नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी जिसमें लड़की के ब्रेस्ट टच करने और नाड़ा तोड़ने को रेप  या रेप का प्रयास नहीं माना था। 

समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने इस फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायालय इस पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं है। 

लेक्चरबाजी नहीं होनी चाहिए

अदालत में सुनवाई के दौरान जैसे ही याचिकाकर्ता के वकील ने जैसे ही तर्क देते हुए केंद्र सरकार की 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' योजना का जिक्र किया, न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने उन्हें रोक दिया। उन्होंने कहा कि कोर्ट में किसी भी विषय पर चर्चा के समय "लेक्चरबाजी" नहीं होनी चाहिए। इसके बाद अदालत ने इस याचिका को खारिज कर दिया। 

इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला उस मामले में आया था जिसमें पवन और आकाश नाम के दो युवकों पर कथित तौर पर एक नाबालिग लड़की के ब्रेस्ट टच करने और पाजामे का नाड़ा तोड़ने का आरोप है।

इसके अलावा वह जब अपनी मां के साथ पैदल जा रही थी तो उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास किया था। शुरुआत में उन दोनों को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा- 376 और पॉक्सो अधिनियम की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था। 

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्या कहा था?

हालांकि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस मामले में फैसला देते हुए कहा था कि उनके कृत्य रेप या रेप के प्रयास के रूप में योग्य नहीं थे। अदालत ने कहा था कि इसकी बजाय वे गंभीर यौन उत्पीड़न के कमतर आरोप के अंतर्गत आते हैं। कोर्ट ने कहा था कि आरोपितों के खिलाफ आईपीसी की धारा 354-बी और पॉक्सो अधिनियम की धारा-9 के तहत मुकदमा चलाया जाए।

इसके साथ ही कोर्ट ने पवन और आकाश के खिलाफ लगाए गए आरोप और तथ्यों को देखते हुए कहा था कि ये इस मामले में दुष्कर्म के प्रयास का अपराध नहीं बनाते हैं।