नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक विवादों में महिलाओं द्वारा अपने पति और परिवार के खिलाफ दर्ज मामलों (दहेज उत्पीड़न) में कानून के दुरुपयोग पर चेतावनी दी है। अदालत ने कहा है कि इस कानून का उपयोग “व्यक्तिगत बदले की भावना को पूरा करने के हथियार” के रूप में नहीं किया जा सकता।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन कोटिस्वर सिंह की पीठ ने मंगलवार को यह टिप्पणी करते हुए एक मामले को खारिज कर दिया, जिसमें तेलंगाना हाईकोर्ट ने पति और उसके परिवार के खिलाफ धारा 498(ए) के तहत दहेज उत्पीड़न का मामला खारिज करने से इनकार कर दिया था।
धारा 498(ए) और इसका उद्देश्य
भारतीय दंड संहिता की धारा 498(ए), या भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के अंतर्गत धारा 86, विवाहिता महिलाओं को उनके पति या ससुराल वालों द्वारा की जाने वाली क्रूरता से बचाने के लिए बनाई गई है। इस कानून के तहत दोषी पाए जाने पर तीन साल या उससे अधिक की सजा और जुर्माना हो सकता है।
यह मामला तब दर्ज किया गया जब पति ने विवाह विच्छेद की याचिका दायर की। सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में केवल परिवार के सदस्यों के नामों का उल्लेख करना, बिना किसी ठोस साक्ष्य के, आपराधिक मुकदमे का आधार नहीं बन सकता।
अदालत ने कहा कि धारा 498(ए) का उद्देश्य महिलाओं पर उनके पति और ससुराल वालों द्वारा किए गए अत्याचारों को रोकना और राज्य द्वारा तत्काल हस्तक्षेप सुनिश्चित करना है।
कानून के दुरुपयोग की प्रवृत्ति पर जताई चिंता
पीठ ने कानून के दुरुपयोग पर चिंता जाहिर की। अदालत ने कहा कि धारा 498(ए) का उद्देश्य महिलाओं को उनके पति और ससुराल वालों द्वारा होने वाली क्रूरता से बचाना था। लेकिन हाल के वर्षों में वैवाहिक विवादों में बढ़ोतरी के साथ, इस प्रावधान का दुरुपयोग कर पतियों और उनके परिवारों को परेशान करने की घटनाएं बढ़ी हैं।
पीठ ने कहा, “कई बार पत्नी अपनी अनुचित मांगों को पूरा कराने के लिए इस प्रावधान का उपयोग करती है। बिना किसी ठोस सबूत के पति और परिवार पर मुकदमा चलाना अनुचित है। अदालत पहले भी ऐसी प्रवृत्तियों पर चेतावनी दे चुकी है।”
हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज दिया जिसमें शादी से जुड़े मामले में एक परिवार के पुरुष, उसके माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न के आरोपों को खारिज करने से इनकार कर दिया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि मामला पत्नी द्वारा “व्यक्तिगत रंजिश और बदले की भावना” से दर्ज किया गया था। अदालत ने इसे गंभीर त्रुटि करार दिया और कहा कि ऐसे मामलों में विवेकपूर्ण दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 498(ए) का दुरुपयोग रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए ताकि यह प्रावधान केवल उन मामलों में लागू हो जहां स्पष्ट रूप से क्रूरता के प्रमाण हों। अदालत ने जोर दिया कि कानून का उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा है, न कि किसी को ब्लैकमेल करने का साधन।