सुप्रीम कोर्ट Photograph: (सोशल मीडिया)
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत लाए गए नए राजद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता की जांच करने पर सहमति जताई है। यह कानून पुराने औपनिवेशिक काल के राजद्रोह कानून का ही नया स्वरूप माना जा रहा है।
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की पीठ ने सेना के रिटायर्ड मेजर जनरल एसजी वोंबटकेरे द्वारा दायर एक जनहित याचिका (PIL) पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। इस याचिका में बीएनएस की धारा 152 (राजद्रोह) की वैधता को चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को, पुराने राजद्रोह कानून (आईपीसी की धारा 124ए) को चुनौती देने वाली एक लंबित याचिका के साथ टैग करने का भी आदेश दिया है।
याचिका में क्या कहा गया है?
याचिका में बीएनएस की धारा 152 को पुराने राजद्रोह कानून का ही एक 'नया ब्रांडेड संस्करण' बताया गया है। याचिकाकर्ता के अनुसार, जुलाई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने पुराने कानून को विधायी समीक्षा के लिए निलंबित कर दिया था, लेकिन नया कानून राजद्रोह को फिर से लागू करता है। इसकी भाषा पुरानी धारा से भी अधिक 'व्यापक और अस्पष्ट' है।
याचिका में कहा गया है कि यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 19(1)(ए) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और 21 (जीवन का अधिकार) का उल्लंघन करता है। इसमें 'अलगाववादी भावनाओं को प्रोत्साहित करने' और 'भारत की एकता या अखंडता को खतरे में डालने' जैसी अस्पष्ट श्रेणियों को अपराध बना दिया गया है, जिससे लोकतांत्रिक बहस और असहमति के अधिकार को खतरा है।
याचिकाकर्ता का कहना है कि "purposely" (जानबूझकर) और "knowingly" (जानकार होकर) जैसे शब्द बीएनएस में परिभाषित नहीं हैं। जहां "purposely" का मतलब विशेष इरादे से हो सकता है, वहीं "knowingly" का दायरा इतना व्यापक है कि इसमें वह स्थिति भी आ सकती है जहां व्यक्ति ने परिणाम की संभावना तो देखी, पर इरादा न रखा हो।
नए कानून (BNS की धारा 152) में क्या है?
BNS की धारा 152 'भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कार्य' से संबंधित है। यह प्रावधान कहता है कि जो भी व्यक्ति जानबूझकर शब्दों, संकेतों, इलेक्ट्रॉनिक संचार या वित्तीय साधनों का उपयोग करके अलगाव, सशस्त्र विद्रोह या विध्वंसक गतिविधियों को उकसाता है या ऐसा करने का प्रयास करता है, उसे आजीवन कारावास या सात साल तक की जेल की सजा दी जा सकती है, साथ ही जुर्माना भी लगाया जाएगा।