नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम फैसले में कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए - जो विवाहिता महिलाओं के प्रति पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा की गई क्रूरता को अपराध मानती है, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करती।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें वैवाहिक मामलों में खासकर आईपीसी की धारा 498ए के दुरुपयोग को लेकर चिंता जताई गई थी। याचिकाकर्ता की ओर से यह तर्क दिया गया कि यह प्रावधान पुरुषों के अधिकारों का हनन करता है और केवल महिलाओं को संरक्षण देता है, जो अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) के विरुद्ध है।

कोर्ट ने क्या कहा?

पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा,  "कोर्ट को इसमें हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं दिखती। यह तर्क कि धारा 498ए अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करती है, पूरी तरह से भ्रमित और भटकाने वाला है। अनुच्छेद 15 स्पष्ट रूप से महिलाओं के संरक्षण के लिए विशेष कानून बनाने की अनुमति देता है।"

कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि कानून का दुरुपयोग एक वास्तविक चिंता हो सकती है, लेकिन इसका मूल्यांकन प्रत्येक मामले के तथ्यों के आधार पर किया जाना चाहिए, न कि किसी एकपक्षीय धारणा से।

'हमें दूसरों का अनुसरण करने की जरूरत नहीं'

जब याचिकाकर्ता के वकील ने यह तर्क दिया कि कई देशों में घरेलू हिंसा के मामलों में किसी भी लिंग का व्यक्ति न्याय की मांग कर सकता है, तो कोर्ट ने इसपर कहा कि "हम अपनी संप्रभुता बनाए रखते हैं। हमें दूसरों का अनुसरण करने की क्या जरूरत है? उन्हें हमारा अनुसरण करना चाहिए।"

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि हर कानून के दुरुपयोग की संभावना होती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उस कानून को असंवैधानिक घोषित कर दिया जाए। विशेष रूप से महिलाओं के खिलाफ समाज में व्याप्त 'बुरी प्रथाओं' से संरक्षण देने के उद्देश्य से बने ऐसे कानूनों का उद्देश्य अत्यंत सराहनीय है। 

शीर्ष अदालत ने कहा, "क्या आप चाहते हैं कि हम कोई व्यापक और अंतिम बयान दे दें? कुछ मामले होंगे जहां महिलाएं वास्तव में पीड़ित रही होंगी, और कुछ ऐसे भी जहां प्रावधान का दुरुपयोग हुआ हो सकता है। ऐसे में अदालत का कर्तव्य है कि वह हर मामले को उसकी विशेष परिस्थितियों के आधार पर परखे।"

गौरतलब बात है कि सुप्रीम कोर्ट समेत कई अदालतें यह मान चुकी हैं कि कुछ महिलाएं घरेलू हिंसा कानूनों का दुरुपयोग कर पति और ससुराल पक्ष को निशाना बनाती हैं। लेकिन कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि यह स्थिति उस कानून को अमान्य ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है।