Table of Contents
नई दिल्लीः करीब 37 साल पहले भारतीय सरकार द्वारा प्रतिबंधित की गई सलमान रुश्दी की चर्चित पुस्तक 'द सैटेनिक वर्सेज' अब भारत में फिर से उपलब्ध हो गई है। दिल्ली के ख्याति प्राप्त बहरिसंस बुकसेलर्स ने इस पुस्तक को अपने स्टॉक में शामिल किया है। खान मार्केट स्थित इस प्रतिष्ठित बुकस्टोर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पुस्तक की उपलब्धता की जानकारी दी।
बुकस्टोर ने एक्स पर लिखा- सलमान रुश्दी की प्रसिद्ध पुस्तक 'द सैटेनिक वर्सेज' अब बहरिसन्स बुकसेलर्स में उपलब्ध है! यह क्रांतिकारी और विचारोत्तेजक उपन्यास दशकों से अपनी कल्पनाशील कहानी और साहसिक विषयों के कारण पाठकों को आकर्षित करता रहा है। यह प्रकाशित होने के बाद से ही दुनियाभर में तीव्र विवादों के केंद्र में रहा है, जिसने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, आस्था और कला पर बहस छेड़ दी है।
@SalmanRushdie 's The Satanic Verses is now in stock at Bahrisons Booksellers!
This groundbreaking & provocative novel has captivated readers for decades with its imaginative storytelling and bold themes. It has also been at the center of intense global controversy since it's pic.twitter.com/e0mtQjoMCb— Bahrisons Bookseller (@Bahrisons_books) December 23, 2024
'सैटेनिक वर्सेज': दुनिया का विवादास्पद उपन्यास
सलमान रुश्दी की किताब 'सैटेनिक वर्सेज' साहित्य जगत की सबसे विवादास्पद पुस्तकों में से एक है। 1988 में इसके प्रकाशन के साथ ही यह उपन्यास कई देशों में विरोध का केंद्र बन गया। भारत, राजीव गांधी के नेतृत्व वाली सरकार के तहत, इस पुस्तक पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला देश था। इसका कारण मुसलमानों की भावनाओं को आहत करने और देश की कानून-व्यवस्था पर संकट की आशंका बताया गया।
राजीव गांधी सरकार उस वक्त शाह बानो केस और अयोध्या आंदोलन जैसे मुद्दों पर मुस्लिम समुदाय को संतुष्ट करने के प्रयास में थी। इसके बाद पाकिस्तान और कई अन्य इस्लामी देशों ने भी इस पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया। फरवरी 1989 में मुंबई में इस पुस्तक के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुआ, जिसमें पुलिस की गोलीबारी में 12 लोगों की मौत और 40 से अधिक लोग घायल हो गए।
ईरान की इस्लामिक क्रांति के नेता अयातुल्ला खुमैनी ने 1989 में सलमान रुश्दी के खिलाफ मौत का फतवा जारी किया। इसके बाद रुश्दी को लंबे समय तक छिपकर और पुलिस सुरक्षा में रहना पड़ा। उसी साल अगस्त में लंदन के एक होटल में आरडीएक्स विस्फोट के जरिए उनकी हत्या की कोशिश की गई, जिसमें वह बाल-बाल बच गए। इस घटना की जिम्मेदारी 'मुजाहिद्दीन ऑफ इस्लाम' नामक संगठन ने ली।
'सैटेनिक वर्सेज' के अनुवादकों और प्रकाशकों को भी इस विवाद का खामियाजा भुगतना पड़ा। जापानी अनुवादक हितोशी इगाराशी की बेरहमी से हत्या कर दी गई। इटैलियन अनुवादक और नॉर्वे के प्रकाशक पर जानलेवा हमले किए गए। इन विरोधों और हमलों में अब तक 59 लोगों की जान जा चुकी है।
1998 में ईरानी सरकार ने सार्वजनिक रूप से कहा कि वह सलमान रुश्दी की मौत का समर्थन नहीं करती, लेकिन फतवा आज भी लागू है। 2006 में हिज़बुल्ला के प्रमुख ने इस फतवे का समर्थन करते हुए कहा कि रुश्दी के खिलाफ कार्रवाई के लिए करोड़ों मुसलमान तैयार हैं। 2010 में अलकायदा ने एक हिट लिस्ट जारी की, जिसमें सलमान रुश्दी का नाम भी शामिल था। वहीं अप्रैल 2023 में न्यूयॉर्क के एक कार्यक्रम में उनपर चाकू से जानलेवा हमला हुआ जिसमें उनकी एक आँख की रोशनी खत्म हो गई।
