शैव अखाड़ों ने प्रयागराज महाकुम्भ से ली पारंपरिक विदाई

महाकुंभ से शैव अखाड़ों ने पारंपरिक रूप से विदाई ली है। इसके लिए समारोह का आयोजन किया गया। इसके साथ ही विशेष भंडारे का आयोजन किया गया। इसमें कड़ी-चावल के भोज का आयोजन किया गया।

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शैव अखाड़ों ने ली विदाई Photograph: (आईएएनएस)

महाकुंभनगरः प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ से आज शैव अखाड़ों ने परंपरागत रीति-रिवाजों के साथ विदाई ले ली। कुंभ से विदा होने से पहले अखाड़ों के साधु-संतों ने अपने इष्ट देव की पूजा-अर्चना की और चेहरे पर भस्म (भभूत) लगाकर आध्यात्मिक आस्था का परिचय दिया।

इस मौके पर अखाड़ों के साधु-संतों के लिए विशेष विदाई समारोह का आयोजन किया गया, जहां सभी संतों को फूल-मालाएं पहनाकर उनका सम्मान किया गया।

धर्म ध्वजा की पूजा और कड़ी-चावल का भंडारा 

अखाड़ों की परंपरा के अनुसार विदाई के समय अखाड़े में स्थापित धर्म ध्वजा की पूजा-अर्चना की जाती है। इसी क्रम में, शैव अखाड़ों के संन्यासियों ने भी धर्म ध्वजा की पूजा की और फिर उसे विधि-विधान से ढीला किया। यह प्रक्रिया इस बात का प्रतीक होती है कि अखाड़ा अब कुंभ से विदा हो रहा है।

इसके अलावा, विदाई समारोह में अखाड़ों द्वारा विशेष भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें भक्तों और श्रद्धालुओं को कड़ी-चावल का प्रसाद वितरित किया गया। कड़ी-चावल का भंडारा अखाड़ों की एक महत्वपूर्ण परंपरा है, जिसे वे हर कुंभ में निभाते हैं।

13 अखाड़ों ने किया था शाही स्नान, बसंत पंचमी को हुआ अंतिम स्नान 

महाकुंभ में इस बार कुल 13 अखाड़ों ने शाही स्नान किया था। अंतिम शाही स्नान 4 फरवरी को बसंत पंचमी के अवसर पर संपन्न हुआ, जिसके बाद से ही अखाड़ों ने धीरे-धीरे अपना सामान समेटना शुरू कर दिया था।

आज सभी शैव अखाड़ों ने अपनी पारंपरिक विधियों को निभाते हुए कुंभ से विदा ले ली। इसके साथ ही, कुंभ में शामिल नागा साधु भी प्रयागराज से प्रस्थान कर गए। अब सभी संत वाराणसी जाएंगे, वहां होली का पर्व मनाने के बाद हरिद्वार पहुंचेंगे और फिर उज्जैन के कुंभ की तैयारियों में जुटेंगे।

निरंजनी अखाड़े में हुआ विशेष स्वागत

निरंजनी अखाड़े में विदाई समारोह के दौरान अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष स्वामी रविंद्र पुरी का विशेष स्वागत किया गया। इस अवसर पर उन्होंने सभी को एकता और समरसता का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह संपूर्ण मानवता को जोड़ने का एक माध्यम है।

अखाड़ों के जाने से खत्म हुई आधी रौनक 

अखाड़ों और नागा संन्यासियों के कुंभ से विदा होने के बाद मेले की आधी रौनक खत्म हो जाती है क्योंकि कुंभ का मुख्य आकर्षण अखाड़े और उनके नागा संन्यासी ही होते हैं। देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु और पर्यटक नागा संन्यासियों का आशीर्वाद लेने और उनकी साधना को देखने के लिए कुंभ में आते हैं।

अब जब अखाड़ों की धर्म ध्वजा ढीली हो चुकी है और साधु-संत प्रयागराज से प्रस्थान कर चुके हैं, तो इसके साथ ही महाकुंभ का समापन भी धीरे-धीरे निकट आ रहा है। अब कुंभ नगरी अपने भव्य आयोजन की यादों को संजोकर अगले महाकुंभ की प्रतीक्षा में होगी।

(यह खबर आईएएनएस समाचार एजेंसी की फीड द्वारा प्रकाशित है। इसका शीर्षक बोले भारत न्यूज डेस्क द्वारा दिया गया है।)

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