नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर जारी विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अहम टिप्पणी की। शीर्ष अदालत नेचुनाव आयोग को निर्देश दिया कि मसौदा मतदाता सूची से बाहर किए गए मतदाताओं को भौतिक रूप से फॉर्म जमा करने के अलावा ऑनलाइन भी दावा प्रस्तुत करने की सुविधा दी जाए। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की दो सदस्यीय बेंच ने कहा कि यह अभ्यास मतदाता अनुकूल होना चाहिए और आधार कार्ड, जो व्यापक रूप से उपलब्ध है, को प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए स्वीकार किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि आपको आधार कार्ड स्वीकार करना ही होगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि दावा फॉर्म आधार कार्ड या एसआईआर के तहत पहले से स्वीकृत 11 दस्तावेजों में से किसी एक के साथ जमा किए जा सकते हैं। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि चुनावी अधिकारी मतदाताओं की ओर से भौतिक रूप से दावा फॉर्म जमा करने वाले बूथ-स्तरीय एजेंटों को पावती रसीद प्रदान करें।
12 राजनीतिक दलों को बनाया पक्षकार
सुप्रीम कोर्ट ने 65 लाख से अधिक बाहर किए गए मतदाताओं से संबंधित दावे दाखिल करने में राजनीतिक दलों की निष्क्रियता पर गहरा आश्चर्य व्यक्त किया। अदालत ने कहा कि यह आश्चर्यजनक है कि बिहार में राजनीतिक दलों के 1.68 लाख से अधिक बूथ-स्तरीय एजेंट (बीएलए) होने के बावजूद चुनाव आयोग के मुताबिक अब तक केवल दो आपत्तियां दर्ज की गई हैं। बेंच ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, "बूथ-स्तरीय एजेंट नियुक्त करने के बाद वे क्या कर रहे हैं? लोगों और स्थानीय राजनीतिक व्यक्तियों के बीच दूरी क्यों है? राजनीतिक दलों को मतदाताओं की सहायता करनी चाहिए।"
अदालत ने सभी 12 राजनीतिक दलों को मामले में पक्षकार बनाया और उन्हें 8 सितंबर तक एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया, जिसमें बताया जाए कि उन्होंने कितने मतदाताओं को फॉर्म भरने में मदद की है। अदालत ने सभी राजनीतिक दलों को स्पष्ट निर्देश दिया कि वे अपने कार्यकर्ताओं को बाहर किए गए मतदाताओं की सहायता करने के लिए आदेश जारी करें ताकि वे चुनाव आयोग द्वारा स्वीकृत 11 दस्तावेजों या आधार कार्ड के साथ आवश्यक फॉर्म 6 जमा कर सकें।
कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि सभी राजनीतिक दलों के बूथ-स्तरीय एजेंट यह सत्यापित करें कि मसौदा सूची में शामिल न किए गए 65 लाख मतदाता वास्तव में सुविधा प्राप्त कर रहे हैं या मृत हैं या स्वेच्छा से अपना निवास स्थान बदल चुके हैं। सभी राजनीतिक दलों को निर्देश दिया गया कि वे अगली सुनवाई की तारीख तक बाहर किए गए मतदाताओं के लिए सुविधा प्रदान किए गए दावा फॉर्मों पर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करें।
राजनीतिक दलों की शिकायत और कोर्ट का समाधान
विपक्षी दलों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि उनके बूथ-स्तरीय एजेंटों को अपनी आपत्तियां दर्ज करने की अनुमति नहीं दी जा रही है। इस पर, कोर्ट ने बूथ-स्तरीय अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे भौतिक रूप से जमा किए गए फॉर्म की रसीद दें। जस्टिस सूर्यकांत ने दोहराया कि व्यक्तिगत रूप से आपत्ति दर्ज करने वाले या बूथ-स्तरीय एजेंट ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। अदालत ने यह भी आदेश दिया कि जहां भी भौतिक फॉर्म जमा किए जाएं, बूथ-स्तरीय अधिकारियों को फॉर्म की पावती देना आवश्यक है।
चुनाव आयोग की स्थिति और समयसीमा का मुद्दा
