नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ जस्टिस बी वी नागरत्ना को बड़ी जिम्मेदारी मिलने वाली है। 25 मई से वह सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम का हिस्सा बन जाएंगी। वह जस्टिस अभय एस ओका की जगह आएंगी क्योंकि वह आज से कॉलेजियम छोड़ रहे हैं।
गौरतलब है कि 23 मई को जस्टिस अभय एस ओका अपने पद से रिटायर हुए थे। जस्टिस बी वी नागरत्ना देश की पहली महिला चीफ जस्टिस बनने वाली हैं।
क्या है कॉलेजियम?
कॉलेजियम में सुप्रीम कोर्ट के पांच सबसे वरिष्ठ जज शामिल होते हैं। यह कॉलेजियम सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं। इसके साथ ही जजों के ट्रांसफर भी करने का जिम्मा भी इन्हीं के पास होता है। तीन सबसे वरिष्ठ जज हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति का निर्णय लेते हैं।
जब मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई का कार्यकाल शुरू हुआ था तो कॉलेजियम में उनके साथ जस्टिस सूर्यकांत, अभय एस ओका, विक्रम नाथ और जे के माहेश्वरी शामिल थे।
वहीं, अब जस्टिस अभय एस ओका के रिटायरमेंट के बाद उनकी जगह जस्टिस बी वी नागरत्ना लेंगी। जस्टिस नागरत्ना सुप्रीम कोर्ट की पांचवी सबसे वरिष्ठ जज हैं। ऐसे में वह कॉलेजियम का हिस्सा बनेंगी। जस्टिस बी वी नागरत्ना आधिकारिक रूप से 25 मई को कॉलेजियम से जुडेंगी। वह 2027 में अपने रिटायरमेंट तक कॉलेजियम का हिस्सा रहेंगी।
जस्टिस नागरत्ना देश की 55वीं मुख्य न्यायाधीश बनेंगी और पहली चीफ जस्टिस बनेंगी। हालांकि, मुख्य न्यायाधीश के पद के लिए उनका कार्यकाल सिर्फ 36 दिनों का ही रहेगा। उनका कार्यकाल 24 सितंबर 2027 से 29 अक्तूबर 2027 तक रहेगा। सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में यह तीसरा सबसे छोटा कार्यकाल होगा।
जस्टिस नागरत्ना के पिता ई एस वेंकटरमैया देश के 19वें मुख्य न्यायाधीश थे।
1987 में शुरू किया करियर
जस्टिस नागरत्ना ने साल 1987 में अपनी वकालत शुरू की थी। पहले वह केसवी एंड को, एडवोकेट्स फर्म के लिए वकालती काम करती थीं। इसके बाद साल 1994 में उन्होंने स्वतंत्र रूप से वकालत करने का फैसला किया और प्रशासनिक, संवैधानिक, वाणिज्यिक और पारिवारिक कानूनों में काम किया।
फरवरी 2008 में उनकी नियुक्ति कर्नाटक हाई कोर्ट में एडिशनल जज के तौर पर हुई। इसके बाद 2010 में परमानेंट हो गईं। साल 2021 में उन्हें पदोन्नत कर सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति हुई।
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस के रूप में वह कई संवैधानिक पीठों के फैसलों में शामिल रहीं। संवैधानिक पीठ में रहते हुए उन्होंने कई फैसलों में मजबूत असहमतिपूर्ण राय दी है।
नोटबंदी मामले की सुनवाई कर रही बेंच में वह अकेली ऐसी थीं जिन्होंने असहमति व्यक्त की थी। उन्होंने कहा था कि आरबीआई ने सरकार के प्रस्ताव पर विचार करते समय ज्यादा ध्यान नहीं दिया।