श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ गुजरे साल में बड़ी सफलता हाथ लगी है। साल 2024 में केवल 7 कश्मीरी युवक आतंकवाद से जुड़े। यह बहुत महत्वपूर्ण आंकड़ा है क्योंकि जब हम इस आंकड़े की तुलना पिछले वर्षों से करते हैं तो स्थिति और स्पष्ट हो जाती है। पिछले कुछ वर्षों में कश्मीर में सक्रिय स्थानीय आतंकवादियों की संख्या में लगातार गिरावट आई है।
खासकर 2021 के बाद से स्थानीय भर्ती में गिरावट आई है, जब 125 युवा आतंकवाद से जुड़े थे। इसके बाद 2022 में ऐसे युवकों की संख्या घटकर 100 हो गई। सुरक्षा एजेंसियों द्वारा इकट्ठा किए गए आंकड़ों के अनुसार पिछले साल, 2023 में केवल 22 स्थानीय युवा आतंकवाद में शामिल हुए थे। वहीं, इस वर्ष यह संख्या घटकर मजह सात रह गई है।
स्थानीय आतंकवादी संगठनों का सफाया
आतंकवाद के पैटर्न के संबंध में एक और महत्वपूर्ण बदलाव देखा गया है। वह ये कि स्थानीय आतंकवादी संगठनों का लगभग सफाया हो गया है। वर्तमान में यह मुख्य रूप से पाकिस्तानी आतंकवादी ही हैं जो जम्मू-कश्मीर में आतंक का खेल जारी रखे हुए हैं समय-समय पर उसे अंजाम दे रहे हैं। ये विदेशी आतंकी काफी प्रशिक्षित हैं। इन्होंने ही सुरक्षा बलों और नागरिकों पर हाल के दिनों में कई हमले किए और ज्यादातर मौकों पर भागने में सफल रहे।
पिछले साल यानी 2024 में आतंकियों ने सबसे बड़ा हमला 9 जून को जम्मू प्रांत के रियासी जिले में अंजाम दिया था। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल के लिए नई दिल्ली में शपथ ग्रहण कार्यक्रम से कुछ घंटे पहले हुआ था। इस कायरतापूर्ण हमले में शिव खोरी तीर्थ से लौट रहे कम से कम नौ तीर्थयात्रियों की मौत हो गई और 41 अन्य घायल हो गए।
इस हमले के कुछ दिनों बाद 11 और 12 जून को, कठुआ जिले में एक जांच चौकी पर आतंकी हमले के बाद गोलीबारी में दो विदेशी आतंकवादी मारे गए। एक सीआरपीएफ जवान की भी जान चली गई। उसी दिन, डोडा जिले में एक आतंकवादी हमले में राष्ट्रीय राइफल्स (आरआर) के पांच जवान और एक विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) भी घायल हो गए।
इसके बाद 8 जुलाई को कठुआ जिले के बिलावर के मछेड़ी वन क्षेत्र में आतंकवादियों द्वारा एक सैन्य काफिले पर हमले के बाद कार्रवाई में सेना के पांच जवान मारे गए और पांच अन्य घायल हो गए। पिछले तीन दशकों में इस क्षेत्र में आतंकवादियों द्वारा घात लगाकर किया गया यह पहला मामला था। एक हफ्ते बाद 16 जुलाई को डोडा जिले के कोटी जंगलों में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में एक कैप्टन समेत सेना के चार जवान शहीद हो गये।
जम्मू प्रांत के विभिन्न इलाकों में हुई इन सभी घटनाओं से यह धारणा बनी कि आतंकवादी अपने मंसूबो को आसानी से अंजाम दे रहे हैं, क्योंकि वे भागने में सफल रहे थे।
गुजरे साल में मारे गए 42 विदेशी आतंकवादी
2024 में मारे गए 68 आतंकवादियों में से 42 विदेशी थे। जबकि 26 स्थानीय आतंकवादी मारे गए। इस साल मारे गए 42 विदेशी आतंकवादियों में से 17 नियंत्रण रेखा (एलओसी) और अंतर्राष्ट्रीय सीमा (आईबी) पर घुसपैठ के प्रयासों के दौरान मारे गए, जबकि 25 आंतरिक इलाकों में मुठभेड़ों के दौरान मारे गए।
आंकड़ों के अनुसार, केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं में 30 नागरिकों की भी जान गई। इन आंकड़ों से पता चलता है कि जहां 2019 में 80 सुरक्षा बल के जवानों की जान गई थी, वहीं 2023 में उनके हताहत होने की संख्या घटकर 30 हो गई।
आतंकवाद की घटनाओं में भी बड़ी कमी
साल 2024 में कम से कम 60 आतंकवाद से संबंधित घटनाएं दर्ज की गईं, जबकि 2019 में कम से कम 153 ऐसी घटनाएं दर्ज की गई थी।
सुरक्षा बलों ने इस साल कई शीर्ष आतंकवादी कमांडरों को ढेर करने में भी उल्लेखनीय सफलता हासिल की। सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में जान गंवाने वालों में बासित अहमद डार, उस्मान लश्करी, अरबाज मीर और फारूक अहमद भट (नली) जैसे आतंकी शामिल थे।
कश्मीर घाटी में, आतंकवादियों ने सोनमर्ग में गगनगीर के पास मजदूरों के एक कैम्प पर हमला किया था। इसमें एक कश्मीरी डॉक्टर सहित सात कर्मचारियों की मौत हो गई थी और पांच अन्य घायल हो गए थे। गांदरबल में चल रही एक प्रमुख परियोजना के खिलाफ यह हमला इलाके में इस तरह की पहली घटना थी। यह हमला 20 अक्टूबर को किया गया था। इसके चार दिन बाद आतंकवादियों ने गुलमर्ग के पास सेना के एक वाहन पर हमला किया, जिसमें दो सैनिक और दो पोर्टर मारे गए और एक अन्य सैनिक और पोर्टर घायल हो गए थे।