नागरिकता कानून की धारा 6ए क्या है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने वैध करार दिया है?

साल 1985 में तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी की सरकार और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (एएएसयू) के बीच असम समझौता हुआ था। इसके बाद इसमें धारा 6ए को शामिल किया गया था।\xa0

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Supreme Court rejected petition to give menstrual leaves to women directed the Center to make model policy

सुप्रीम कोर्ट (फोटो- IANS)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है। नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6ए को बांग्लादेश से असम आए अवैध आप्रवासियों के लिए पेश किया गया था। यह धारा 1 जनवरी 1966 से पहले असम में आने वाले प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करता है।

यही नहीं यह धारा 1 जनवरी 1966 से 24 मार्च 1971 के बीच असम आए अप्रवासियों को 10 साल की प्रतीक्षा अवधि के बाद उन्हें भारत की नागरिकता के लिए रेजिस्ट्रेशन करने की इजाजत देता है। इस अवधि के दौरान उन्हें मतदान करने का अधिकार नहीं होगा।

पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने 4:1 के बहुमत से यह फैसला सुनाया है जिसमें न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला ने असहमति जताई है। पीठ में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत, एमएम सुंदरेश और मनोज मिश्रा भी शामिल थे।

साल 1985 में असम समझौते में धारा 6ए को शामिल किया गया था। इसके जरिए 1 जनवरी 1966 और 25 मार्च 1971 के बीच बांग्लादेश से अवैध रूप असम आए अप्रवासियों को नागरिकता की लाभ देने की बात कही गई थी। हालांकि 25 मार्च 1971 के बाद बांग्लादेश से असम आने वाले लोगों को अवैध नागरिक माना गया है।

एनजीओ असम पब्लिक वर्क्स और असम संमिलिता महासंघ सहित अन्य याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि धारा 6ए "भेदभावपूर्ण और अवैध है।" उन्होंने कहा है कि पूरे भारत की तुलना में असम के लिए एक खास कट ऑफ डेट को तय करने के कारण राज्य का जनसांख्यिकी संतुलन बिगड़ रहा है।

याचिकार्ताओं ने यह भी दावा किया है कि अप्रवासियों के असम में आने से मूल असमिया अपनी ही राज्य में अल्पसंख्यक बन गए हैं। कोर्ट में अनुच्छेद 29 का हवाला देते हुए याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि इससे असम के मूल निवासियों के राजनीतिक और सांस्कृतिक अधिकारों का हनन हो रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा है

इस पर मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि अमस समझौता अवैध शरणार्थियों की समस्या का राजनीतिक समाधान था। कोर्ट ने 6A के तहत 25 मार्च 1971 के कट ऑफ डेट को सही ठहराया है।

कोर्ट ने आगे कहा है कि केंद्र सरकार इस अधिनियम को अन्य राज्यों में भी लागू कर सकती थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया है क्योंकि ये कट ऑफ केवल असम के लिए लागू किया गया था।

न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला को छोड़कर बाकी जजों ने यह माना है कि उस समय पूरे देश के मुकाबले असम की स्थिति अलग थी। असम के उस समय के हालात को देखते हुए कट ऑफ डेट को तय किया गया था जिसे कोर्ट ने सही ठहराया है।

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि आंकड़े बताते हैं कि उस समय पश्चिम बंगाल में 57 लाख और असम में 40 लाख प्रवासी आए थे। ऐसे में असम में प्रवासियों की कम संख्या को देखते हुए यह कट ऑफ डेट तय किया गया था।

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नागरिकता कानून 1955 की धारा 6ए क्या है?

साल 1985 में तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी की सरकार और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (एएएसयू) के बीच असम समझौता हुआ था। इसके बाद इसमें धारा 6ए को शामिल किया गया था। इस प्रावधान ने असम में नागरिकता के लिए एक खास कट ऑफ डेट तय की गई थी जो भारत के अन्य हिस्सों से एक अलग ही कट ऑफ डेट थी।

साल 1971 में बांग्लादेश की आजादी के संग्राम के दौरान भारी संख्या में बांग्लादेशी अप्रवासी असम आए थे। बांग्लादेश से अप्रवासियों के असम में आने को लेकर उस समय असम मूवमेंट के नेताओं द्वारा विरोध भी किया गया था। वे लोग अप्रवासियों को अमस से हटाने की मांग कर रहे थे।

करीब छह साल के विरोध के बाद केंद्र सरकार और एएएसयू के बीच यह समझौता हुआ था। ऐसे में नागरिकता कानून 1955 की धारा 6ए के तहत 1 जनवरी 1966 और 25 मार्च 1971 के बीच बांग्लादेश से असम में आए अप्रवासियों को यहां की नागरिकता देने का अधिकार देता है। बता दें कि 25 मार्च 1971 वहीं तारीख है जिस दिन बांग्लादेश में आजादी का संघर्ष खत्म हुआ था।

असम के कुछ समूहों द्वारा इस प्रावधान को कोर्ट में चुनौती दी गई थी। दावा किया गया था यह धारा बांग्लादेश से असम में आए अवैध घुसपैठ करने वाले को वैधता देती है। इस पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है जिसमें धारा 6ए को वैध करार दिया गया है।

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