सिविल जज बनने के लिए तीन साल की लॉ प्रैक्टिस अनिवार्य, सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

Supreme Court ने सिविल जज के लिए उम्मीदवारों को तीन साल का वकालती अनुभव अनिवार्य कर दिया है। साल 2002 में इस नियम को शेट्टी आयोग की सिफारिश के बाद इस नियम को हटाया गया था।

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supreme court 3 years practice mandatory for judicial services eligibility

जस्टिस बीआर गवई की बेंच का अहम फैसला Photograph: (bole bharat desk)

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि सिविल जज भर्ती के लिए उम्मीदवारों के पास कम से कम तीन साल का वकालत का अनुभव होना अनिवार्य है।

इस दौरान अदालत ने यह भी कहा कि अदालतों और न्याय प्रशासन के प्रत्यक्ष अनुभव का दूसरा कोई विकल्प नहीं है। यह नियम पहले भी लागू था लेकिन साल 2002 में अदालत ने इसे सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए इसे समाप्त कर दिया था।

पीठ ने क्या कहा?

सुनवाई के दौरान पीठ ने यह भी कहा कि केवल प्रैक्टिसिंग वकील ही मुकदमेबाजी और न्याय प्रशासन की प्रक्रियाओं से अवगत होगा। पीठ ने राज्यों और उच्च न्यायालयों को आदेश दिया कि तीन महीने के भीतर भर्ती प्रक्रिया में संशोधन करें।

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह और के विनोद चंद्रन की बेंच ने यह अहम फैसला सुनाया। इस दौरान पीठ ने साल 2002 के आदेश के बाद से उच्च न्यायालयों के 20 वर्षो के अनुभव का हवाला देते हुए कहा कि सिर्फ विधि स्नातकों की भर्ती सफल नहीं रही है। पीठ ने कहा "इससे कई समस्याएं पैदा हुई हैं।"

पीठ ने उच्च न्यायालयों से मिले फीडबैक के विश्लेषण के आधार पर यह फैसला लिया जिसमें कहा गया था जजों के रूप में भर्ती हुए विधि ग्रेजुएट्स न्यायलयों और मुकदमेबाजी की प्रक्रिया से परिचित नहीं हैं। 

पीठ ने कहा कि "यदि मुकदमेबाजी से अवगत वकीलों को मौका दिया जाएगा तो इससे मानवीय समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता आएगी और बार का अनुभव बढ़ेगा।"

2002 में हटाया था नियम

इससे पहले साल 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने यह जोर दिया था कि न्याय सेवाओं में युवाओं को आगे बढ़ाने के लिए तीन साल की प्रैक्टिस को समाप्त कर दिया था। तब ऐसा कहा गया था कि तीन साल की प्रैक्टिस अनिवार्य न करने पर यह युवाओं के लिए आकर्षक होगा।

दरअसल, साल 1996 में शेट्टी आयोग का गठन किया गया था जिसका उद्देश्य न्यायिक अधिकारियों की सेवा शर्तों और वेतन ढांचे की जांच करना था। इसी आयोग ने सिविल सेवाओं में तीन साल के वकालती अनुभव को खत्म करने की सिफारिश की थी। इसे अदालत ने स्वीकार कर लिया था। 

ऑल इंडिया जज एसोसिएशन

सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह आदेश राज्यों और उच्च न्यायालयों से प्राप्त जवाबों के बाद दिया गया है। ऑल इंडिया जज एसोसिएशन ने भी इस संबंध में अदालत का रुख किया था और एक याचिका दायर कर पूछा था कि क्या न्यायिक सेवाओं में प्रवेश के लिए कम से कम तीन का अनुभव बहाल किया जाना चाहिए?

मामले में सुनवाई के चलते कोर्ट ने कुछ राज्यों में भर्ती प्रक्रिया स्थगित कर दी थी। इसमें कहा गया था कि भर्ती विज्ञापन की तिथि पर लागू नियमों के अनुसार होगी। 

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इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जिन राज्यों में भर्ती प्रक्रिया शुरू हो चुकी है या भर्ती के लिए अधिसूचना जारी की गई है, उन पर यह नियम लागू नहीं होगा। इन राज्यों में अगली भर्ती प्रक्रिया से यह नियम लागू होगा। 

अदालत ने कहा कि वकील का अनुभव उस दिन से जोड़ा जाएगा जब उन्हें प्रोविजनल रजिस्ट्रेशन मिलेगा। इसका औपचारिक रजिस्ट्रेशन ऑल इंडिया बार परीक्षा पास करने के बाद होता है। 

अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सिविल जज भर्ती के लिए आवेदन करते वक्त उम्मीदवारों को वकील का अनुभव सर्टिफिकेट जमा करना होगा। यह सर्टिफिकेट उनसे प्राप्त करना होगा जिनका बार में कम से कम 10 साल का अनुभव होगा। वहीं, उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले उम्मीदवारों को वकीलों से न्यायाधीश द्वारा समर्थित प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना होगा। 

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