नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने रियल एस्टेट कंपनियों और बैंकों की मिलीभगत से घर खरीदारों (होमबायर्स) के साथ हो रही धोखाधड़ी पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। कोर्ट ने कहा कि बिल्डर और बैंक समय पर परियोजनाएं पूरी नहीं कर रहे हैं और घर खरीदारों को ईएमआई भरने के लिए मजबूर कर रहे हैं, जिससे उनका जीवन दयनीय हो गया है। इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई से बिल्डर-बैंक गठजोड़ की जांच के लिए प्रस्ताव मांगे हैं और एजेंसी से दो सप्ताह के भीतर जांच की योजना पेश करने को कहा है।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा, “हम स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि सीबीआई जांच होगी ही। हजारों लोग रो रहे हैं। हम उनके आंसू नहीं पोंछ सकते लेकिन उनके लिए कुछ ठोस जरूर कर सकते हैं। यह काम समयबद्ध और असरदार ढंग से होना चाहिए।”

कोर्ट ने सीबीआई से परियोजना-वार या क्षेत्र-वार जांच की योजना पेश करने को कहा है। पीठ ने कहा कि रोजाना हम विभिन्न हाउसिंग प्रोजेक्ट्स से जुड़ी शिकायतों पर सुनवाई कर रहे हैं। यह न्यायालय का काम नहीं है, लेकिन हम लोगों की पीड़ा नजरअंदाज नहीं कर सकते।

जांच की बड़ी जटिलता और व्यापक दायरे को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व खुफिया ब्यूरो प्रमुख राजीव जैन को कोर्ट सलाहकार (एमिकस क्यूरी) नियुक्त किया है। अब वकील के रूप में काम कर रहे 1980 बैच के IPS अधिकारी जैन कोर्ट को बताएंगे कि आगे किस तरह से इस केस में कार्रवाई की जाए।

क्या है मामला?

हजारों घर खरीदारों ने याचिकाएं दाखिल की थीं। याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि उन्होंने दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में विभिन्न हाउसिंग प्रोजेक्ट्स में सबवेंशन योजना के तहत फ्लैट बुक किए। इस योजना में बैंक सीधे बिल्डर को लोन की राशि देते हैं और बिल्डर ईएमआई चुकाता है, जब तक फ्लैट की डिलीवरी नहीं होती। लेकिन बिल्डर्स ने ईएमआई देना बंद कर दिया और अब बैंक होमबायर्स से वसूली कर रहे हैं, जबकि उन्हें फ्लैट अब तक नहीं मिला।

घर खरीदारों का कहना है कि उन्होंने अपनी मेहनत की कमाई से फ्लैट बुक कराए थे, लेकिन बिल्डरों ने समय पर परियोजनाएं पूरी नहीं कीं। इसके बावजूद, बैंक उनसे ईएमआई वसूल रहे हैं, जिससे वे आर्थिक रूप से टूट गए हैं। घर खरीदारों ने यह भी आरोप लगाया कि बैंकों ने आरबीआई के नियमों का उल्लंघन करते हुए बिल्डरों को सीधे लोन दिया।

एक याचिका में कहा गया, “यह ऐसा मामला है जहां एक धनवान (बैंक) ने दूसरे धनवान (बिल्डर) को पैसा दिया। बिल्डर पैसा लेकर भाग गया। बैंक ने कानून की अनदेखी की। अब गरीब होमबायर्स को बिना फ्लैट और बिना एक भी रुपये के, मुकदमेबाजी में झोंक दिया गया है।”

बिल्डर-बैंक की मिलीभगत पर कोर्ट की तल्ख टिप्पणी

कोर्ट ने सवाल उठाया कि “जब साइट पर एक ईंट भी नहीं रखी गई थी, तब बैंक ने बिल्डर को पैसा कैसे दिया?” अदालत ने चेताया कि “जो गलत कर रहे हैं, वे नहीं बचेंगे। जो सही हैं, उन्हें डरने की जरूरत नहीं।” 

सीबीआई की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि अगर कोर्ट आदेश दे, तो एजेंसी जांच को तैयार है। उन्होंने सुझाव दिया कि जांच की शुरुआत ग्रेटर नोएडा के किसी प्रोजेक्ट से की जा सकती है। जिसपर कोर्ट ने दो सप्ताह में विस्तृत प्रस्ताव देने को कहा। 

बैंकों का बचाव, RBI से जांच की मांग

कुछ वित्तीय संस्थानों ने कहा कि सीबीआई जांच से अस्थिरता पैदा हो सकती है, इसलिए आरबीआई से जांच कराई जाए। सीनियर वकीलों अभिषेक मनु सिंघवी और रंजीत कुमार ने कहा कि सभी बैंक दोषी नहीं हैं और उनके मुवक्किलों ने कोर्ट को सभी जानकारी दी है। इसपर शीर्ष अदालत ने कहा कि बिल्डर के दिवालिया होने पर भी बैंकों की लापरवाही पर सवाल उठते हैं।

कोर्ट ने कहा कि लगभग 40 बिल्डरों और 30 बैंकों में से केवल 9 बैंक और 5 बिल्डरों ने ही आदेश के अनुसार जानकारी दी है। यह कोर्ट के आदेशों की खुली अनदेखी है, जो बिल्डर-बैंक गठजोड़ की ओर इशारा करती है।

कोर्ट ने किन जानकारियों की मांग की?

सुप्रीम कोर्ट ने बिल्डरों और बैंकों से संबंधित परियोजनाओं की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। इसमें यह स्पष्ट रूप से शामिल है कि बिल्डरों द्वारा बैंकों को अथवा होमबायर्स द्वारा बैंकों या बिल्डरों को अब तक कितने और कब-कब भुगतान किए गए। साथ ही, प्रत्येक परियोजना की पूरा होने की निर्धारित तारीख और उसकी वर्तमान स्थिति की जानकारी भी मांगी गई है।

कोर्ट ने फ्लैट की डिलीवरी की स्थिति, यानी होमबायर्स को कब और क्या सौंपा गया, इसका ब्योरा भी प्रस्तुत करने को कहा है। इसके अलावा, घर खरीदारों से की गई वसूली की स्थिति, परियोजना के लॉन्च के समय बिल्डरों द्वारा प्रचारित सुविधाओं की सूची और उनकी वास्तविक प्रगति, इन सभी पहलुओं पर जानकारी देना अनिवार्य किया गया है। यदि किसी बिल्डर के खिलाफ दिवालियापन (CIRP) अथवा अन्य कानूनी कार्यवाही चल रही है, तो उसकी जानकारी और उस कार्यवाही की वर्तमान स्थिति भी साझा करनी होगी। अंत में, यदि किसी होमबायर को RERA या किसी अन्य वैधानिक प्राधिकरण से कोई राहत आदेश मिला हो, तो उसकी प्रति भी प्रस्तुत करनी होगी।

कोर्ट ने घर खरीदारों को पहले ही दिया था संरक्षण

सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2023 में आदेश दिया था कि बैंक या बिल्डर होमबायर्स के खिलाफ जबरन वसूली या चेक बाउंस के मामले में कोई कार्रवाई नहीं कर सकते। याचिकाओं में कहा गया कि बैंकों ने आरबीआई के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन कर लोन की राशि बिल्डरों को दी, जिससे होमबायर्स को नुकसान हुआ।