नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) आरक्षण को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की संविधान पीठ ने एससी-एसटी आरक्षण में कोटे के अंदर कोटे को मंजूरी दे दी है। इसका मतलब ये हुआ कि एससी-एसटी कोटे में सब-कैटेगरी किया जा सकता है। यह ऐतिहासिक फैसला पीठ ने 6:1 के बहुमत से दिया। बेंच में शामिल जस्टिस बेला त्रिवेदी ने असहमति जताई।
सुप्रीम कोर्ट ने 2004 का फैसला पलटा
बहरहाल, इस फैसले के साथ ही सात जजों की संविधान पीठ ने 2004 के फैसले को पलट दिया। उस फैसले में अनुसूचित जातियों के भीतर कुछ उप-जातियों को विशेष लाभ देने से इनकार किया गया था। ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश के उस केस में पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने फैसला सुनाया था। पांच जजों की संविधान पीठ ने तब कहा था कि अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के सदस्य एक समान समूह हैं, जिन्हें आगे किसी उप-समूह या वर्गीकरण में बांटा नहीं जा सकता है।
[BREAKING] Supreme Court holds sub-classification of Scheduled Castes/ Scheduled Tribes permissible; overrules EV Chinnaiah
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— Bar and Bench (@barandbench) August 1, 2024
ईवी चिन्नैया के फैसले में कहा गया था कि संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत जारी राष्ट्रपति अधिसूचना में निर्दिष्ट अनुसूचित जातियों को फिर से वर्गीकृत करना विपरीत भेदभाव के समान होगा और यह संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन होगा।
2020 में फैसले पर पुनर्विचार की आई थी बात
2004 के फैसले के बाद साल 2020 में जस्टिस अरुण मिश्रा (अब सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता वाली 5 जजों की पीठ ने कहा था कि ईवी चिन्नैया फैसले पर एक बड़ी पीठ द्वारा दोबारा विचार किए जाने की जरूरत है। आरक्षण का लाभ सबसे जरूरतमंद और गरीब लोगों तक नहीं पहुंच रहा है।
सुप्रीम कोर्ट उस समय पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ पंजाब सरकार की ओर से दायर अपील पर विचार कर रहा था, जिसमें 2006 के पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) अधिनियम को रद्द कर दिया गया था। इसके तहत अनुसूचित जाति कोटे के तहत वाल्मीकि और मजहबी सिख जातियों को ‘प्रथम वरीयता’ दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने अब क्या कहा है?
शीर्ष अदालत ने अब कहा है कि अनुसूचित जातियां एक समान समूह नहीं हैं। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारें उन समुदायों को 15 प्रतिशत आरक्षण में अधिक महत्व देने के लिए उप-वर्गीकृत कर सकती हैं, जिन्हें अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के बीच अधिक भेदभाव का सामना करना पड़ा है। सुनवाई के दौरान केंद्र ने कोर्ट से कहा था कि वह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों में उप-वर्गीकरण के पक्ष में है।
कोर्ट ने कहा, ‘प्रणालीगत भेदभाव का सामना करने की वजह से एससी/एसटी के सदस्य अक्सर आगे बढ़ने में सक्षम नहीं होते हैं। अनुच्छेद 14 जाति के उप-वर्गीकरण की अनुमति देता है। न्यायालय को यह जांचना चाहिए कि क्या कोई वर्ग सजातीय है या किसी उद्देश्य के लिए अगर एकीकृत नहीं किया गया तो आगे वर्गीकृत किया जा सकता है।’
कोर्ट ने कहा कि ऐतिहासिक साक्ष्य और सामाजिक मानदंड भी स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि सभी एससी/एसटी एक समान वर्ग नहीं हैं। कोर्ट ने कहा, ‘ऐतिहासिक साक्ष्य से पता चलता है कि दलित वर्ग समान वर्ग नहीं था और सामाजिक स्थितियां बताती हैं कि इसके तहत सभी वर्ग एक समान नहीं हैं। मध्य प्रदेश राज्य में 25 जातियों में से केवल 9 अनुसूचित जातियां हैं।’
‘एससी-एसटी में क्रिमी लेयर की पहचान जरूरी’
पीठ के सात जजों में से चार – जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, पंकज मिथल और सतीश चंद्र शर्मा ने एससी/एसटी वर्ग के बीच क्रिमी लेयर की पहचान किए जाने की जरूरत की भी बात कही ताकि उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर निकाला जा सके।
जस्टिस गवई ने अपने सहमति लेकिन अलग फैसले में कहा, ‘राज्य को एससी एसटी वर्ग के बीच क्रीमी लेयर की पहचान करने और उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर निकालने के लिए एक नीति विकसित करनी चाहिए। सच्ची समानता हासिल करने का यही एकमात्र तरीका है।’
वहीं, जस्टिस विक्रम नाथ ने भी कहा कि ओबीसी पर लागू क्रीमी लेयर सिद्धांत एससी पर भी लागू होना चाहिए। उन्होंने साथ ही कहा कि हालांकि, आरक्षण के दायरे से एससी की क्रीमी लेयर को बाहर करने के मानदंड ओबीसी पर लागू मानदंड से भिन्न हो सकते हैं।