नई दिल्ली: सड़क हादसों में घायलों को 'गोल्डन आवर' के भीतर कैशलेस इलाज देने की योजना पर देरी के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाई है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस लापरवाही को "गंभीर उल्लंघन" करार देते हुए कहा, 'लोग जान गंवा रहे हैं, और सरकार सो रही है।' कोर्ट ने सड़क परिवहन मंत्रालय के सचिव को 28 अप्रैल को तलब किया है, यह बताने के लिए कि आदेशों का पालन क्यों नहीं हुआ।

न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने नाराजगी जताई कि 8 जनवरी 2025 को दिए गए आदेश के बावजूद केंद्र सरकार ने योजना को अंतिम रूप नहीं दिया। 

कोर्ट ने कहा, “निर्धारित समय सीमा 15 मार्च 2025 को समाप्त हो गई है। यह न सिर्फ अदालत के आदेशों का उल्लंघन है, बल्कि एक जनकल्याणकारी कानून को लागू न करने की गंभीर चूक है। सचिव 28 अप्रैल को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश हों और यह स्पष्ट करें कि आदेशों का पालन क्यों नहीं किया गया।”

'सिर्फ समन मिलने पर ही सरकार जागती है'

पीठ ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि "जब तक शीर्ष अधिकारी अदालत में तलब नहीं होते, तब तक आदेशों को गंभीरता से नहीं लिया जाता। यह आपकी खुद की बनाई गई कानून है और लोग अपनी जान गँवा रहे हैं क्योंकि कैशलेस इलाज की कोई व्यवस्था नहीं है। यह आम नागरिकों के लिए है। हम आपको नोटिस दे रहे हैं, अगली बार अवमानना की कार्रवाई की जाएगी।”

केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी ने दलील दी कि योजना के क्रियान्वयन में 'कुछ अड़चनें' हैं, लेकिन कोर्ट ने इस सफाई को खारिज कर दिया।

क्या है गोल्डन ऑवर, कोर्ट ने क्या कहा?

कोर्ट ने परिवहन मंत्रालय के सचिव को यह भी निर्देश दिया कि सभी जिलाधिकारियों को लिखित आदेश जारी करें, जिससे वे हिट एंड रन मामलों से संबंधित दावों को जनरल इंश्योरेंस काउंसिल (जीआईसी) के पोर्टल पर अपलोड करें।

कोर्ट ने कहा कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 162(2) के तहत सरकार की यह संवैधानिक जिम्मेदारी है कि सड़क दुर्घटना के शिकार लोगों को 'गोल्डन ऑवर' में तत्काल कैशलेस चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जाए।

गोल्डन ऑवर वह एक घंटे की अवधि है जिसमें समय पर इलाज से किसी गंभीर रूप से घायल व्यक्ति की जान बचाई जा सकती है। अदालत ने कहा कि वित्तीय या प्रक्रियात्मक देरी के कारण जानें जाना अनुचित है और यह अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों के जीवन के अधिकार का उल्लंघन है।

ड्राफ्ट योजना पर भी जताई आपत्ति

केंद्र ने अदालत को एक ड्राफ्ट योजना सौंपी थी, जिसमें इलाज की अधिकतम लागत 1.5 लाख रुपये और केवल 7 दिन की कवरेज का प्रस्ताव था। हालांकि, याचिकाकर्ता के वकील ने इसे अपर्याप्त और सीमित बताते हुए आपत्ति जताई।

जनरल इंश्योरेंस काउंसिल को हिट एंड रन मामलों के दावों की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए एक पोर्टल विकसित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। कोर्ट ने बताया कि 31 जुलाई 2024 तक ऐसे 921 दावे लंबित हैं क्योंकि जरूरी दस्तावेज अपलोड नहीं किए गए थे।

जनरल इंश्योरेंस काउंसिल को 14 मार्च 2025 तक पोर्टल के विकास और रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया गया था, जिसकी स्थिति स्पष्ट न होने पर कोर्ट को सख्त रुख अपनाना पड़ा।