दिल्ली हाई कोर्ट ने नवंबर में हटाया था प्रतिबंध
नवंबर 2024 में, दिल्ली हाई कोर्ट ने इस विवाद से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए पाया कि 1988 में जारी प्रतिबंध की अधिसूचना का कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। कोर्ट ने कहा कि बिना अधिसूचना के वैधता की जांच नहीं की जा सकती और इसे मान्य मानना गलत होगा।
यह याचिका कोलकाता के संदीप खान ने दायर की थी। उन्होंने तर्क दिया कि वे सलमान रुश्दी की पुस्तक सैटेनिक वर्सेज को आयात करने में असमर्थ हैं, क्योंकि 5 अक्टूबर 1988 को केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड द्वारा जारी सर्कुलर के तहत इस किताब पर सीमा शुल्क अधिनियम के तहत प्रतिबंध लगाया गया था। उन्होंने दावा किया कि यह अधिसूचना न तो किसी आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध थी और न ही संबंधित प्राधिकरण के पास।
इस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सौरभ बनर्जी की बेंच ने कहा, "उपरोक्त परिस्थितियों को देखते हुए, हमारे पास यह मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं है कि ऐसी कोई अधिसूचना अस्तित्व में नहीं है। इसलिए, हम इसकी वैधता की जांच नहीं कर सकते।" बेंच ने रिट याचिका को निष्प्रभावी मानते हुए उसका निपटारा कर दिया।
इसके बाद बहरिसंस बुकस्टोर ने 'सैटेनिक वर्सेज' की प्रतियां अमेरिका से मंगवाईं। इंडियन एक्सप्रेस से बहरिसन्स बुकसेलर्स ने कहा कि उन्हें यह किताब शनिवार को उनके अमेरिकी वितरक से प्राप्त हुई। एक अन्य बुकस्टोर के कार्यकारी ने बताया कि पुस्तक की बिक्री से जुड़ा कोई कानूनी प्रतिबंध नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि पुस्तक का आयात पूरी तरह से कानूनी प्रक्रिया से हुआ है। हालांकि, पुस्तक की कीमत ₹1,999 बताई गई है, जिसे कुछ पाठकों ने महंगा बताया। बहरिसंस ने इसे आयात शुल्क और अन्य खर्चों का परिणाम बताया।
सैटेनिक वर्सेज की भारत में वापसी पर शशि थरूर ने क्या कहा?
राजीव गांधी सरकार में गृह राज्य मंत्री रहे वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने कुछ साल पहले कहा था कि इस किताब पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय गलत था। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, उपन्यास के भारत में वापसी पर चिदंबरम ने अपने पुराने बयान पर कायम हैं। उन्होंने कहा कि मैं 2015 में जो कहा था, उस पर कायम हूं। प्रतिबंध का निर्णय गलत था।
वहीं कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा कि यह एक स्वागतयोग्य कदम है। उन्होंने कहा कि अब, 35 साल बाद, यह जोखिम न्यूनतम है। भारतीयों को रुश्दी की सभी किताबें पढ़ने और उनकी सामग्री पर खुद निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए।”
कोलकाता के संदीपन खान, जिनकी 2019 की याचिका पर पिछले महीने हाई कोर्ट ने 'द सैटेनिक वर्सेज' की आयात पर रोक हटाने का आदेश दिया था, खुद अब तक किताब की एक प्रति प्राप्त नहीं कर सके हैं। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, खान ने भारतीय बुकस्टोर पर किताब की मौजूदगी पर खुशी जाहिर की।