Photograph: (IANS)
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के संभल में शाही जामा मस्जिद-श्री हरिहर मंदिर विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण आदेश दिया है। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई तक विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति अतुल एस चंदुरकर की खंडपीठ इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ मस्जिद समिति द्वारा दायर एक विशेष अनुमति याचिका (एसपीएल) पर सुनवाई कर रही थी, जिसने विवादित स्थल के सर्वेक्षण के लिए चंदौसी अदालत के आदेश को सही ठहराया था।
क्या था मामला?
हिंदू याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि शाही जामा मस्जिद का निर्माण एक प्राचीन मंदिर, जिसे हरिहर मंदिर के नाम से जाना जाता था, को ध्वस्त करके उसकी नींव पर किया गया था। उनका दावा है कि मंदिर को 1526 में मुगल बादशाह बाबर के आदेश पर आंशिक रूप से ढहा दिया गया था। पिछले साल नवंबर में, अदालत के आदेश पर मस्जिद का सर्वेक्षण करने के दौरान हिंसा भड़क गई थी, जिसमें कम से कम चार लोगों की मौत हो गई थी।
मस्जिद समिति ने अपनी याचिका में तर्क दिया कि सर्वेक्षण का आदेश जल्दबाजी में और बिना सुनवाई का मौका दिए पारित किया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि मस्जिद का दो बार सर्वेक्षण किया गया था, जिससे हिंसा हुई। हालांकि, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इन तर्कों को खारिज कर दिया था।
अदालत में हिंदू और मुस्लिम पक्ष के तर्क
सुनवाई के दौरान, हिंदू पक्ष ने तर्क दिया कि यह मुकदमा धार्मिक स्थल (पूजा स्थल) अधिनियम, 1991 के तहत वर्जित नहीं है, क्योंकि यह संपत्ति प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 के तहत आता है। उन्होंने दावा किया कि सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य पीठ ने भी यह माना है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित स्मारक इस अधिनियम के दायरे में नहीं आते हैं।
पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने भी अदालत को बताया है कि शाही जामा मस्जिद एक केंद्रीय संरक्षित स्मारक है और सार्वजनिक पूजा स्थल के रूप में इसके लिए कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है।
अदालत ने हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन से संबंधित आदेश रिकॉर्ड पर रखने को कहा और मामले की सुनवाई सोमवार तक के लिए स्थगित कर दी। इस बीच, शीर्ष अदालत ने सभी पक्षों को विवादित स्थल पर कोई नया काम न करने और यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया है।