नई दिल्लीः  उत्तर प्रदेश की गाजियाबाद जिला जेल में बंद एक आरोपी को सुप्रीम कोर्ट से 29 अप्रैल को जमानत मिलने के बावजूद दो महीने तक जेल में रखा गया। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस देरी पर सख्त रुख अपनाते हुए राज्य सरकार को आदेश दिया कि आरोपी को पांच लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा दिया जाए। अदालत ने कहा कि यह मामला व्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।

न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा, “स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक अत्यंत कीमती और अमूल्य अधिकार है, जिसे लेकर अधिकारियों को संवेदनशील होना चाहिए।” पीठ ने पूछा, “आप अपने अधिकारियों को संवेदनशील बनाने के लिए क्या कदम उठाएंगे?”

उत्तर प्रदेश के जेल महानिदेशक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अदालत में पेश हुए थे। अदालत ने उन्हें निर्देश दिया कि इस देरी की जांच गाजियाबाद के जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा कराई जाए और रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश की जाए।

क्या है मामला?

गौरतलब है कि आरोपी को उत्तर प्रदेश के धार्मिक स्वतंत्रता कानून, 2021 (जिसे आमतौर पर ‘धर्मांतरण विरोधी कानून’ कहा जाता है) के तहत गिरफ्तार किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने 29 अप्रैल को उसे जमानत दी थी। और ट्रायल कोर्ट ने 27 मई को जिला जेल अधीक्षक को आदेश दिया था कि अगर किसी अन्य मामले में हिरासत जरूरी नहीं है, तो जमानती बॉन्ड भरने के बाद उसे रिहा कर दिया जाए।

हालांकि, यह आरोपी 24 जून तक जेल में ही बंद रहा। इस देरी पर अदालत ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि ऐसी गलती स्वीकार्य नहीं है। आरोपी के वकील ने बताया था कि तकनीकी आधार पर जमानत आदेश में एक उपधारा का उल्लेख नहीं होने के कारण जेल प्रशासन ने रिहाई नहीं की।

अदालत ने साफ किया कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़ी ऐसी लापरवाही भविष्य में नहीं होनी चाहिए और अधिकारियों को संवेदनशील बनाने के लिए ठोस कदम उठाए जाने जरूरी हैं।