सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को जस्टिस बेला त्रिवेदी और वकीलों के बीच विवाद देखने को मिला। दरअसल, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (AOR) पी सोमा सुंदरम को एक आपराधिक मामले में "अनावश्यक और अनुचित याचिका" दायर करने पर फटकार लगाई। इसपर वकीलों ने कोर्ट के आदेश को "पूर्वनिर्धारित" बताते हुए कड़ा विरोध जताया और कहा कि पूरा बार (वकील संघ) पीड़ित वकील के साथ खड़ा है। इसके बाद पीठ को अपने एक आदेश में संशोधन करना पड़ा।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, यह मामला अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (IPC) की अन्य धाराओं के तहत दर्ज एक अपराध से जुड़ा था। निचली अदालत ने आरोपी को आईपीसी की धारा और एससी/एसटी एक्ट के तहत दोषी ठहराते हुए तीन साल की सजा सुनाई थी। इसके खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट में अपील दायर की गई थी, जिसे 2023 में खारिज कर दिया गया।
अदालत ने कड़ी आपत्ति जताई
इसके बाद, याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी और आत्मसमर्पण से छूट मांगी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए दो सप्ताह में आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया। बावजूद इसके, याचिकाकर्ता ने एक बार फिर से विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर कर आत्मसमर्पण से छूट मांगी, जिसे लेकर अदालत ने कड़ी आपत्ति जताई।
मामले में कोर्ट की कड़ी टिप्पणी
सुनवाई के दौरान जब अधिवक्ता पी। सोमा सुंदरम कोर्ट में पेश हुए, तो कोर्ट ने पाया कि याचिका में तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता के हस्ताक्षर मेल नहीं खा रहे थे और सभी कागजात पर सिर्फ अधिवक्ताओं के हस्ताक्षर थे। कोर्ट ने इसे न्याय प्रक्रिया के दुरुपयोग और न्यायिक प्रशासन में हस्तक्षेप मानते हुए पी। सोमा सुंदरम और एक अन्य अधिवक्ता मुथुकृष्णा से पूछा कि उनके खिलाफ अदालत की अवमानना और अनुशासनात्मक कार्रवाई क्यों न शुरू की जाए।
बार ने कोर्ट के इस आदेश का कड़े शब्दों में विरोध किया और अदालत को अपने आदेश को संशोधित करने के लिए मजबूर किया। सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) के कई सदस्यों ने अदालत में इस फैसले पर सवाल उठाए। एक वकील ने कहा, "उन्हें सुने बिना कैसे दोषी ठहरा सकते हैं? एक मौका तो दिया जाना चाहिए।" दूसरे वकील ने कहा, "यह पूर्वनिर्धारित आदेश है, हम यही कह रहे हैं।" तीसरे वकील ने कहा, "आपने उनसे टिकट मांगा था, और वह टिकट लेकर आ गए हैं।" एक अन्य वकील ने कहा, "इस मामले की (मीडिया में) रिपोर्टिंग होगी। आप वकीलों का करियर इस तरह खत्म नहीं कर सकते।" वरिष्ठ अधिवक्ता एस। नागमुथु ने भी अदालत के आदेश पर आपत्ति जताते हुए कहा कि पूरा बार उनके समर्थन में खड़ा है।
क्या है पूरा मामला?
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, पिछली सुनवाई में सोमा सुंदरम मौजूद नहीं थे और उनकी तरफ से एडवोकेट आर नेदुमारन ने कोर्ट को बताया कि एओआर दिल्ली से बाहर हैं और तमिलनाडु जा रहे हैं। उस दिन कोर्ट ने दो बजे तक के लिए सुनवाई टाल दी थी और एओआर को वर्चुअली पेश होने के लिए कहा था। हालांकि, सोमा सुंदरम वर्चुअली पेश नहीं हुए और एडवोकेट आर नेदुमारन ने कहा कि वह रिमोट एरिया में हैं, जिसकी वजह से उनसे फोन पर भी कॉनटेक्ट नहीं हो पा रहा है इसलिए वह वर्चुअली पेश नहीं हो सकेंगे।
कोर्ट ने इसके बाद एओआर को निर्देश दिया कि प्रूफ के तौर पर वह तमिलनाडु के टिकट के साथ पेश हों। एक अप्रैल को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने एओआर से कहा, 'आप फैसले को चुनौती दे रहे हैं तो क्या आपको पेपर्स को पढ़ना नहीं चाहिए। किसी स्पष्टीकरण की गुंजाइश कहां है।' इस पर जैसे ही एओआर ने बेंच को 'माय लर्नड फ्रेंड' कहकर संबोधित किया तो कोर्ट ने उन्हें टोका और कहा, 'डोंट से लर्नंड फ्रेंड। हम परेशान हैं और दुखी भी। दिन रात हम यही सब देख रहे हैं। पहले देरी के लिए माफी मांगते हैं। फिर माफी आवेदन में...ये किस तरह की भाषा है।'
सुप्रीम कोर्ट में गरमाया माहौल
एओआर ने कोर्ट को बताया कि याचिका किसी और ने तय की है तो जस्टिस बेला त्रिवेदी ने कहा- 'तो क्या? इस पर आपके साइन हैं या नहीं।' एओआर ने इस पर सहमति जताई। कोर्ट ने गुस्से में उनसे ये भी कहा, 'हमें पेपर पढ़ने पड़ेंगे क्योंकि आप तो व्यस्त हैं और हम खाली हैं। क्या इस तरह सुप्रीम कोर्ट काम करता है। मैं एक जिला अदालत से आई हूं। मैंने वहां इस तरह का माहौल नहीं देखा है। हाईकोर्ट और जिला अदालतों में सुप्रीम कोर्ट से ज्यादा बेहतर तरीके से काम होता है। ये कोई छोटी बात नहीं है। एक आम आदमी सुप्रीम कोर्ट की ओर देख रहा है। हम आपकी माफी स्वीकार नहीं करेंगे। इसे तार्किक और कानूनी अंजाम तक पहुंचाया जाएगा।'