सुप्रीम कोर्ट ने फीस नहीं भरने की वजह से आईआईटी धनबाद में सीट गंवाने वाले एक छात्र की याचिका पर क्या फैसला सुनाया है?

फीस भरने में देरी की वजह से एक मजदूर के बेटे ने आईआईटी धनबाद में अपनी सीट गंवा दी। हालांकि छात्र ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने अब इस मामले पर फैसला सुनाया है।

एडिट
Saquib Nachan approaches Supreme Court against govt declaring ISIS as terrorist organization

साकिब नाचन ने ISIS को आतंकी संगठन घोषित करने की अधिसूचना को सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती (फाइल फोटो)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आईआईटी, धनबाद में दाखिले के लिए 17500 की फीस तय समय में जमा कराने में कुछ मिनटों की देरी की वजह से सीट खोने वाले एक छात्र को लेकर बड़ा फैसला दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में आईआईटी धनबाद को निर्देश दिया कि छात्र का दाखिला लिया जाए।

कोर्ट ने कहा, 'हमारा विचार है कि एक प्रतिभाशाली छात्र को इस तरह मझधार में नहीं छोड़ा जाना चाहिए। हम निर्देश देते हैं कि उसे आईआईटी धनबाद में प्रवेश दिया जाए।' भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने यह फैसला सुनाया।

'छात्र के लिए बनाई जाए अतिरिक्त सीट'

पीठ ने निर्देश दिया कि अनुसूचित जाति वर्ग से संबंधित छात्र अतुल कुमार को उसी बैच में प्रवेश दिया जाना चाहिए। फैसले में कहा गया कि अतुल कुमार के लिए एक अतिरिक्त सीट बनाई जानी चाहिए और इस पूरी प्रक्रिया में किसी भी मौजूदा छात्र को परेशान नहीं किया जाना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि वह छात्रावास आवंटन सहित सभी लाभों का हकदार होगा।

फैसला सुनाते हुए चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने छात्र से कहा, 'ऑल द बेस्ट! अच्छा करिए।' वहीं, छात्र के वकील ने पीठ को सूचित किया कि वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने उनकी फीस का भुगतान करने का फैसला किया है। अतुल यूपी के मुजफ्फरनगर के रहने वाले हैं।

क्या था मामला?

अतुल कुमार ने यह दलील देते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था कि उनके पिता एक दिहाड़ी मजदूर हैं और जब तक उन्होंने आईआईटी धनबाद में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम की सीट के लिए 17,500 रुपये की फीस की व्यवस्था की, पोर्टल का सर्वर बंद हो चुका था।

छात्र ने शुरू में मद्रास हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था क्योंकि उक्त वर्ष के लिए आईआईटी मद्रास के पास जेईई एडवांस परीक्षा आयोजित कराने का अधिकार था। जब हाई कोर्ट ने कहा कि कुमार द्वारा मांगी गई ऐसी राहत उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं है, तो छात्र ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

25 सितंबर को इस पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने आईआईटी मद्रास में संयुक्त सीट आवंटन प्राधिकरण (आईआईटी प्रवेश) को नोटिस जारी किया था।

कोर्ट में क्या कुछ हुआ?

कोर्ट से नोटिस के बाद सोमवार (30 सितंबर) को आईआईटी प्राधिकरण की ओर से पेश वकील ने कहा कि छात्र के लॉगिन विवरण से संकेत मिलता है कि उसने दोपहर 3 बजे लॉग इन किया था, जिसका अर्थ है कि उसने अंतिम समय में लॉग इन नहीं किया था। वकील ने कहा, 'दोपहर 3.12 बजे से वह भुगतान करने की कोई कोशिश किए बगैर सिर्फ अपना रिजल्ट स्क्रिन पर देख रहा था।'

वकील ने कहा कि कुमार को मॉक इंटरव्यू की तारीख पर ही पैसे के भुगतान के बारे में सूचित किया गया था। इस पर जस्टिस पारदीवाला ने वकील से कहा, 'आप इतना विरोध क्यों कर रहे हैं? आपको देखना चाहिए कि क्या कुछ इस मामले में किया जा सकता है।'

वहीं, छात्र अतुल कुमार के वकील ने पीठ को बताया कि प्रवेश सुरक्षित करने का यह उसका आखिरी मौका था, क्योंकि केवल दो प्रयासों की ही अनुमति है। जस्टिस पारदीवाला ने प्राधिकरण के वकील से पूछा कि क्या सीट आवंटन की सूचना पर्ची रिकॉर्ड में है।

जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि वह ऐसा इसलिए पूछ रहे हैं क्योंकि आपने कहा है कि सीट आवंटन सूचना पर्ची में 17,500 रुपये के भुगतान का निर्देश दिया गया है। जज ने कहा, 'तो सब कुछ क्रम में था। यदि उसने निर्धारित समय से पहले 17,500 रुपये जमा कर दिए होते, तो आप उसे प्रवेश देने के लिए आगे बढ़ते या नहीं?'

इस पर प्राधिकरण के वकील ने कहा कि पर्ची रिकॉर्ड में नहीं थी, लेकिन इसे जोड़ा गया है। वकील कहा, 'अगर उन्होंने (कुमार) एक बटन दबाया होता, तो भी हम उन्हें एक दिन का समय और देते...।'

इस पर सीजेआई ने कहा, 'वह बहुत प्रतिभाशाली छात्र हैं। उसकी लॉग शीट देखिए। ऐसा नहीं है कि वह बटन नहीं दबाएगा...केवल एक चीज जिसने उसे रोका वह थी 17,500 रुपये निकालने में असमर्थता और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के रूप में, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई भी बच्चा केवल इसलिए अपना प्रवेश न खोए क्योंकि उनके पास 17,500 रुपये नहीं हैं।

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए आईआईटी धनबाद को अतुल कुमार को इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग बीटेक पाठ्यक्रम में प्रवेश देने का निर्देश दिया। संविधान का अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को न्याय के हित में कोई भी आदेश पारित करने का अधिकार देता है।

यह भी पढ़ें
Here are a few more articles:
Read the Next Article