वहीं चुनाव आयोग की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने अदालत से 15 दिन का समय मांगा ताकि यह प्रदर्शित किया जा सके कि कोई वास्तविक मतदाता बाहर नहीं किया गया है। उन्होंने कहा, "राजनीतिक दल हंगामा मचा रहे हैं लेकिन चीजें इतनी खराब नहीं हैं। हम पर भरोसा रखें और हमें कुछ और समय दें। हम दिखा सकेंगे कि कोई बहिष्करण नहीं हुआ है।" हालांकि, अदालत ने फिलहाल अभ्यास की समयसीमा में बदलाव नहीं किया।
चुनाव आयोग ने अदालत को सूचित किया कि लगभग 85,000 बाहर किए गए मतदाताओं ने अपने दावा फॉर्म जमा किए हैं, जबकि एसआईआर अभ्यास के तहत 2 लाख से अधिक नए मतदाताओं का पंजीकरण हुआ है। आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर बताया कि उनके निर्देशों का पालन किया गया है और ड्राफ्ट मतदाता सूची में शामिल न होने वाले लगभग 65 लाख लोगों की बूथवार सूची वेबसाइट पर अपलोड कर दी गई है। आयोग ने यह भी बताया कि ड्राफ्ट लिस्ट में नाम शामिल न किए जाने के कारणों का खुलासा किया गया है और जिला स्तर पर वेबसाइट पर डाला गया है।
14 अगस्त को अदालत ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया था कि वह 19 अगस्त तक मसौदा सूची से हटाए गए 65 लाख मतदाताओं के नाम पारदर्शिता बढ़ाने के लिए प्रकाशित करे और उनके बहिष्करण के कारण भी बताए। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि जिन लोगों के नाम ड्राफ्ट लिस्ट से हटा दिए गए हैं, वे इस बहिष्करण को चुनौती देने के लिए अपने आधार कार्ड जमा कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कांग्रेस ने क्या कहा?
उधर, सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का स्वागत करते हुए कांग्रेस ने चुनाव आयोग पर लोकतंत्र पर "क्रूर हमला" करने का आरोप लगाया। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि चुनाव आयोग "पूरी तरह से बेनकाब और बदनाम" हो चुका है, जिसका दृष्टिकोण "बाधा डालने वाला और मतदाताओं के हितों के विपरीत" रहा है।
विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि उचित सत्यापन के बिना वास्तविक मतदाताओं को हटा दिया गया है। कई विपक्षी दलों ने दावा किया है कि संख्याओं में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं हुई हैं और कई जीवित लोगों को ड्राफ्ट सूची में मृत घोषित कर दिया गया है। इस एसआईआर अभ्यास की कड़ी आलोचना के बावजूद, विपक्ष का दावा है कि यह अभ्यास लाखों मतदाताओं को मताधिकार से वंचित करेगा।
यह पुनरीक्षण 2003 के बाद बिहार में पहला है, जिसने राज्य में पंजीकृत मतदाताओं की कुल संख्या को 7.9 करोड़ से घटाकर 7.24 करोड़ कर दिया है। इस भारी कमी पर विपक्षी दलों ने कई सवाल खड़े किए। सुप्रीम कोर्ट ने नोट किया कि पारदर्शिता और मतदाता-अनुकूल प्रक्रियाएं इस प्रक्रिया में विश्वास बहाली में मदद करेंगी।
8 सितंबर को अगली सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने मामले को 8 सितंबर की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है। यह मामला आगामी बिहार विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूचियों के एसआईआर के आदेश देने वाले चुनाव आयोग के 24 जून के निर्देश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई का हिस्सा है। सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों से SIR प्रक्रिया में आगे आकर सहयोग मांगा था, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के मुख्य चुनाव अधिकारी को राज्य की सभी राजनीतिक दलों के अध्यक्षों को नोटिस जारी करने का आदेश दिया।