक घमासान

दरअसल, चुनाव आयोग द्वारा बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण की घोषणा ने राज्य में राजनीतिक घमासान छेड़ दिया है। बिहार में इसी साल के आखिर में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होना है। विपक्षी दल चुनाव आयोग की ओर से शुरू किए गए पुनरीक्षण का विरोध कर रहे हैं। इसे लेकर बुधवार को कांग्रेस, राजद समेत अन्य विपक्षी पार्टियों ने बिहार में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन और चक्का जाम किया। इसमें राहुल गांधी भी शामिल हुए।

दूसरी ओर चुनाव आयोग कर चुका है कि बिहार में सभी राजनीतिक दलों की 'पूर्ण भागीदारी' के साथ प्रत्येक मतदाता की पात्रता की पुष्टि के लिए विशेष पुनरीक्षण अभियान सफलतापूर्वक शुरू हो चुका है। चुनाव आयोग ने कहा कि उसके पास पहले से ही लगभग 78,000 बूथ-स्तरीय अधिकारी (बीएलओ) हैं और वह नए मतदान केंद्रों के लिए 20,000 से अधिक बीएलओ नियुक्त कर रहा है।

गौरतलब है कि बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर 7.89 करोड़ से अधिक मतदाता हैं। बिहार में इस तरह का आखिरी संशोधन 2003 में किया गया था। चुनाव आयोग के अनुसार बिहार में 2003 की मतदाता सूची को फिर से वेबसाइट पर अपलोड कर दिया गया है, जिसमें 4.96 करोड़ लोगों के नाम हैं।

(समाचार एजेंसी IANS के इनपुट के साथ)